पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५१३

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लहरिया ४२७४ लहाछेह पीतपट, लहर लहर होत प्यारी को लहरिया ।—देव (शब्द०)। लहलही-वि० स्त्री० [हिं० लहलहाना] ८० 'लहलहा' । ४ जरी के कपडो के किनारे बनी हुई वेल । ५ गोटे, लेस लहली-मशा रसी० ["श०] वह दलदल जो किमी जलाशय के मूख आदि की लहरदार टंकाई। जान पर रह जाती है। लहरिया -सञ्चा स्त्री० [हिं० लहर + इया] 'लहर' शब्द का पूरवी लहसुपा-सशा पुं० [२०] दे॰ लमोटा' । निर्देशात्मक रूप । उ०—मे गैलिउं सोई पिया मोर जागे, पाइ लहसुन-सा पुं० [सं० लशुन] १ एक केंद्र उठकर चारा यार गई सुपमन लहरिया हो गमा । —कबीर (शब्द॰) । गिरी हुई लगी सभी पतली पत्तिया का एक पौधा, जिमकी जड लहरियादार - वि० [हि० लहरिया + दार (प्रत्य )] १ जिसमे गोल गांठ के रूप मे हानी है। उ-तुगी अपना आचरणा लहरिया वना हो। वेलबूटेदार । २ जिसमे बहुत सी टेढी भला न लागत कागु । तेहि न बगाति जो ग्यात नित लहान ह मेढ़ी रेखाएं हो। लहरदार । की वासु । -तुलसी (शन्द०)। लहरी-सक्षा स्त्री॰ [स०] लहर । तरग । हितोर | मोज । उ० विशेप-इसकी जड या कद प्याज के ही गमान तीक्ष्णु और उग्र को, बसुधा मे सुधालहरी लला की बरनी, मैन कलावारी गधवाली होती है, इगमे इमे बहुत से श्राचारवान् हिंदू विगेयत कहि प्यारी कब बोलिहै ।--दीनदयाल (शब्द॰) । वैष्णव नहीं खाते । प्याज की गांठ और लहसुन की गाँठ की नहरी-वि० [हिं० लहर + ई (प्रत्य॰)] मन की तरग के अनुमार बनावट मे वहुत अतर होता है। प्याज की गाठ कोमल कोमन चलनवाला। प्रानदी। मनमौजी। खुशमिजाज । छिन्न को की तहो मे मढ़ी हुई होती है, पर लहनुन की गांठ लहरी जवान है। कभी तो रात को तीन तीन बजे तक जागते चारो ओर एक पक्ति मे गुची हुई फांको म बनी होती हैं कभी दिन को दो दो पहर तक सोया करते है--फिसाना०, है जिन्हे जवा कहते है। वंद्यक मे यह माविधक, णुप्र- भा०३, पृ०३२। वर्धक, स्निग्ध, उणवीर्य, पाचक, मारक, पटु, मधुर, तीक्ष्ण, लहरीला 1-वि० [हिं० लहर + ईला (प्रत्य॰) [वि०सी० लहरीली] दे० टूटी जगह को ठीक करनेवाला, कफवातनाशक, फठगाधन, गुरु, 'लहरदार' । उ०-मरी लहरीली नीली प्रलकावलो समान । रक्तपित्तवर्धक, वनकारक, वर्णप्रसादया, मेवाजनक, नेनो को हितकारी, रसायन तथा हृद्रोग, जाजर, कुक्षिगून, गुल्म, -लहर, पृ० ६६ । लहल-सञ्ज्ञा पुं० [?] एक प्रकार का राग जो दीपक राग का पुत्र अरुचि, कास, शोथ, अर्श, प्रामदोप, कुष्ठ, अग्निमाद्य, कृमि, कहा जाता है। वायु, श्वास तथा कफनाशक माना जाता है। भानप्रकाश में लिखा है कि लहसुन खानेवाला के लिये पट्टी चीजें, मद्य और लहलह-वि० [हिं० लहलहाना का अनु०] १ लहलहाता हुआ । हरा माम हितजनक है, तघा कसरत, धूप, कोव, अधिक जल, दूब भरा | सरस । उ०-लाल नील सित पीत कमल कुल सव ऋतु मे लहलहाई । --देवस्वामी (शब्द०)। २ हर्ष से फूला हुया । और गुट अहितकर है । वैद्यक मे इसके बहुत गुण कहे गए खुशी से खिला हुमा । प्रफुल्लित । हैं । यह तरकारी के मसाले मे पडता है। 'भावप्रकाश' में लहसुन के सवध मे यह पाख्यान लिखा है-जिस समय गरुड इद्र के लहलहा-वि० [हिं० ललहाना] [वि॰ स्त्री० लहल ही] १ लहलहाता यहाँ से अमृत हरकर लिए जा रहे थे, उस समय उसकी एक हुा । फूल पत्तो से भरा और सरम । हरा भग। २ पानद बूंद जमीन पर गिर पड़ी। उसी ने लहसुन का उत्पत्ति हुई। से पूर्ण। से भरा हुआ । प्रफुल्ल । ३ हृष्ट पुष्ट । जैसे,- मनु आदि स्मृतियो में इसके साने का निपेच पाया जाता है । देह लहलही होना। पर्या-महौषध । अरिष्ट । महाकद । म्लेच्छकद । रमोनक । लहलहाना-क्रि० भ० [हिं० लहरना (पत्तियो का )] १ लहरान- भूतन्न । उग्रगध। वाली हरी पत्तियो से भरना। हरा भरा होना । फूल पत्तो से सरस और सजीव दिखाई देना । जैसे,—चारो ओर लहलहाते लहसुनिया--सशा पु० [हिं० तहसुन ] धूमिल रग का एक रत्न या २ मानिक का एक दोप जिसे सस्कृत मे 'अशोभक' कहते हैं । खेत चले गए है। सयो० क्रि०-उठना ।-जाना । बहुमूल्य पत्थर । रुद्राक्षक। विशेष-यह नवरत्नो मे है तथा लाल, पीले और हरे रंग का २ प्रफुल्ल होना । पानंद मे पूर्ण होना । खुशी से भरना । जैसे,- इतना सुनते ही वे लहलहा उठे । ३ टेढ़ी मेढी रेखाग्रो के रूप भी होता है । जिसपर तीन अर्घ रेखाएं हो, वह उत्तम समझा मे होना । रह रहकर दीप्त या व्यक्त होना । 30-तहाँ कहति लहसुनी हींग-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० लहसुन + होग] एक प्रकार की जाता है और 'ढाई सूत का' कहलाता है। है नजभामिनी । लहलहाति जनु नव दामिनी ।-नद० ग्र०, पृ० ३२१ । ४ सूखे पेड या पौवे में फिर से पत्तियां निकलना। कृत्रिम हीग जो लहसुन के योग से बनाई जाती है। पनपना । जैसे,- चार ही दिन पानी पाने से यह पौधा लहलहा- लहसुवा -सज्ञा पुं० [ देश० ] १ लसोडा । दे० 'लहसुमा' । २ एक उठा । ४ दुर्बल शरीर का फिर से हृष्ट योर सजीव होना। प्रकार का साग। शरीर पनपना। लहायु-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० लाक्षा ] दे० 'लाह' । सयो० कि०-उठना । लहाछेह -सक्षा पु० [ लवाक्षेप ? ] १ नृत्य की क्रियानों म से चौयो