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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४०२

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रातुल ४१६१ रोधन क्रि० प्र०-खाना ।—देना ।-पाना ।-मिलना। रात्रिनाशन-सञ्ज्ञा पुं० [म०] सूर्य । रातुल-सज्ञा पुं० [अ० रतल] दे० 'राटुल' । रात्रिपुष्प-- सज्ञा पुं० सं०] १ कमल । २ रात मे खिलनेवाला पुष्प । रातुल-वि० [स० रक्तालु, प्रा० रत्तालु ] सुर्ख र ग का। लाल । कुमुद । कुई (को०)। ७०-उर मोतिन की माला री पहिरे रातुल चीर, वारे रात्रिबल-सञ्ज्ञा पुं० [म०] राक्षम । कन्हैया ।—सूर (शब्द०)। रात्रिभुक्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] जैनो के अनुसार छठी प्रतिमा जो रात्रि रातैल - सञ्चा पु० [हिं० राता+ ऐल (प्रत्य॰)] लाल रंग का एक के समय किसी प्रकार का भोजन आदि नही ग्रहण करती। छोटा कीडा जो जुमार को हानि पहुंचाता है। रात्रिमुजग-सशा पुं० [स० रात्रिभुजङ्ग] चद्रमा [को०] । रात्र सज्ञा पुं० [स०] १ ज्ञान । ज्ञानोपदेश । २ रात । रात्रि को०] । रात्रिमट-सञ्चा पुं० [स०] १. राक्षस । २ रात को लूटने या चोरी रात्रक'-वि० [स०] १ रात्रि सवधी । २ रात भर का (को०] । करनेवाला चोर। रात्रक'-सञ्ज्ञा पु० १ वह व्यक्ति जो किसी वेश्या के घर मे एक वर्ष रात्रमणि-सज्ञा पुं० [सं०] १ चद्रमा । २ कपूर (को०) विताए । २ पाँच रात्रि का समय । पचरात्र (को०] । रात्रियोग-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सायकाल । सध्या । रात्रिचर-सज्ञा पुं० [सं० रात्रिञ्चर ] [ सी० रात्रिचरी] १ दे० रात्रिराग-सञ्ज्ञा पुं० [स०] अधकार । अवेरा । 'रानिचर। रात्रिवास-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रात्रिवासस् ] १ अधकार । अवेरा। २. रात्रिदिव, रात्रिंदिवा-क्रि० वि० [सं० रात्रिन्दिव, रात्रिन्दिवा] रात रात के समय पहनने का वस्त्र । दिन । अनवरत । लगातार को०] । रात्रिविगम्-सञ्ज्ञा पु० [स०] प्रभात । तडका । रात्रिमन्य-वि० [ स० रानिम्मन्य ] (दिन) जो वादलो के घिरने वा रात्रिविश्लेषगामी-सज्ञा पु० [ स० रात्रिविश्लेपगामिन्] चक्रवाक । अधकार से रात सा प्रतीत हो [को०] । चकवा पक्षी। रात्रि-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १. उतना समय जितने समय तक सूर्य का रात्रिवेद-मज्ञा पुं० [ स० ] कुक्कुट । मुरगा। प्रकाश न देख पडे। सध्या से लेकर प्रात.काल तक का समय । सूर्यास्त से सूर्योदय तक का समय । रात । निशा । रात्रिवेदी-सज्ञा पुं० [सं० रात्रिवेदिन् ] दे॰ 'रात्रिवेद' [को०] । यौ०-राप्रिंदिव, सविंदिवा = (१) रातदिन । सदा । रात्रिसाम-सज्ञा पुं० [ रात्रिसामन् ] एक प्रकार का साम । २. हलदी । ३ पुराणानुसार क्रौंच द्वीप की एक नदी का नाम । रात्रिसूक्त-सशा पु० [सं०] १. ऋग्वेद के एक सूक्त का नाम । २. रात्रिक'-मश पु० [स०] एक प्रकार का विच्छू । दुर्गा सप्तशती का एक सूक्त । रात्रिक -वि० रात का । रात्रि का । जैसे, पचरात्रिक उत्सव (समा- रात्रिहास-सज्ञा पु० [ सं० ] कुमुद । कूईं । रात्रिहिंडक-मञ्चा पु० [ स० रात्रिहिण्डक ] १ राजाओ के अत पुर का पहरेदार । २ रात्रि मे घूम घूमकर पहरा देनेवाला (को॰) । रात्रिकर-सञ्ज्ञा पु० [स०] १. चद्रमा । २. कपूर । रात्री-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० ] १. रात । २. हलदी। रात्रिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] रात । रजनी [को०] । राज्यध-सशा पु० [ स० राज्यन्ध ] १ जिसे रात को न दिखाई देता रात्रिचर'- सज्ञा पुं० [स०] १ राक्षम । निश्चर । २. चोर । तस्कर । हो। जिमे रतौधो का रोग हो। २ वे पक्षी और पशु लुटेरा (को०) । ३ प्रहरी। रात्रि को पहरा देनेवाला। रक्षक जिन्हें रात को न दिखाई पडता हो । जैसे,-कौपा, बदर । (को०) । ४ उल्लू । उलूक (को॰) । रात्रिचर-वि० रात के समय विचरनेवाला । राज्यट-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ चोर । २ निशाचर [को०) । रात्रिचारी-सक्षा पु० वि० [स० रात्रिचारिन्] दे० 'रात्रिचर' । राथकार्य-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] वह जो रयकार ऋपि के गोत्र मे उत्पन्न हो । रात्रिज-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] नक्षत्र, तारे यादि । राद-सञ्ज्ञा पु० [अ० ] विजली की कडक [को॰] । रात्रिजल-सज्ञा पु० [स०] पोस (को०] । राद्ध-वि० [सं०] १ पका हुआ। रोया हुया । २ सिद्ध । ठीक रात्रिजागर-सज्ञा पुं० [स०] १. कुत्ता । २ रात्रि मे जागरण या पहरा किया हुआ । ३. पूरा किया हुआ। रात्रिजागरद-सञ्ज्ञा पु० [न०] मच्छड [को०) । राद्धात-सञ्ज्ञा पु० [सं० राद्धान्त ] सिद्धात । उसूल । रात्रितिथि-सज्ञा स्त्री॰ [स०] शुक्ल पक्ष की रात । राद्धि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] सिद्ध होने का भाव । सफलता । सिद्धि । रात्रिदोष-सञ्ज्ञा पु० [स०] रात्रि मे होनेवाला अपराध । जैसे,—चोरी राध'-सक्षा पुं० [ स०] १ वंशाख मास । २. धन । सपत्ति । ३ (कौटि०)। अनुग्रह (को०) । ४ अभ्युदय (को॰) । रात्रिद्विप-सक्षा पुं० [सं० रात्रिद्विप्] सूर्य । राध-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पीव । मवाद । रात्रिनाथ-सज्ञा पुं० [स०] चद्रमा (को०] । राधन-सज्ञा पुं० [म०] १. साधने की क्रिया । साधना। २. सात मे )। देना (को०)। /