रामगिरी ४१६४ रामटेक विशेप-कुछ लोग चित्रकूट को रामगिरि मानते है | पर मेघदूत के लिये इतना अधिक सुखद था कि अब तक लोग इनके राज्य मे जो स्थिति दी हुई है, उससे वह नागपुर ही के पास को धादर्श ममझते हैं, और अच्छे राज्य की उपमा 'रामराज्य' होना चाहिए। से देते है। रामगिरी-सशा स्त्री० [हिं० दे० 'रामकली'। रामचक्रा-सज्ञा पुं० [ म० राम+चक्र] १ वरा नामक पकवान रामगोती-सज्ञा पुं० [ स०] एक मात्रिक छद जिसके प्रत्येक चरण जो उहद की पीठी का बनता है। २ वडा और मोटो रोटी में ३६ मात्राएं होती है । जैसे,—यहि भांति वरणे सुभट गण जो किसान लोग खाते हैं । लिट्टी । वाटो। कहं जीत लव रणवीर। रामचनी-सशा पुं० [ [हिं० राम+ चना ] खटुया बेल । अत्य- रामचगी-सज्ञा स्री० [हिं० ] एक तरह की तोप । उ०—चलै राम- म्लपर्णी । चगी घरा मे धमक । सुने ते अवाज बली वैरि सफै।-पद्माकर रामचिड़िया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० राम + चिडिया ] एक प्रकार का ग्र०, पृ०१०। जलपक्षी जो मछलियां पकडकर खाता है । मछरगा। रामच द्र-सञ्चा पु० [ सं० रामचन्द्र ] अयोध्या के राजा इक्ष्वाकुवशी रामजननी-सशा स्त्री० [सं०] १ रामचद्र की माता, कौगल्या । महाराजा दशरथ के बडे पुत्र जो ईश्वर वा विष्णु भगवान् के २. बलराम को माता, रोहिणी । ३ परशुराम की माता, मुख्य अवतारो मे माने जाते हैं और जिनकी कथा रामायण रेणुका। मे वरिणत है। रोमजना-मज्ञा पु० [हिं० राम+जना (= उत्पन्न) ] १ एफ विशेष—इनका जन्म कौशल्या के गर्भ से हुआ था और इन्होने सकर जाति जिसकी कन्याएं वेश्यावृत्ति करती हैं। वशिष्ठ मुनि से शिक्षा पाई थी। जब ये बालक थे, तभी विशेप-कई बातो में यह जाति गधर्व जाति मे मिलती जुलती विश्वामित्र मुनि इन्हे अपने यज्ञ की रक्षा के लिये अपने साथ होती है, पर साधारणत उससे नीची समझी जाता है। इस वन मे ले गए थे, जहाँ इन्होने अनेक राक्षसो का वध किया था । जाति के लोग प्राय राजपूताने, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में जव यज्ञ समाप्त हो गया, तब ये अपने छोटे भाई लक्ष्मण और पाए जाते हैं। गुरु विश्वामित्र के साथ राजा जनक के यहाँ सीता के स्वयवर २ वह जिसके माता पिता का पता न हो । वर्णसकर । मे गए। वहाँ इन्होने शिवजी का घनुप तोडकर सीता का पाणिग्रहण किया। जब ये लौटकर अयोध्या आए, तब राजा रोमजनी-मशा स्त्री० [हिं० राम+जना (= उत्पन्न ) ] १ रामजना दशरथ इनका अभिषेक करके इन्हे राजगद्दी देना चाहते थे, जाति की स्त्री। २ वेश्या। रडी । ३ वह वो जिमके पिता पर रानी कैकेयी के कहने से उन्होने इन्हे चौदह वर्षों तक वन का पता न हो। उ०—रामजनी सन्यामिनी पटु पटवा को में रहने के लिये भेज दिया । जब ये वन जाने लगे, तब इनकी वाल । केशव नायक नायिका सखी करहिं सब काल । केशव स्त्री सीता और इनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इनके माथ हो (शब्द०)। लिए । इनके वन जाने पर पीछे इनके दुखी पिता दशरय की रामजमानी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० राम+यवानी ( अजवायन ) ] एक मृत्यु हो गई । कैकेयी अपने पुत्र भरत को सिंहासन पर बैठाना प्रकार का बहुत बारीक चावल । चाहती थी, पर भरत ने स्पष्ट कह दिया कि यह राज्य मेरे रामजयती-स्शा सी० [सं० रामजयन्ती ] देवी को एक मूर्ति का बडे भाई रामचद्र का है, और मैं इसे ग्रहण नहीं कर सकता। नाम। पीछे भरत रामचद्र को समझा बुझाकर लाने के लिये वन में भी रामजामुन-सचा पु० [सं० राम + जामुन ] मझोले याकार का गए, पर रामचद्र ने कह दिया कि मैं पिता की आज्ञा से चौदह एक प्रकार का जामुन का वृक्ष, जो प्राय सारे उत्तरी और वों के लिये वन मे पाया हूं। और जब तक यह अवधि पूरी न पूर्वी भारत तथा वरमा और लका मे होता है । हो जायगी, तव तक मैं लाटकर अयोध्या नहीं चल सकता। इमपर भरत इनके खडाऊं ले जाकर और उसे सिंहासन पर विशेप-इसके फल वहुत वडे बड और स्वादिष्ट होते हैं । इसकी लकडी यद्यपि साधारण जामुन की लकडी के समान उत्तम स्थापित करके, इनकी ओर से, इनकी अनुपस्थिति मे शासन करने लगे । वनवास काल मे रामचद्र अनेक वनो और पर्वतो पर नही होती, तो भी इमारत तथा खेती के पीजार बनाने के और ऋपियो आदि के आश्रमो पर घूमा करते थे। दडकारण्य काम मे पाती है। यह छोटी नदियो के किनारे अधिकतर होता है। मे एक बार लका का राजा रावण आकर छल से सीता को हर ले गया। इसपर इन्होन बहुत से वानरो प्रादि को साथ रामजी-सचा पुं० [१० राम + हिं० जौ ] एक प्रकार की जई लेकर लका पर चढाई को और युद्ध मे रावण तथा उसके साथी जिसके दाने साधारण जो से कुछ बडे होते है । राक्षसो को मारकर और उसका राज्य उसके छोटे भाई विभी- राममोल-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० राम + हिं० झूलना ] पाजेब । पायल । पण को देकर अपनी स्त्री सीता को अपने साथ ले पाए । वनवास रामटेक-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० राम+टेक (= टेकडी, पहाडी ) ] नागपुर की अवधि पूरी हो गई थी, इसलिये ये सीधे अयोध्या चले पाए जिले की एक पहाडी जहाँ रामचद्र का एक मदिर है। यह एक मौर वहाँ पाकर सुख से राज्य करने लगे। इनका शासन प्रजा तीर्थस्थान माना जाता है। विशेष दे० 'रामगिरि'।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४०५
दिखावट