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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४००

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राटि स० गवर्नर । राजेंद्र ४१५६ राजेंद्र -सञ्ज्ञा पुं० [सं० राजेन्द्र प्रसाद] स्वतत्र गणतत्र भारतवर्ष के राज्यपरिपद्-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] प्रदेशो वा राज्यो से चुने हुए प्रति- प्रथम राष्ट्रपति । ( ई० १६५०-१६६२ )। निधियो की वह उच्च परिपद् जो निम्न सदन (लोकसभा) के राजेय-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पटोल । परवल । निर्णयो पर पुन विचार करती है । राजेश्वर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] [स्त्री० राजेश्वरी] राजानो का राजा । राज्यपाल-यशा पुं० [सं० राज्य+पाल ] राज्य का शासक। राजेंद्र । महाराज। राजेष्ट-सज्ञा पुं० [स०] १ राजान्न नामक धान | २. राजभोग्य । राज्यप्रद-वि० [सं० ] राज्य देनेवाला । जिससे राज्य मिलता हो । ३ लाल प्याज । राज्यभंग-सज्ञा पुं० [सं० राज्यभङ्ग ] राज्य का नाश । राज्य राजेष्टा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ केला । २ पिंडखजूर । का ध्वस। राजेसुरी -सज्ञा पुं० [सं० राजेश्वर] दे० 'राजेश्वर' । उ०-इद्रराज राज्यभापा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] दे० 'राजभाषा', 'राष्ट्रभाषा' । राजेसुर महा । सौहें रिसि किछु जाइ न कहा ।—जायसी ग्र० राज्यलक्ष्मी - सशा स्त्री० [स०] १. राजश्री। २ विजयगौरव । ( गुप्त ), पृ० ३०४। विजयकीर्ति । राजोपकरण-सज्ञा पुं० [सं०] राजाओ के लक्षण या उनके साथ राज्यलोभ-सज्ञा पुं० [सं०] बहुत वडा लोभ । उच्च प्राशा । रहनेवाला सामान । राजचिह । जैसे,—झडा, निशान, नौबत उच्चाकाक्षा। पादि। राज्यव्यवस्था-सञ्चा श्री० [सं० ] वह नियम या व्यवस्था जिसके राजोपजीवी-संञ्चा पुं० [स० राजोपजीविन्] १ राजकर्मचारी। राज्य अनुसार प्रजा के शासन का विधान किया जाता हो। राज्य- का नौकर । २ वह पुरुष जिसकी जीविका राजा की सेवा करने नियम । नीति । कानून । से चलती हो। राज्यस्थायी-सज्ञा पुं० स० राज्यस्थायिन् ] राजा । शासक । राजोपसेवी-सज्ञा पुं० [स० राजोपसेविन] राजा का सेवक । राज्याग-सञ्ज्ञा पुं० [सं० राज्याङ्ग] राज्य के साधक अग जिन्हे राक्षी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ रानो । राजमहिषी । २ मत्स्यपुराण के प्रकृति भी कहते हैं। शास्त्रो मे प्रधान प्रकृतियाँ सात मानी अनुसार सूर्य की पत्नी का नाम । सज्ञा । ३ कांसा । ४ नील गई हैं। यया-राजा, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोप, बल और का वृक्ष । नीली। सुहृत् । राज्य-सञ्ज्ञा पुं० [२०] १. राजा का काम । शासन । राज्याभिपिक्त-वि० [सं० ] जिसका राज्याभिषेक हुआ हो। क्रि० प्र०-करना ।—देना ।—पाना । —होना । राज्याभिषेक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. राजसिंहासन पर बैठने के समय विशेष- शास्त्रो मे राजा, अमात्य, दुर्ग, राष्ट्र, कोप, दड या बल या राजसूय यज्ञ मे राजा का अभिषेक, जो वेद के मत्रो द्वारा और सुहृत् ये सातो राज्य की प्रकृतियाँ मानी गई हैं। पवित्र तीर्था के जल और अपधियो से कराया जाता है। २ २ वह देश जिसमें एक राजा का अधिकार और शासन हो। किसी नए राजा का राजसिंहासन पर बैठना या बैठाया जाना । वादशाहत । जैसे,—नेपाल का राज्य । काबुल का राज्य । राजगद्दी पर बैठने को रीति । राज्यारोहण । विशेष-कही कही एक लाख गाँवो के समूह को भी राज्य राज्यारोहण-सज्ञा पुं॰ [स० राज्य + श्रारोहण ] दे० 'राज्याभिषेक' । कहा है। उ०—फिर गज्यारोहण करो, राम, हृदयासन मे हो जन पर्या०-महल। जनपद । देश । विषय । राष्ट्र। मगल ।-युगपय, पृ० १३० । राज्यकर्ता -सञ्ज्ञा पुं० [सं० राज्यकर्तृ ] १. शासक । राज्याधिकारी। राज्योपकरण-सज्ञा पुं॰ [सं० ] राजचिह्न । २ नृपति । राजा (को०] । राट् , राट-सञ्ज्ञा पु० [सं० राट् राज ] १ राजा । वादशाह । २. श्रेष्ठ राज्यक्ता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] रायता । व्यक्ति । सरदार । ३ किसी बात मे सबसे बडा पुरुप । जैसे राज्यच्युत - वि० [स० ] जो राजसिंहासन से उतार या हटा दिया धूर्तराट् । गया हो । राज्यभ्रष्ट । विशेप-इस शब्द का प्रयोग प्राय यौगिक शब्दो के अत मे राज्यच्युति 1-सज्ञा स्त्री॰ [ ] राजा का राजसिंहासन से उतार होता है। राट-सज्ञा पुं० [सं० राट् ] दे॰ 'राट्' । उ०-सोहे भटराट विराट राज्यवत्र-सज्ञा पुं० [ स० राज्यतन्त्र ] राज्य की शासनप्रणाली। प्रभु परन विमुख रन मुख करत ।-गोपाल (शब्द॰) । राज्ययद्रव्य - सज्ञा पुं० [सं०] वह उपकरण जिसकी आवश्यकता राटपाट --वि॰ [ सं० रट>राट+हिं० (अनु०) पाट ] बरवाद | राज्याभिषेक मे पडती है। राजतिलक की सामग्री । नष्ट भ्रष्ट । उ०-पड झाट थाट छल राट पाट दिल्लीय राज्यधर-मया पुं० [सं० ] राज्यपालन । शासन । जले दल वले दाट ।-रा० रू०, पृ० ७४ । राज्यधुरा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] राज्यशासन। रादि-सचा पुं० [सं० ] लडाई । युद्ध को०] । do दिया जाना। ८-१६