पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५१२

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लहरदार ४२७३ लहरिया मन का कि० प्र०-याना ।-उठना । लहरा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० लहर ] १ लहर । तरग । २ मौज । मुहा०-लहर लेना= समुद्र के किनारे लहर मे स्नान करना। मानद । मजा । ३ वाजो की वह गत जो प्रारभ में नाचन या २. उमग । वेग। जोश । उठान । जैसे,-पानद की लहर । गाने के पहले समां बांधन और ग्रानद वढाने के लिये बजाई उ.-फूलो धेनु, फूले धाम, फूली गोपी अग अग फिर तरु।र जाती है । (इसमे कुछ गाना नही होता, केवल ताल और स्वरो प्रानंद लहर के ।—सूर (शब्द०)। ३ मन को मौज । न की लय मात्र होती है ।) ४ कुछ देर तक बादलो का बरसना । मे श्रापसे आप उठी हुई प्रेरणा । मन मे वेग के साथ उनमन कुछ समय तक जोगे की वर्षा होना । झर । झडो । भाग। भावना। ज से,—उनके मन को लहर है, आज इधर हो लहरा-सज्ञा पु० [ दश० ] एक प्रकार की घास । निकल पाए। ४. शरार के अंदर के किमी उपद्रव ( जसे, लहराना-क्रि० अ० [हिं० लहर + पाना (प्रत्य॰)] १ हवा के झोके वेहोशी, पीडा आदि) का वेग जो कुछ अतर पर रह रहकर से इधर उधर हिलना डोलना। प्रापित होना । लहरें ग्वाना। उत्पन्न हो। झोका । जैसे,—साँप के काटने पर लहर पाती जैसे,—खेत लहराना, या खेतो मे धान लहराना, लता लहाना है। उ०—(क) सुनि के राजा गा मुरझाई। जानौ लहरि बाल लहराना, पताका लहराना । उ०—(क) प्रातप पर्यो सुरुज के प्राई।-जायसी (शब्द०)। (ख) सूर सुरति तनु प्रभात ताहि सो खिल्यो कमलमुख । अलक भीर लहराय जूय की कछु पाई उतरत लहरि के ।- सूर (शब्द०)। मिलि करत विविध सुख । -व्यास (शब्द॰) । (ख) मनु प्रगट मुहा०-लहर देना या मारना = रह रहकर किसी प्रकार की मनोरथ की लता ललकि ललकि लहराति है ।-गोपाल पीडा उठना। सांप काटने की लहर = साँप काटे आदमी की (शब्द०)। २. हवा का चसना या पानी का हवा के झाके मे वह अवस्था जिसमे वेहोशी के वीच बीच में वह जाग उठता उठना और गिरना। वहना या हिलोर मारना । ३ सीधे न है। उ०-लामो गुनी गोविंद को बाढो है अति लहरि । चलकर मांप की तरह इधर उधर मुडते या झोका खाते हुए —सूर (शब्द०)। चलना । जैसे,—यह लकोर लहरातो हुई गई है। ५ आनद की उमग । हर्प या प्रसन्नता का वेग । मजा । मौज । उमग मे होना । उल्लास में होना। जैसे,—यह मुनकर उनका जैसे,-वहाँ चलो, बडी लहर प्रावेगी। मन लहरा उठा । ५ किसी वस्तु के लिये उत्कठिन होना । प्राप्त यौ०-लहर बहर = सब प्रकार का प्रानद और सुख । करने की इच्छा से अधीर होना । लपकना । जैसे,—उसके लिये मुहा०-लहर आना = मानद पाना । लहर लेना या मारना % वह लहरा उठा । ६ आग की लपट का निकलकर इवर उघर पानद भोगना। मौज करना। हिलना । दहकना । भडकना । उ०- श्रीपति मुकवि यो वियोगो ६ आवाज की गूंज । स्वर का कप जो वायु मे उत्पन्न होता कहरन लागे, मदन को पागि लहरान लागो तन मे ।-श्रीपति है । ७ वक्र गति । इधर उधर मुडती हुई टेढ़ी चाल । जसे,- (शब्द०)। ७ शोभित होना । लसना । विराजना। शोभा- वह लहरें मारता चलता है। पूर्वक रहना । उ०—(क) कहे पद्माकर अरीन को प्रवाई पर साहब सवाई की ललाई लहराति है । मनाकर (शब्द०)। मुहा०-लहर मारना या देना= सीधा न जाफर इधर उधर (ख) त्याग भय भाव चहूं घूमत अनद भरे विपिन विहारी पर मुखसाज लहत ।-(शब्द॰) । ८ बरावर इधर उधर मुडती या टेढी होती हुई जानेवाली रेखा । चलते सर्प को सी कुटिन रेखा । ६ कसीदे की धारी। १० लहराना-क्रि० स० १ हवा के झोके मे इधर उधर हिलाना या हवा का झोका । ११ किसी प्रकार की गध से भरी हुई हवा हिलने डोलने के लिये छोड देना । जैसे,—'सर के बाल फा झोका । महक । लपट । उ०-खुलि रही खूब खुसबोयन लहराना। २ सीधे न चलाकर सांप की तरह इधर उधर को लहरि तैसे सीतल समीर डालं तनिफऊ न डोली मैं।- मोडते हुए चलाना। वक्र गति में ले जाना। ३ बार वार निहाल (शब्द०)। इधर से उधर हिलाना डुलाना । उ०-सूरदास प्रभु सोइ लहरदार-वि० [हिं० लहर + फा० दार (प्रत्य॰)] १ जो सीधा न कन्हैया लहरावति मल्हरावति है ।-नूर (शब्द०)। जाकर टेढ़ा मेढा गया हो। जो बल खाता गया हो । कुटिल लहरि-सा स्रो० [०] दे० 'लहर' । या वक्रगति से गया हुआ । जैसे,—यह लकीर मोधी नहीं है, लहरिया-सज्ञा पुं० [हिं० लहर ] १. ऐमी समानातर रेसानो फा लहरदार है । २ दे० 'लहरियादार'। समूह जो सीवी न जाकर क्रम से इधर पर मुख्ती हुई गई लहरना- क्रि० अ० [हिं० लहर+ना (प्रत्य॰)] १. दे० 'लहराना'। हो । लहरदार चिह्न । टेढो मेड़ी गई ई लगी को श्रण। उ० बरसाती तरिवर लहरत तह लता रही लूमि लूमि । जैसे,—(क) इसका नहरिया किनारा है। (ब) इसमे नहलिया -देवस्वामी (शब्द०)। २ दे० 'लहटना' । काम बना हुआ है। २ एक प्रकार का कपडा जिममे रग चिरंगी लहरपटोर-संशा पुं० [हिं० लहर + पट ] [ सी० लहर पटोरी] टेढी मेढी लकीरें बनी होती हैं । ३ वह माटी या धोना जिसकी पुरानी चाल का एक प्रकार का रेशमी धारीदार कपड़ा। रंगाई टेढी मेटी लकीरो के रूप में हो। ३०-(क) लहरत उ०-पुनि बहु चीर प्रानि सब छोरी। सारी कचुकि लहर लहर लहरिया लहर बहार। मोविन जड़ी पिनरिया विथुर पटोरी।—जायसी (शब्द०)। वार।-रहीम (बन्द०) । (स) फहर फहर होत प्रीतम को मुडना।