पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४३२

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रुद्राख ४१६१ रुध्र स० पर्या-शिमाक्ष । भूतनाशन | शिवप्रिय । पुष्पचामर । रुधिरपायी-मज्ञा पुं० [म० रुविरपायिन् ] [ वि० सी० रुधिरपायिनी] रुद्रासी-सशा मी० [सं० रुद्राक्ष ] दे० द्राक्ष'। उ०-मेखल १ वह जो रक्त पीता हो । लह पीनेनाना । २ राक्षम । मिगी चक्र धंधारी। जोगीटा रुद्राख अधारी।-जायसी प्र० रुधिरपित्त-सज्ञा पुं॰ [ 10 ] रक्तपित्त । नकमीर । (गुप्त), पृ० १२६ । रुधिरजोहा -पश सी० [ सं० ] प्लीहा रोग का एक भेद । रुद्राणी-सज्ञा स्त्री० [ स० ] १ रुद्र की पत्नी, पार्वती। शिवा । विशप-वैद्यक के अनुसार इसमे हद्रियाँ शियिल हो जाती हैं, भवानी । २ रुद्रजटा नाम को लता जिसकी पत्तियो आदि का शरीर का रंग बदल जाता है, अग भारी और पेट लाल हो व्यवहार प्रोपथि के रूप मे होता है। ३ एक प्रकार की जाता है और भ्रम, दाह तथा मोह होता है । रागिनी जो कुछ लोगो के मत से मेघ राग की पुनवधू रुधिरवृद्विदाह- सज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार है, पर कुछ लोग इसे जैती, ललित, पचम और लीलावती का रोग जिसमें रक्त की अधिकता से सारे शरीर मे धूपाँ के मेल से बनी हुई सकर रागिनो भी मानते हैं । सा निकलता है और शरीर तथा आँखो का रंग तांबे का सा रुद्रारि-सया पुं० [सं० ] कामदेव । हो जाता है और मुह से वी गव आती है। रुद्रावर्त 1-मज्ञा पुं० [ स० ] महाभारत के अनुमार एक प्राचीन तीर्थ रुधिराध-पशा पु० [ स० रुधिरान्ध ] पुराणानुसार एक नरक का का नाम। नाम । रुद्रावास-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] काशी क्षेत्र, जिममे रुद्र या शिव का रुधिराक्ता-वि० [सं०] १ लहू मे तर या भोगा हुआ। खून से निवास माना जाता है। भरा हुधा । २ लहू का सा लाल । रुद्रिय - वि० [ ] १ रुद्र सबधी । रुद्र का । २ श्रानददायक । रुधिराख्य-मज्ञा पुल [ स० ] एक प्रकार का रत्न या मरण । प्रसन्नता उत्पन्न करनेवाला । ३ भयानक । खौफनाक । विशेप-इसकी गणना कुछ लोग उपरत्नो मे और कुछ लोग रुद्रिय-सज्ञा पुं० श्रानद । प्रसन्नता । मोद [को०] । स्वल्प मणियो मे फरते है। इसका रग बीच में बिलकुल रुद्री'-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] एक प्रकार की वीणा जिसे रुद्रवीणा भी सफेद और अगल बगल ह द्रनील या नीलम के समान होता कहते हैं । है। कहते है, यही रत्न पककर हीरा हो जाता है। यह रुद्री-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० रुद्र + ई (प्रत्य॰)] १ वेद के रुद्रानुवाक् भी माना जाता है कि जो इस धारण करता है, उसे बहुत या अघमर्पण सूक्त की ग्यारह प्रावृत्तियां। २ यजुर्वेद के सुख और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। मद्र तथा विपशुपरक कतिपय मनो का पाठ अध्यायो मे किया रुधिरानन-पला पुं० [सं०] फलित ज्योतिप मे मगल ग्रह की एक वक्र गया सकलन । रुद्राष्टाध्यायी। रुद्रकादशिनी - सज्ञा सी० [ 10 ] रुद्रानुवाको ( रुद्रो ) की या विशेप-जव मगल किसी नक्षत्र पर अस्त होकर उममे पढ़ा अघमर्पण मूक्त की ग्यारह आवृत्तिमा । रद्री । या सोलहवें नक्षत्र पर वक्री होता है, तब वह रुपरानन कह- लाता है। रुद्रोप नेपद मज्ञा स्त्री॰ [ स० ] एक उपनिपद् का नाम । रुविरामय-मज्ञा पुं० [सं०] १ रक्तपित्त नामक एक रोग । २. रुद्रोप्रस्थ-सचा पु० [ स० ] पुगणानुमार एक पर्वत का नाम । बवासीर (को०)। रुधिरपु:--सज्ञा पु० [ स० रुधिर ) दे० 'रुधिर' । उ०—-गहि सग सूर रुधिराशन -प्रज्ञा पुं० [स०] १ खर राक्षस का एक सेनापति लीनी हबकि जै जै मुर प्राकास कहि । रुघ धार छुट समुह जिमे श्रीरामचद्र जी ने मारा था । २ राक्षम । चली मनो मेर सरसत्ति बहि ।-पृ० रा०, ११६५३ । रुधिराशन-वि० रक्त ही जिसका प्राहार हो। रक्तमान करके रुधिर-सज्ञा पु० [सं०] १ शरीर में पा रक्त। शोणित । जीनवाला। लहू । खून । ( मुहा० के लिये २० 'खून' के मुहा० )। २ रुधिराशी- वि० [ म० रुधिर शिन् ] रक्त पान करनेवाला । लहू रक्तवर्ण । लाल रग (को०)। ३ कुकुम । सर । ४ मगल पीनेवाला। ग्रह । ५ एक प्रकार का रल । विशेष दे० 'विराज्य'। रुधिरासी-वि० [ मं० रविराशि --मधिराशी ] लह पीनवाना। रुधिर-वि लाल । लाल रंग का । रक्तवर्ण का [को०)। रुधिराशी। उ०-राम नगाहे नहम अठामा। मूरि भयकार रधिरगुल्म-सशा पु० [ सं० ] सियो का एक प्रकार का रोग । भट बिरामी।-रघुराज (शब्द०)। विशेप-इससे पेट मे शूल और दाह होता है और एक गोला रुधिरोद्गारी'- '-मज्ञा पु० [ म० रविगेद्गारिन् । बृहस्पति के माठ सा घूमता है। इसमे पित्तगुल्म के सब चिह मिलते है और मवत्सरो मे से सत्तावनवां मवत्सर । कभी कभी इससे गर्भ रहने का भी धोखा होता है । कहत हैं. रुधिरोद्गारो - वि० रक्त या यमन करनवाला। जून की के कने- गर्भपात होने पर अनुचित प्राहार विहार करने के कारण वाला (को०] । ऋतुकाल में वायु कुपित होती है, जिसरी, होकर -तज्ञा पुं० [ स० रुधिर ] ६० रुधिर' । उ.-पोया दूध रध्र है गोतामा बन जाता । प्राया। मुई गाय तब दोप लगाया ।-कवीर ग्र०, पृ० २४५ । गति।