पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५०४

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ललकि ४२१५ ललित म० HO O ललाफ - सा पुं० [स०] शिश्न । लिंगेंद्रिय । ललाटतप-वि० [स० ललाटन्तप] १ शिर को जलाने या तपाने- वाला ( सूर्य ) । २ अति पीडादायक (को० । ललाटतर-नशा पु० सूर्य को०] । ललाट-पज्ञा पुं॰ [ स०] १ भाल | मस्तक । माथा। उ०-नीको लसत ललाट पर टीको जटित जराय । छ वहि बढावत रवि मना समि मडल मे पाय ।-बिहारो (शद०)। मुहो-ललाट में लिखा होना = भाग्य मे होना। किस्मत मे होना। २ भाग्य का लेख। किम्मत का लिखा। जैसे,—जा ललाट मे होगा, वही हागा। ललाटक-शा पु० [ म० ] १ भाल । २ दे० 'ललाट' । ३ सुदर मस्तक किो०] । ललाटतट-ज्ञा पुं० स० ] दे० 'ललाटपटल'। ललाटपटल-तग पु० [ ] मस्तक का तल । माथे की सतह । उ०-भृकुटि मनाज चाप छ बेहारी। तिलक ललाटपटल दुतिकारी।-तुनी (णन्द०)। ललाट पट्ट- रक्षा पु० [सं० ] दे० 'ललाटपटल' (फो०] । ललाटफलक--सज्ञा पुं० [ ] ललाटपटन। ललाटरेखा-जा नी• [ स०] १ कपाल का लेख । मस्तक पर ब्रह्मा का किया हुप्रा चिह्न जिसके अनुसार ससार मे प्राणी का सुख या दुख माना माना जाता है । भाग्यलेख । २ ललाट पर को रखा । मस्तक पर की लकीर (को०)। ३ मस्तक पर लगाया हुआ रगीन तिलक (को०)। ललटलेखा-चा श्री. [ स०] दे० 'ललाटरेसा' [को०] । ललाटाक्ष-शा पुं० [० ] शिव जिनके तृतीय नेय का ललाट पर होना पुराणो मे वरिणत है। ललाटाक्षी-सा स्त्री॰ [ ] दुर्गा। ललाटिका-मा सी॰ [ म०] १ माथे पर बांधने का एक गहना । २ मा पर का टीका । तिलक । ललाटूल-वि० [ स० ) ऊंचे या सुदर मस्तकवाला [को॰] । ललाट्य-वि० [ स० ] ललाट सवधी । ललाट के योग्य [को० ] । ललानtgt-क्र० अ० [स० ललन (= लालच करना ) ] किसी वस्तु को पाने की इच्छा अधीर होना । लोभ करना। ललचना । लालायित होना । जैसे,—तुम सब कुछ खाते हो, फिर भो ललाते रहते हो। उ०—(क) नीच निरादर भाजत कादर कूकर टूकन हतु ललाई ।–तुलमा (शब्द०)। (ख) वृम गात ललात जा रोटिन को घरवात घरै खुरसा खरिया। तुलसी (शब्द०)। विशेप-'किमी वस्तु को ललाना' ऐसे प्रयोगो मे 'को' कर्म का चिह्न नहीं है, 'के लिये' के अर्थ मे सप्रदान का चिह्न है । ललाम'-० [ स० ] १ रमणीय । सुदर। वढिया। उ०—गढ़ो रूप ललाम ले सन्मुख मेरे भेट । -शकुंतला, पृ० ६१। २. लाल रंग का । सुर्ख । उ०-प्याम पै ललाम श्री ललामन पं स्याम ऐसी मोभा सुभ सुभित है नाना रग गुल की। -गोपाल (शन्द॰) । ३. श्रेष्ठ । बडा । प्रधान । ४ मस्तक पर लक्षण से युक्त । चिहगला (को०)। ललाम -सज्ञा पुं०१ भूपण । अलकार । गहना । २ रन । उ०- रामनाम ललिन ललाम कियो लाखन को, बेडा कूर कायर कपूत कौडो प्राव को।- तुलसी (शब्द॰) । यौ०-चद्रमाललाम = शिव, जिनका भूषण चद्रमा है। उ०- चपरि चढायो च.प चद्रमालताम को -तुलसी (शब्द०)। ३ चिह्न । निशान । ४ दड और पताका । ध्वज । ५ सीग । शृग । ६ घोड़ा । ७ धोडे या गाय के माथे पर का चिह्न । अर्थात् सरे रग का चिह्न। ८ धोड का गहना । ६. प्रभाव । १० घोडे या सिंह को गर्दन पर का बाल । अयाल । ११ कतार । पक्ति । श्रेणो (को०)। १२ पुच्छ। दुम (को०)। १३ तिलक । लल ट पर का तिलक (को॰) । ललाम'-सशा पु० [ स० ललामन् ] १. प्राभूपण । साज सज्जा । २ अपने वर्ग में उत्कटतम वस्तु। ३ साप्रदायिक चिह्न वा तिलक । ५ दे० 'ललाम'-४ ओर १२ । ललामक-सज्ञा पुं॰ [सं० ] माथे मे लपेटने की माला । ललामी'-सञ्ज्ञा स्त्री। ] कान मे पहनने का एक गहना । ललामी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ललाम + ई (प्रत्य॰)] १. सुदरता । २ लालिमा । लालो। सुखा । ललारी-सज्ञा पुं० [ सं० ललाट ] ललाट । लिलार । उ०-इसके ललार की खाल सिकुड गई या, दांत और ओठ दोनो बदरग पड़ गए थे।- श्यामा०, पृ० १४५ । ललित-वि० [स० ] १ सु दर । मनाहर । २ ईप्सित । मनचाहा । प्यारा । ३ हिलता बोलता हुा । चलता हुअा। ४ निर्दोष । सरल (को०) । ५ क्रीडाशील । विनोदी (को०)। ६ रसिक । रसिया (को०)। ललित-सशा पुं० १ शृगार रस मे एक कायिक हाव या अगचेष्टा । विशेप-इममे सुकुमारता ( नजाकत ) के साथ भी, खि, हाथ, पर आदि श्रग हिलार जाते है। कही भूपण पाद से सजाने को ल.लत हाव कहा है। २ एक विपम वर्णवृत्त जिसक पहले चरण मे सगण, जगण, सगण, लघु, दूसरे चरण मे नगण, सगण, जगण, गुरु, तीसरे मे नगण, नगण, मगण, सगण, और चोय मे सगण, जगण, सगण, जगण होता है । जैसे-सब त्यागिए असत काम । शरण गहिए सदा हरी । भव जनित सकल दु ख टरी। भाजए अहोनि,श हरी, हरी, हरी । ३. कुछ आचार्यों के मत से एक 'प्रलकार जिसमे वर्ण्य वस्तु ( बात ) के स्थान पर उसका प्रतिबिंब वर्णन किया जाता है। जैम,-कहना तो यह था कि 'राम को गद्दी मिलनी चाहिए थी, पर बनवास मिला।' पर गोस्वामी तुलसीदास जी इमे इस प्रकार कहते हैं-( क ) लिखत स०