पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४५३

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रोक ४२६२ रोगहर वह पांच सौ रोक मांगते है। इसी से कुछ अटक है। पर्यावाद । 'पाम ज। उपताप । थपाटव। श्रम। ठेठ०, पृ०८। माया थाल्पा रोक-सज्ञा पुं० [सं० रोक( = नकद )] १ नगद रुपया । रोकट । रोगकारक-17. [ म० ] पोगा पैदा गरनेगाना । व्याधिजनक । उ.-~यावन तहा पठावह दहि नाच दम रोक । —जायनी रोगकाष्टा पुं० 1 4० ] 774म की ली। (शब्द०) । २ नगद व्यवहार वा मौदा । ३ दी। । ४ घिद्र । रोगग्रस्त - वि० [१०] गग से पीड़ित । बीमारी में पटा हुपा । ५ नाका । ६ कप । कपकपी (को०) । रोगन'-वि० [सं०] ग को नागवाता । रोकोंक-सशा सी॰ [हिं० ] ६० 'राकट क' । रोगन'-TI पुं०१ दवाई। जावेद (को०। रोकटोक-संशा सी० [हिं० रोकना+टाकना ] १ बाचा । प्रतियय । रोगा- पुं० [० निसि । वैट । हकीम (को०] । २ मनाहो । निपथ । जन,-श्वर न चल जायो, कोई राक टोक करनेवाला नहीं है। रोगदई-47 1 [हिं० रांगा ] १ अन्याय । वेशाना । रोकड-ज्ञा स्त्री॰ [ स० रोक (= नाद)] १ नगद रपया पैगा रोगदया- स.7 पी० [हिं० रोगा। - गाद'। उ०-गेलन आदि, विशेषत. वह रकम जिसमे से प्राय व्यय हाता है । नगद सात परापर न जीनत का गोदया । तुलसी रुपया । २ जमा । पन । पूंजी। (शब्द०)। मुहा०-रोकड मिलाना = प्राय व्यय का जोट लगाकर यह दसना रोगन-1_j० [फा० रोगन ] १ तेन । निशाई। २ पतला कि रकम बढतो या घटती तो नहीं। लेप जिमै मिली ना पर पोतने ने चमक, चिकनाई और रग धायें। पानिश । वारनिश । ३ नाय प्रादि ने बना यौ०-रोकड वही । रोकड बिक्री । हुमा माला निो मिट्टी के बर्तनों प्रादि पर चटाने हैं। ४ रोकडवही-मज्ञा स्त्री॰ [हिं० रोकड +चही ] वह यही या किताब नमः पो गुतागम कने के तिरे पुगुम या बरें के तेन से जिसमे नकद रुपए का लेन दन लिसा रहता है। बनाया मा ममाला। रोकडबिनी-सज्ञा स्त्री० [हिं० रोपट+विका ] नकद बान पर को यो०-रोगनजोश = एक तरल साउन । रोगनदाग = छोक्ने हुई विक्री। ला चम्मच । रोगनदार । रोगनफरोश संलविता । तेली। रोकडिया-मज्ञा पुं० [हिं० रोकट +इया (प्रत्य॰)] रोकड रपने- रागनदार-वि० [फा०] जिगप रोगन क्यिा गया हो। पालिरादार । वाला । नकद रपया रखनवाला । सजाची । मुनीम । चमकीता। रोकथाम-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० रोकना + यामना) द० 'रामटोक' । रोगनाशक- [१०] यो पार करनेवाला । रोकना-[क्र० म० [हिं० रोफ+ना (प्रत्य०) J१ गति का अवरोध रागनिदान- पुं० [ } रोग के लक्षण और उत्सत्ति के कारण करना। चलते हुए को पामना । चलन वा बढन न देना । श्रादि को पहनान । तापी । जैसे,गाडी राकना, पानी की धार सकता। रोगनी-वि० [पा० ] रोगन किया हुप्रा । रोगन लगाया हुआ। सयो क्रि०--देना । - लेना । रोगनदार | जी-रागनी पती । २ जाने न देना । कही जाने से मना करना । ३ किमी क्रिया रोगपरीसह पुं० [ म० ] उग्न रोग हाने पर कुछ ध्यान न या व्यापार को स्थगित करना। किमी चली प्राती हुई नात करके उमका महन । (जन)। को वद करना। जारी न रखना। ४ मार्ग मे इस प्रकार रोगप्रेष्ठ- पुं० [ Jपार । ज्वर पो०] । पडना कि काई वस्तु दूसरी ओर न जा सके। छेवना । जैसे,—रास्ता रोकना, प्रकाश रोकना। ५. अडचन डालना। रोगभू-ला पु० [सं०] शरीर । देह (को०] । बाधा डालना। ६ वाज रखना। वर्जन करना। रागमुरारि -सा पुं० [सं० ] ज्वर की एक रतोषध । करना । ७ ऊपर लेना। प्रोढना। जैसे,-तलवार को लाठी विशेप पारा, गधा, विप, लोहा, निबुट और ताबा सम भाग पर रोकना । ८. वश मे रसना। प्रतियध में रसना । काबू और शीशा अच नागलकर पीस डाले और दो दो रती की मे रखना । सयत रखना। जैने,-मन को रोकना, इन्चा गोलिया बना ले। को रोकना । ६ बढती हुई मेना या दल का सामना करना । रागराज-शा पुं० [सं०] १ ज्दर । २ क्षय रोग । तपेदिक | रोक्य-सचा पुं० [ स० ] रक्त । लहू । नून (को०] । रोगशातक-शा पु. [ सं० रोगशा ता] वद्य । हकीम [को०) । रोख -सज्ञा पु० [ स० रोप] दे० 'रोप' । रोगशिला-सा ली। स० ) मन शिला । मैनसिल। रोग-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] [ वि० रोगी, रग्न ] १ वह अवस्था जिससे रोगशिल्पो-तमा पु० [सं० ] सानालू का पेड । शरीर अच्छी तरह न चले और जिसके बढ़ने पर जीवन मे रोगह-सचा पुं० [सं० ] दया । प्रौपच [को॰] । सदेह हो। शरीर भंग करनेवाली दशा । बीमारी । व्याधि। रोगहर-संज्ञा पुं० [ ] १ वह जो रोगो का हरण करे। २. दवा । मोपच (को०)। so स० स० मर्ज।