पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/४६७

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HO काठ। लँगोचा ४२२८ लकलका लॅगोचा-सज्ञा पु० [ दश०] जानवर की प्राँत जो मसालेदार कीमे से लकड़दादो-सग पुं० [हिं० दादाम्रो का भी दादा । अति प्राचीन भरकर और तलकर खाई जाती है । कुलमा । गुलमा । पुरखा । (व्यग्य)। उ०-एक शार । दांत पीसकर, हाय लॅगोट, लॅगोटा-सद्भा पु० [ लिड्ग+ प्रोट ] [ सी० लंगोटी ] उठाकर, शिखा खोलते हुए चाणक्य का लकडदादा बन कमर पर बांधने का एक प्रकार का बना हुआ वस्त्र जिससे केव न जाऊंगा।-स्कद०, पृ० १०६ । उपस्थ ढका जाता है। लकडवग्या-सरा पुं० [हिं० लकडी+ बाघ ] एक मामाहारी विशप-यह प्राय लबी पट्टी के प्राकार का अथवा तिकोना होता जगली जतु जो भेटिए म कुछ बड़ा होता है। यह कुत्तों का है, जिसमे दोनो ओर कमर पर लपटने के लिये वद लगे रहते माम बहुत पसंद करता है। लग्घड। हैं । प्राय पहलवान लोग कुश्ती लडने या कमरत करने के लकडहारा-नशा पु० [हिं० लकड़ी + हार ] जगल से लकडी तोड- समय इम पहना करते हैं । रुमाली। कर बेचनेवाला। यो०-लगोट फा कच्चा या ढीला = विषयो। कामी। लंगोट- लकडा-मज्ञा पुं० [हिं० लन्ड़ी] १ लफडी का मोटा कुदा । वद = ब्रह्मचारी। स्त्रोत्यागो। लक्ष्ड । २ वाजरे, अरहर आदि का मूसा उठन। मुहा०-लगोट कसना या बाँधना = लडने को तैयार होना । लंगोट रखना = (१) 'लगर लंगाट रखना'। (२) पहलवानी लकड़ाना-क्रि० अ० [हिं० लकड़ा+ना (प्रन्य०)] १ किसी वस्तु फा सूबकर नकदी की तरह कटा हो जाना। २ दुबला छोड देना। होना । शरीर सुखकर नकटी की तरह हो जाना। लॅगोटी 1-सज्ञा स्त्री० [हिं० लंगोट + ई (प्रत्य॰)] कोपीन । कछनी । भगई । उ-रोटी गहे हाय मे, सुचोटो गुहे माथ मे, लँगोटी लकडिया-क्रि० अ० [हिं० लकडो ] दे० 'लकडा'। कछे नाथ साथ बालक विलासी है ।--(शब्द॰) । लकड़ो-सज्ञा स्त्री॰ [सं० लगुड ] १ पेड का कोई स्थूल अग (डाल, मुहा०—लैंगोटिया यार = बचपन का मित्र । उस समय का मित्र, तना प्रादि) जो कटकर उससे अलग हा गया हो। काष्ठ । जब कि दोनो लंगोटो बांधकर फिरते हों। लँगोटी पर फाग खेलना = थोडा हा साधन होने पर भी विलासी होना । कम विशेप-इनका व्यवहार प्राय. मेज, कुरमी, किवाडे आदि सामान सामर्थ्य होने पर भी बहुत अधिक व्यय करना । लँगोटो बँध- बनाने मे हाता है। वाना = बहुत दरिद्र कर देना। इतना धनहीन कर देना कि २ ईधन | जलावन । पास मे लंगोटो के सिवा और कुछ न रह जाय । लँगोटी विकवाना = इतना दरिद्र कर देना कि पहनने के वस्त्र तक न मुहा०-लकड़ो देना = मुरदे को जलाना । ३ गतका । ४ छडी। लाठो। रह जाय। लँडुरा'-वि० [दश० या सं० लाङ्गुल] विना पूंछ का। जिसको सब मुहा-लकड़ा सा = वहुत दुबला पतला। लकड़ी चलना = पूछ कट गई हो (पक्षी)। २ आवारा | नगा । लुच्चा। लाठो स मार पीट होना। लकड़ी होना = (१) सूखकर काटा ल-सज्ञा पुं० [सं०] १ इद्र । २ पृथ्वी । ३ छद शास्त्र मे लघु हाना । बहुत दुबला पतला हाना । (२) सुखकर बहुत कडा हा जाना । जैस,-राटा सूचकर लकड़ी हा गई । माया के लिये प्रयुक्त साक्षप्त रूप (को०)। ४ पाणिनि व्याकरण मे क्रिया के काल एव अवस्था के लिये प्रयुक्त विशेप सच्चा । लक दुक-वि० [अ० ला दा] १ (मदान) जिसमे वृक्ष या वनस्पति ४ पचास की सख्या (को०)। आदि कुछ भा न हा । बजर या चाटयल (मैंदान) । २ साफ । चक्रना। स्वच्छ। लउ-सञ्ज्ञा ली [हिं० लो ] लाग । लगन । लौ । लउओ-सज्ञा पुं॰ [ स० लावुक ] दे० घिया' । लकब-वरा पुं० [य. लकब ] उपाधि खिताब । पदवो। क्रि० प्र०-दना । - पाना ।-मिलना। लउको-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० लावुक ] दे० 'घिया' । लउटी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० लगुड ] लकुटी। लकुडी। उ०-बाटे लकारेयाज-सज्ञा जा [हिं० लकडी, लकरा+श्या (प्रत्य०)। दे० खेल तरुन वह सोवा। लउटो बूढ़ लेइ पुनि रोवा ।--जायसी 'लाडा'। उ.-उठत लकारया टाक तामर पाखन में आया।-व्रज० न०. पृ० १०८ । (शब्द०)। लक'-सज्ञा पु० [सं०] १ ललाट । २ जंगली धान की बाल [को०] । लफरी-संशा खा. [ म० लकुटा ] . 'लकडा' । लफ-सशा पुं० [अ० ] किस्मत । भाग्य । लकलक'-सज्ञा पु० अ० लक्लकj १ लवा गरदन का एक पक्षो। ढेंक । २ जाम । जिह्वा (फो०) । लकच-सञ्चा पु० [ ] एक फल । दे० 'लकुच' को०] । लकड़तोड-वि० [हिं० लकड़ी+तोड़ ] लकडी की तरह कहा। लकलक-वि०१ बहुत दुवला पतला । २ लवे परोवाला। जिसकी बहुत कडा (व्यग्य) । उ०—इनका लकाडतोड जूता पहनकर टांगें लबी हो। पेशकार साहव बडे साहब के इजलास पर गए।-फिसाना, लकलका-सञ्ज्ञा पुं० [अ० लक्लकह ] लालक पक्षो को तोखो भा० ३, पृ०४६ आवाज । रटन । उ०-बमुसाफिरत हृदोस यान लकलका उसे HO