पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४६६

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। । - वि० लवा ४२२७ लँगरैया जैसे, लवा पादमी । ३ (ममय) जिमका विस्तार अधिक हो। हो । लवे शाठवाला । २ ऊँट । २ एक प्रकार का क्षेत्र- जैसे,—(क) गरमी मे दिन बहुत लबा होता है। (ख) तुम तो पाल देवता। सदा लवी मुद्दत का वादा करते हो। ४ विशाल । दीर्घ । वड़ा। लभ- सज्ञा पु० [सं० लम्भ प्राप्ति । पाना । लाभ । मिलना । प्राध. जमे,-इतना लबा खच करना ठीक नहीं । गम (को०)। लगा सशा स्त्री॰ [ पु० लम्वा ] १ दुर्गा । २ लक्ष्मी । ३ उपहार । लभक-वि० [स० लम्भक ] प्राप्त करनेवाला । पानेवाला (को०) । घूस । रिएयत । ४ रिक्त तुती । कटु तु नी । तितलौकी (को०) । लभन-सा पु० [ सम्मन १ ध्यान । २ वाटना । फलक । लवाई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० लया ] लवा होने का भाव। लापन । ३ प्राप्ति । श्रावगम (को०)। जैसे,- (क) इस जमीन को लबाई पचास गज है। (स) यह लभनाय-वि० [ सं० लम्भनीय प्राप्त करने याग्य । प्राप्य (को॰] । कपडा लबाड मे कुछ कम है। लभा-शा स्त्री॰ [ स० सम्भा] प्राचीर, श्रावेष्टन अवरोध, घादि का यौ० - लवाई चौडाई = लबान और चौडान । एक प्रकार । वाट” खला (को॰) । लवान-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लवा ] लवाई। लभुक [ स० लम्भुक ) निरतर प्राधगम या प्राप्त करनेवाला । लवाना-क्रि० स० [हिं० लबा ] लवा करना । फैलाना । बढाना । जिसे बरावर प्राप्ति या लाभ होता रहे (को०। लवायमान वि० [ म० लम्बायमान ] १ जो लबा हो। दे० 'लव- लॅगटा-वि० [ म० नग्न, हिं० नगा+टा (प्रत्य॰)] [वि० सी० मान' । २ लेटा हुमा। लेंगटी ) १ निर्वस्त्र । नगा । नग्न । २ शरारती । नटखट । लविक-सज्ञा पुं० [ म० लम्विक ] कोकिल [को०] । लॅगटी-सजा सी० [हिं०] १ लंगाटी। २ पर से विपक्षी के पैरों लावको- संज्ञा स्त्री० [० लम्विका ] गले के प्रदर कीघटी। उ०- में मारना जिससे वह गिर पडे । अडाना । नासिका तालका प्रियुटी ध्यानी । लविका उनीट पीव गगन लँगड़ा-पि० [फा० लग+हिं० डा (प्रत्य॰)] १ व्यक्ति या पशु पानी।-प्रारण०, पृ० ७३ । पादि जमका एक पर बेकाम या टूटा हुआ हो। २ जिसका लवित-वि० [स० लम्बित] १ लग। २. लटकता हुआ (को०) । एक पाया टूटा हो । जैसे-गुमी, साट आदि । ३. अवलबित । आधारित (को॰) । ४ दूना हुआ। धंसा लॅगड़ा-सज्ञा पुं० [ दश० ] एक प्रकार का बहुत वाढेया कलमी ग्राम हुभा (को०)। ५ कार्यच्युत । पदच्युत (को०)। ६ शब्दित । जा प्राय वाराणसा में हाता है। ध्वनित (को०)। लँगड़ाना-क्रि० अ० [हिं० लगडा | चलने मे दोनो या चारो परो का ठोक ठाक और बरावर न बैठना, वाल्क किसी एक पर का लवी-सशा स्त्री॰ [ स० लम्बी] १ बीहि से निमित एक खाद्य पदार्थ । २. पुष्पित शाखा । फूल से भरी डाली [को०) । कुछ एक या दबकर पटना । लग करत हुए चलना । लंगड़े होकर चलना। लवो-वि० [ स० लविन् ] अवलांवत । लटकनेवाला [को०। लवी-वि० सी० [हिं० लवा ] लया का स्त्री लिंग रूप । लँगड़ी- '-~सका सी० [हिं० लगडा ] एक प्रकार का छद । उ०--साज मुहा०-लबी तानना-लेटकर सो जाना । उ०-इस समय मेरे आलं अवज म, तेहै प्रकाश चहु पार । सब तिथि निशि में अतिरिक्त सब लवी ताने सोते होगे। -हाराव (शब्द०)। प्रतिथि सी राकी का अनार । --गुमान (शब्द०)। लबी साँस लेना = अत्यत दु ख या पेद से माँस लेना । ठढी लॅगडी--वि० [हिं० ] बली । बलवान् । जारावर । सास लेना। लॅगडी'-वि० स्त्रा[फा० लग ] लंगडा का स्ला रूप । लविनी-सशा सी० [सं० लम्बिनी] स्कद की एक मातृका का लॅगड़ा --सच्चा स्त्री॰ लगटी । अडानी । नाम (को०]। लॅगरा--सच्चा सी० [हि० लगर ] ढोठ । नटखट । शगरतो। ल बुक-पशा पुं० [० लम्बुक] १. एक नाग का नाम । २ ज्योतिष लॅगरई- --सज्ञा खा० [हिं० लगर ] ढिठाई। शरारत। नटसट- मे एक प्रकार के योग जिनको सख्या पद्रह है। लवक । पन । उ०--बाधो पाखु कोन नोह घार । बहुत लंगर कीन्ही मोमा भुज गहि रजु काजल सा जोरै ।- सूर (शब्द॰) । लबुपा-सा रखी० [सं० लम्बुपा ] सतलडा हार (को०] | लॅगराई-सका खी० [हिं० लगर+पाई (प्रत्य०) } ढिठाई । लव-वि० [हिं० लबा ] लवा । (प्रादमी के लिये, व्यग ) । शरारत । उ०-अजहूँ छाउगे लेंगराई दाउ कर जोरि जननि लवोतरा-वि० [हिं० लबा + प्रोतरा (प्रत्य॰)] जो प्राकार में कुछ लवा पं पाए।-सूर (शब्द०)। हो । लबापन लिए हुए । जेम-ग्राम ये फन लबोतरे होते है। लॅगराना।-मि० भ० [हिं० लगड ] ८० 'संगटाना'। लंबोदर -उरा पुं० [सं० लम्बोदर ] १ गणेश । २ वह जो बहुत लॅगरी-सज्ञा सी० [हिं० लगर ] दे० 'लंगराई'। अधिक रातारा। पेटू । लॅगरैया-सदा सी० [हिं० लगर ] ढापन । शरारत । धृष्टता । यो०-लवोदरजननी = गणेश की माता, पार्वती। उ०-सूर स्याम दिन दिन लगर नया दूरि फरी लंगरया ।- संपोष्ठ-सा पुं० [सं० लम्बोष्ठ, लम्बो ] १. वह जिसके होठ लंबे सूर (शब्द०)। ।