पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४०३

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स० राधना ४१६२ पिती मिलना । प्राप्ति । ३ सतोष । तुष्टि । ४ वह वस्तु जिससे कोई राधावल्लभी-सञ्ज्ञा पु० [ स०] वैष्णवो का एक प्रसिद्ध संप्रदाय । कार्य किया जाय । सावन । विशेप दे० 'वैष्णव'। राधना--क्रि० म० [ स० अाराधना ] १ पाराधना करना। राधावेधी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० राधावेधिन् ] अर्जुन (को०] । पूजा करना । उ०-साधो कहा करि साधन ते जो पै राधो राधासुत मज्ञा पुं॰ [ सं० ] कर्ण का एक नाम (को॰] । नही पति पारवती को ।—तुलसी (शब्द॰) । २ सिद्ध करना । राधास्वामी-सज्ञा [हिं० ] एक मतप्रवर्तक ग्राचार्य और पूरा करना । ३ काम निकालना । साधना । उनका संप्रदाय । राधना-शा स्त्री॰ [ स० ] गिरा । वाणी [को॰] । धिाष्टमी-सज्ञा स्त्री॰ [ मै० ] भादो सुदी अष्टमी । राधनी-पज्ञा स्त्री॰ [ ] पूजा । उपासना । आराधना [को०] । राधिको-सञ्ज्ञा स्री० [सं०] १ वृपभानु गोप की कन्या राधा । राधरक-सज्ञा पुं॰ [ स० राधरक ] १ हल । २ हलको वर्षा । ३ विशेप दे० 'राधा-'। उ०-प्रभु माया फेरी प्रवल सब योला । बनौरी (को०] । लागे ग्रिह दद । पल न सुहाई राधिका बिन वृदाबनचद । -पृ० रावा-सशा स्त्री॰ [ ] १ वैशाख की पूर्णिमा । २ प्रीति । अनु- रा०, २।५५८ । २ एक मात्रिक छद जिसके प्रत्येक चरण मे राग । प्रेम । ३ धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ की पत्नी का नाम । १३ और है के विश्राम से २२ मात्राए होती है। जैसे,—सव विशेप-इसने कर्ण को पुत्रवत् पाला था। इसी कारण मे करण सुघि बुधि गइ क्यों भूल, गई मति मारी। माया को चेरो का एक नाम 'रावेय' भी था। भयो, भूलि असुरारी। कटि जैहैं भव के फद, पाप नसि जाई। ४ वृपभानु गोप की कया और श्रीकृष्ण की प्रेयसी । रे सदा भजी श्री कृष्ण, राधिका माई।-छद०, पृ० ५१ । विशेप-श्रीमद्भागवत मे राधा का कोई उल्लेख नही है। पर विशेष-लावनी इसी छंद मे होती है। यह छंद प्रस्तार की रीति ब्रह्मवैवर्त, देवीभागवत, आदि मे राधा का वर्णन मिलता है। से नया रचा गया है। इन पुराणो मे राधा के जन्म और जीवन के सबंध मे भिन्न भिन्न राधी-सज्ञ स्त्री० [स० ) वैशाख मास की पूर्णिमा (को॰] । कथाएं दी गई हैं। कही लिखा है कि ये श्रीकृष्ण के बाएं अग राधेय-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] ( धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ की पत्नी से उत्पन्न हुई थी और कही गोलोकवाम के रासमडल मे राघा द्वारा पालित ) कर्ण । इनका जन्म लिखा है। यह भी कहा जाता है कि ये राध्य-वि० [सं० ] आराधना करने के योग्य । प्राराध्य । जन्म लेते ही पूर्ण वयस्का हो गई थी। श्रीकृष्ण के रान-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० ] जघा । जाँघ । उ०-खाइ सेर बोसक साथ इनका विवाह नहीं हुआ था यद्यपि गर्गसहिता आदि की रानैं । धकाधकी हाथिन सो ठाने ।-लाल (शब्द॰) । कुछ इधर के ग्रथा में विवाह की कया भी रख दी गई है। सब जगह श्रीकृष्ण के साथ इनकी मूर्ति और नाम रहता है । रानतुरई - -सज्ञा सी० [हिं० रानी+तुरई ] कहुई तरोई । इनके नाम के साथ ईश या स्वामीवाचक शब्द लगने से राना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'राणा' । श्रीकृष्ण का बोध होता है। राना'- क्रि० अ० [हिं० राचना ] अनुरक्त होना । उ०—कौन ५ एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे रगण, तगण, मगण कली जो भौर न राई । डार न टूट पुहुप गरुपाई । —जायसी यगण और एक गुरु सब मिलकर १३ अक्षर होते हैं। जैसे, (शब्द०)। कृष्ण राधा कृष्ण कृष्ण राधा राधा गा।६ विशाखा नक्षत्र । राना--वि॰ [फा० राना] १ मुंदर । हसीन । २ अच्छे होलडौल का ७. विजली । ८ आँवला । ६ विष्णुक्राता लता । (को०] । राधाकांत-सज्ञा पुं० [ मं० राधाकान्त ] श्रीकृष्ण । रानाई-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० रानाई) सुदरता । सौंदर्य (को०] । राधाकुड-नग पु० [सं० राधाकुण्ड ] गोवर्धन के निकट का एक रानापति-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० राणा+पति] सूर्य । प्रख्यात सरोवर। विशेप-चित्तौर के राना सूर्यवश के माने जाते हैं। राधातत्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० रावातन्त्र ] एक तत्र का नाम जिसमे रानी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० राज्ञी, प्रा० राणी] १ राजा की स्त्री। राजा मयो आदि के अतिरिक्त राया की उत्पत्ति का भी रहस्यपूर्ण की पत्नी। २ स्वामिनी। मालकिन । जैसे,-मधुमक्खियों वर्णन है। की रानी । ३ स्त्रियो के लिये आदरसूचक शब्द । राधापति-सज्ञा पु. ( स० ] श्रीकृष्ण [को०] । रानीकाजर -सज्ञा पु० [हिं० रानी+काजल] एक प्रकार का धान । राधाभेदी-संज्ञा पुं० [सं० राधाभेदिन ] अर्जुन का एक नाम [को॰] । उ०-राजभोग औ रानीकाजर। भांति भांति के सीझे राधारमण-सचा पुं० [सं० ] राधा से रमण करनेवाले, श्रीकृष्ण । चावर ।-जायसी (शब्द०)। राधारमन-सा पुं० [सं० राधारमण ] श्रीकृष्ण । उ०-लीला रापडा-सज्ञा पुं॰ [2] बजर । ऊमर । राधारमन की, मुदर जम अभिराम । -मतिराम (शब्द॰) । रापती-सशा स्त्री॰ [देश॰] एक छोटी नदी जो नेपाल के पहाड़ों से राधावल्लभ-सज्ञा पुं० [सं० ] श्रीकृष्ण । निकलकर गोरखपुर के निकट सरयू मे गिरती है।