पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३१

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रुद्रत्व ४१६० नद्रान अलमी। रुद्र त्व- सज्ञा पुं० [सं०] रुद्र का भाव या धर्म । रद्रता । रुद्रवट-पग पुं० [सं० पानी का नाम जिगमा उलग रुद्रपति- सज्ञा पुं० [ स० ] शिव | महादेव । उ०-रद्रपति छुद्रपति महाभारत में है। लोकपति वोकपति घरनिपति गगनपति अगम वानी ।-गूर रुद्रवत्-पुं० [ म० ] (शब्द०)। रुद्रवदन'-पा० [ 10 ] महादा पाँच गुप। रुद्रपत्नी सञ्चा स्री० [स०] १ दुर्गा का एक नाम । २ अतमी । मद्रदन - वि० पाया गया। रुद्रवान्'-वि० [सं० रदयत् ] गदगमा नेक। रुद्रपीठ-सज्ञा पुं० [सं० ] तानिको के अनुसार एक पीठ या तीर्थ रुद्रवन् - सा ५० १ सोप । २ प्रग्न। ३ । का नाम। रुद्रविशति-रान पी० [4] प्रभा पानिमा लगे या नों रुद्रपुरु - सज्ञा पुं० [सं०] वारहवें मनु रुद्रमावणि या एय नाम । में से अतिम बीग पा पा गगूर, मी' ना रुद्रप्रमोक्ष-सशा पुं० [ सं० ] पुगणानुमार वह स्थान जहाँ मे मिय जी ने त्रिपुरासुर पर वाण चलाया था। रुद्रवीणा-गशा मी० [ मे० ] प्राचीन भागाकार वी वीगा। रुद्रप्रयाग-सशा पुं० [स०] हिमालय के एक तीर्थ या नाम जो रुद्रमर-मरा पुं० [40] एक प्राचीन नार्या नाम । गढवाल जिले में है। रुद्रसावर्णि-गमा [म. ) पुराणानुगार बार मनु TT TIR | रुद्रप्रिया-समा स्त्री० [सं०] १ पार्वती । २ हरें। रुद्र सुदी-ग्री० [ ५० रन्दन । वीपी पर मूर्ति या नाम । रुद्रभद्र -संज्ञा पुं० [सं० ] पुगणानुसार एक नद का नाम । पद्रसू -० [1यह जी जिगन ग्या-र पुत्र उत्पन्न रुद्रभ-सज्ञा पुं० [सं० ] श्मशान । मरघट । पिए हो। रुद्रभूमि-मशा नी० [ म० ] १ ज्योतिष मे एक प्रकार की भूमि। रुद्रस्वर्ग T--IJT 4 [072+71) 70 (z7i7'! २ एमणान | मरघट । रुद्रहिमालय- पुं० [३०] हिमालय पर्वा या चोटी गा नाम । रुद्र भैरवी -सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] दुर्गा की एक मूर्ति का नाम । विशप-यह चाटी चान या पोर पूनों नीमा पर है मोर नदा रुद्रयन-सज्ञा पुं० [ म० ] एक प्रकार का यज्ञ जो रुद्र के उद्देश्य वरफ मे ढो रहती । से किया जाता है। रुद्रहदय--31 पुं० [ ] एक अनिषद् ा ना7 जो प्राचीन दस रुद्रयामल-सज्ञा पुं० [सं० ] तात्रिको का एक प्रसिद्ध ग्रथ जिममे उपनिषदो में नहीं है। भैरव और भैरवी का मवाद है। कदा-मानी [ 10 ] १. गद्रजटा नागना। २. ननिरा नाम रुद्ररोदन-मश पुं० [ म० ] स्वर्ण । मोना । का गपद्रश्य । विदुम लता । ३ मदिराम बरी । मुकरों। रुद्ररोमा-मशा . [ #० ] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । रुद्राफीड-सा पुं० [सं० द्रिाकोट ] श्मगान । नरपट । रुद्रलता-ज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] रुद्र जटा नाम का चुप । रुद्रान मा पु. [ मे०] १ एा पपिड बडा न जो नराल, रुद्रलोक-सज्ञा पुं० [स०] वह स्थान या लोक जिपमे णि प्रौर वगाल, पाशाम और दक्षिण भात में गविस्ता में होता है। रुद्रो का निवाम माना जाता है। विशेप-मके पत्ते मात पाठ अगु नये दो तीन प्रगुर चौडे रुद्रवती-सशा सी० [स० रद्रवन्ती ] एक प्रसिद्ध वनौषधि निमकी और गिना पर मटायर होत हैं। नए निकले हुए पत्तो पर गणना दिव्योपधि वर्ग मे होती है। एक प्रकार को मुलायम रोई होती है, जो पादे कर जाती है। विशप-यह प्राय मारे भारत मे पोर विशेषत उष्ण प्रदेशो जाडे के दिनों में यह फूलना गोर यमत ऋतु मे फलना है। को बलुई जमीन मे जनाशयो के पास प्रौर ममुद्र तट पर इसके फल के प्रदर पान याने होते हैं और प्रत्येर गाने में अधिकता से होती है। इसके चुप प्राय हाथ भर ऊंचे होने एर एक छोटा कटा बीज रहता है। है और देखते मे चने के पोयो के मे जान पडो है। इसके २ इम वृक्ष ना वीज जा गान और प्राय छोटी मिच से लेकर पत्ते मा चन के ममान हा होते ह, शरद ऋतु मे जिनमे प्रापल तक के बराबर होता है। रुद्राय । से पानी को बूदें टपका करती है। काले, पील, लाल और विशेष-इस वीज पर छोटे घाट दान उभर होने है। प्राय शंव सफेद फूलो के भेद मे यह चार प्रकार की होती है। वैद्यक लोग इनमे देद करके मालाएं बनाते और ले या हाय मे के अनुसार यह चरपरो, कहवी, गरम, रमायन, अग्निजनक, पहनते हैं । इमको माला पहनने और उससे जप करने का बहुत वीर्यवधक और श्वास, कृमि, रक्तपित, कफ तथा प्रमेह का अधिक माहात्म्य माना जाता है। कहते हैं, इन बीजो को दूर करनेवाली होती है। काला मिर्च के माय पीसकर पीने में शीतला का भय नहीं पर्या-नवतोया । मजीवनी। अमृतनवा । गेमाधिका । रहता । वैद्यक मे इसे शीतल, दलकारी, प्रोजप्रद, रामनाशक महामासा । चरणकपत्री । मुघानवा । मधुस्रवा । और खांसी तथा प्रसूति प्रादि मे हितकारी माना है।