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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/३९३

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राजपुत्रक ४१५२ राजभक्ति- SO HO विशेष -गुप्तो के समय मे यह पद घुडमवारो के नायक को दिया जाता था। हिंदी का 'रावत' या 'राउत' पब्द इसी से वना है। राजपुत्रक-मज्ञा पु० [सं०] [को० राजपुत्रिका] १ राजकुमार । २ दे० 'राजपुत्र'। राजपुत्रा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] वह ( त्वी ) जिसका पुत्र राजा हो। राजा की माता । राजमाता । राजपुत्रिका-सज्ञा सी० [सं०] १. राजकन्या । २ सफेद जुही । ३ शरारि नामक पक्षी | ४ पीतल । राजपुत्री-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ कडवा कटू । कटुतुबी । २ रेणुका । ३ जाती । जूही का फूल । ४ छछूदर | ५ मालती। ६ राज- कन्या । ७ एक घातु । पीतल (को०) । राजपुर-सज्ञा पुं॰ [सं०] राजवानी [को०] । राजपुरुप-सज्ञा पुं० [स०] राज्य का कोई अफसर या कार्यकर्ता । राजकर्मचारी। राजपुष्प - सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ नागकेमर का पेड । २. कनकचपा। राजपुष्पी-सञ्चा सी॰ [सं०] १ वनमल्लिका । २ जाती पुष्प। ३. करुणी का फूल जो कोकण मे होता है। राजपूग-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का पूग वा सुपारी का वृक्ष राजपूताना-सज्ञा पुं० [हिं० राजपूत ] राजस्थान नामक प्रदेश जो भारत के पश्चिम में और पजाब के दक्षिणी भाग मे है। जयपुर, जोवपुर, बीकानेर श्रादि राज्य इगी के अतर्गत हैं । राजप्रति-सज्ञा स्त्री० [ ] राजपुरुप । गजा का अमान्य । राजप्रमुख - मज्ञा पु० [ सं० राज+प्रमुख ] राज्यमघ का प्रधान । राजपासाद-मज्ञा पुं० [म. ] राजा का महल । राजमहल । राजप्रिय-सज्ञा पुं० [ स० ] १ राजपलाडु । २ करणी का फूल जो कोकण मे उत्पन्न होता है । राजप्रिया- स्त्री० [ ] १ दे० 'राज प्रिय' । २ एक प्रकार का धान जो लाल रंग का होता है और जिसका चावल सफेद तथा स्वादिष्ट होता है । तिलवासिनी । राजप्रेष 1-सज्ञा पुं० [स०] राजा या राज्य का नौकर । राज- कर्मचारी। राजफद-सज्ञा पुं० [ म० राज+ फटा ] शासन का भार । राज्य का मुख । राज्य का वधन । राज्यभार । उ०-देखो कलि मद मैं भरथरी मो गोपीचद छांडि गजफद वनि जोगी वन जात मे।-दीन० ग०, पृ० १७२ । राजफणिज्मक-सज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार की नारगी । राजफल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पटोल । परवल । २ बडा ग्राम । ३ खिरनी। राजफला-संज्ञा स्त्री ] राजजवू । जामुन । राजफल्गु-सज्ञा पुं॰ [सं०] काकोदु वर । कठूमर । कठगूलर । राजवदी-सज्ञा पुं० [हिं० ] राजनीतिक वदी। वह वदी जो राज- द्रोह आदि के अपराध मे पकड़ा गया हो। राजबदर-सज्ञा पुं० [सं०] १ पैवदी या पेउदी वैर । २ रक्तामलक । लाल श्रावला । ३ लवरा । नमक । राजवरन-वि० [हिं० राज+वर्ण] राजा के समान तेजस्वी । राजा की कातिवाला। उ०-राजबरन यो लवी दहा । -कीर मा०, पृ० १६०६ । राजबला-सहा स्त्री॰ [ स० ] प्रसारिणी लता । राजवाडी-सज्ञा सी० [ मं० राजवाटिका ] १ राजा की वाटिका वा उद्यान । २ राजभवन । राजमहल । राजवाहा-सज्ञा पुं० [हिं० राज+वहना ] प्रधान या वही नहर जिससे अनेक छोटी छोटी नहरें खेतो के लिये निकाली (को०] । 8 राजपूजित-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ वे श्रेष्ठ ब्राह्मण जिनका सत्कार राज्य की ओर से होता हो और जो जीविका धादि के लिये प्रजावर्ग के आश्रित न हो । २ वह जो राजा द्वारा समाहत हो (को०) । राजपूज्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सोना। राजपूत-सझा पुं० [सं० राजपुत्र ] १ दे० 'राजपुत्र' । २ राजपूताने मे रहनेवाले क्षत्रियो के कुछ विशिष्ट वश जो सब मिनाकर एक वही जाति के रूप में माने जाते हैं। विशेष–'राजपूत' शब्द वास्तव में 'राजपुत्र' शब्द का अपभ्र श है मौर इस देश में मुसलमानो के पाने के पश्चात् प्रचलित हुआ है। प्राचीन काल मे राजकुमार प्रघवा राजवश के लोग 'राजपुत्र' कहलाते थे, इसीलिये क्षत्रिय वर्ग के सव लोगो को मुसलमान लोग राजपूत कहने लगे थे। अब यह शब्द राजपूताने में रहनेवाले क्षत्रियो की एक जाति का ही सूचक हो गया है। पहले कुछ पाश्चात्य विद्वान् कहा करते थे क 'राजपूत' लोग शक प्रादि विदेशी जातियों की सतान हैं और वे क्षत्रिय तथा आर्य नहीं हैं। परतु अव यह वात प्रमाणित हो गई है कि राजपूत लोग क्षत्रिय तथा प्रार्य है। यह ठोक है कि कुछ जगली जातियो के समान हूण प्रादि कुछ विदेशी जातियां भी राजपूतो मे मिल गई है। "ही शको की बात, सो वे भी पार्य ही ये, यद्यपि भारत के बाहर वसते थे। उनका मेल ईरानी प्रार्यों के साथ अधिक था। चौहान, सोलकी, प्रतिहार, परमार, सिसोदिया आदि राजपूतो के प्रसिद्ध कुल हैं । ये लोग प्राचीन काल से बहुत ही वीर, योद्धा, देशभक्त तथा स्वामिभक्त होते पाए हैं। जाती हैं। राजवीजी-सज्ञा पु० [ स० राजश्रीजीन ] दे॰ राजवीजी' । राजभडार-सचा पुं० [सं० राजभण्डार ] राज्य या राजा का खजाना । राजकोश । राजभक्त-वि० [सं० ] जिसमे राजा या राज्य के प्रति भक्त हो। राजा का भक्त। राजभक्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] राजा या राज्य के प्रति भक्ति या प्रेम।