राजधान्य राजपुत्र स० राजधान्य-सज्ञा पुं० [ सं० ] एक प्रकार का धान जिसे श्यामा धान राजनील-सज्ञा पुं० [मं०] मरकत मणि । पन्ना । भी कहते हैं । साँवा धान । राजन्य-राज्ञा पु० [स०] १ क्षत्रिय । २. अग्नि । ३. खिरनी का राजधुर, राजधुरा-सभा सी० ] राज्य का भार | शासन की पेड । ४ राजा। जिम्मेदारी [को०] । राजन्यबंधु-सज्ञा पु० [ राजन्यबन्धु] क्षत्रिय । राजधुस्तूरक-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] १ एक प्रकार का धतूरा जिसके राजन्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [मं०] राजकुल की महिला [को०] । फूल बडे और कई प्रावरण के होते है। राजपखी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राज+हिं० पखी] राजहस । पर्या०- राजधूर्त । महाशठ । निस्त्रैण पुष्पक । भ्रात । राजस्वर्ण । पाँचवं नग सो तहाँ लागना। राजपखि पेखा गरजना ।- २ कनक धतूरा । पीला धतूरा जो सोने की तरह दिपता है । जायसी (शब्द०)। राजनय-सज्ञा पु० [ सं० ] राजनीति । राजपथ-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'राजपथ' । उ०-सुनु ऊधो ! राजना-क्रि० अ० [स० राजन (= शोभित होना)] १. विरा निर्गुन कटक तें राजपथ क्यो रूघो?—सूर (शब्द॰) । जना। उपस्थित होना । रहना । उ०—(क) कीन्हो केलि राजपटोल-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का पटोल या परवल । बहुत बल मोहन भुव को भार उतारेउ । प्रगट ब्रह्म राजत विशेष-इसके फल बडे होते हैं। फागुन चैत के महीनो मे इसकी द्वारावति वेद पुरान उचारेउ । —सूर (शब्द०) । (ख) मदिर डालियाँ काटकर खेतो में दो दो हाथ की दूरी पर पक्तियो मे महं सब राजहिं रानी। सोमा शील तेज की खानी । -तुलसी नाली खोदकर लगाई जाती हैं और उनमें पानी दिया जाता (शब्द०)। (ग) पुरुजित अरु पुरुमित्र महीप । राज्यो रन रथ है । यह वैसाख जेठ से फूलने लगता है और इसकी फसल वर्षा जोरि समीप । -गोपाल (शब्द०)। २ शोभित होना। ऋतु के मध्य तक रहती है। फल देखने मे लवे, बडे और खाने मोहना । उ०-(क) प्राय जगदीश्वर जग मे विराजमान, मे कुछ कम स्वादिष्ट होते हैं। इसे प्रति वर्ष खेतो मे लगाने ही हू तो कवीश्वर ह राजतं रहत हौं।-पद्माकर (शब्द॰) । की अावश्यकता होती है। विहार प्रात में इसकी खेती अधिक (ख) बहु राजत है गजराज वडे । नभ प्राडत बिद्ध मना उमडे । होती है । इसे पूरबी या पटने का (पटनहिया) परवल भी --गुमान (शब्द॰) । (ग) वा दिन भाजे मुखन की, तुम नासी कहते हैं। मुसुकाइ । ते राजे यह सुनि उठी, सुमना सी बिकसाइ ।-शृ० राजपट्ट-सज्ञा पुं० [स०] १. चुबक पत्थर । २ एक साधारण रत्न स० (शब्द०)। (को०)। राजनामा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राजनामन् ] पटोल | परवल । राजपट्टिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] चातक पक्षी । राजनीति-सञ्ज्ञा स्त्री० । स० ] वह नीति जिसका अवलबन कर राजा राजपति-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] राजाओ का राजा । सम्राट् । अपने राज्य की रक्षा और शामन दृढ करता है। विशेप-इसके प्रधान दो भेद है-एक तत्र और दूसरा भावाय । राजपत्नी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ राजा की स्त्री। रानी । २ पीतल नाम की एक प्रसिद्ध धातु । वह नीति जिसके द्वारा अपने राज्य मे सुप्रबध और शाति स्थापित की जाय, तत्र नीति कहलाती है, और जिसके द्वारा राजपथ-सज्ञा पुं० [स०] वह चौडा मार्ग जिसपर हाथी, घोडे, रथ परराष्ट्रो से सबंध दृढ़ किया जाय, वह प्रावाय कहलाती है। प्रादि सुगमता से चल सकते हो । राजमार्ग । वही सडक । स्वराज्य में प्रजा समाचार और उनको गति का राजपद्धति -सज्ञा स्त्री० [सं०] १. राजपथ । २ राजनीति । पता देने के लिये राजा को चर से काम लेना पडता राजपर्णी -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] प्रसारिणी नाम की लता । है, और परराष्ट्रो मे स्वराष्ट्र के स्वस्व, वाणिज्य राजपलाडु-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० राजपलाण्ड] लाल प्याज । विशेष दे० व्यापारादि की रक्षा तथा उनको गतियो का पता देने के लिये 'प्याज'। दूत रहते हैं । इन दूतों और चरो से राजा स्वराष्ट्र और पर राजपाल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिससे राजा या राज्य की रक्षा राष्ट्र की गति, चेष्टा प्रादि का पता लगाकर अपनी शक्ति हो । जैसे,-सेना आदि । २ दे० 'राज्यपाल' । गवर्नर । और स्वत्व की समुचित रक्षा करता है। प्राचीन ग्रथो मे राजपिंड-सञ्ज्ञा पुं० [भ० राजपिण्ड] राज्य द्वारा प्राप्त होनेवाला भावाय के छह मुख्य भेद किए गए हैं, जिनको पड्गुण भी गुजारा को०] । कहते हैं। उनके नाम ये है-सधि, विग्रह, यान, आसन, राजपीलु-सज्ञा पुं॰ [स०] महापीलु नाम का वृक्ष । द्वधीकरण और सश्रय । ये षड्नीति के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। राजपुत्र-सज्ञा ॰ [सं०] १ राजा का पुत्र । राजकुमार | २ एक राजनीति के चार और अग कहे गए हैं-साम, दान, दड वर्णसकर जाति का नाम । पुराणो मे इस जाति को उत्पत्ति और भेद। क्षत्रिय पिता और कर्ण माता से लिखी है । ३ बडे ग्राम का राजनीतिक-वि० [सं०] राजनीति सवधी। जैसे,-राजनीतिक एक भेद । ४ बुध ग्रह । ५ राजपूत क्षत्रिय (को०) । ६ राज्य आदालन, राजनीतिक सभा, की ओर से मिला हुआ एक पद या उपाधि । सरदार । नायक । ८-४८ का -
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