पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५२२

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४२८३ लाभांतराय लाना २ प्रत्यक्ष करना । उपस्थित करना । सामने रखना । जैसे,—(क) लापु' '--सा पु० [ स० पालाप ] २० 'लाप'। उ०--चित परि अप याप यह नया रग लाए हैं । (ख) वह जब प्राता है, तव पितु वानी सूरज मानी कर जोरै करि लापु ।-सुजान०, नया रूप लाता है। (ग) प्रब वह उनपर मुकदमा लावेगा। पृ०२६। ३ उत्पन्न करना। पैदा करना । देना या सामन रखना। लापुर-सज्ञा पुं० [ ] १ एक बनौपधि । रुद्रवती। रदती। २ जैसे,—इम साल ये पेड बहुत फल लाए हैं। एक अौजार [को०] । लाना'-क्रि० स० [हिं० लाय (= प्राग)+ना (प्रत्य॰)] पाग लाप्य-वि० [स०] कथनीय । कहने योग्य बोलने योग्य [को०) । लगाना। जलाना। उ०—(क) कत वीसलोचन बिलोकिए लाव, लाबक-सज्ञा पुं० [सं०] लवा नामक पक्षी जिसका प्राय कुमत फल, ख्याल लक लाई कापे रांड की सी झोपडी।- शिकार करते हैं [को०] । तुलसी (शब्द०)। (ख) गापद पयोवि क.र होलिका ज्यो लावर-वि० [ स० लपन (= बकना) ] दे० 'लवार'। उ०- लाय ल क, निपट निणक पर पुर गलवक भो ।-तुलसी काल्हि के लावर वीस विमे परी वीस बिसे व्रत ते न टरा जू । ( शब्द०)। -केशव (शब्द०)। लाना-क्रि० स० [हिं० लगाना ] तगाना। उ०—(क) राम लावु-सज्ञा पु० [सं० ] लौकी । कद्द किो०) । कुचरचा करहिं सब सीतहिं ताइ कलक ।- तुलमो (शब्द०)। लाबुफायन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ 10 ] जैमिनि द्वारा उल्लसित एक प्राचीन (ख) ले परजक निमक नवेली को लाय गरे से लगे गहि गूमन । दार्शनिक विद्वान् [को०)। -शभु (शब्द०)। मुहा०-लाना लगाना या लाने लगाना = ऋण के वदले मे कोई लावुकी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार की वीणा (को॰) । पदार्थ दे देना या ले लेना । लावू–सशा स्त्री॰ [स०] दे० 'लावु' । लाभ-सज्ञा पु० [म०] १. मिलना। प्राप्ति । लब्धि । २ फायदा । लाने--अव्य० [हिं० लाना (= लगाना ) ] वास्ते । लिये मुनाफा। नफा । ३ उपकार । भलाई। ४ सुख । प्रसन्नता (बुदेल०)। उ०--तू अलवेली अकली डरै किन, क्यों डरी (को०)। ५ विजय । परिग्रहण । वश । पफड (को०)। ६ मेरी सहाय के लान । है सखि सग मनोभव सो भट कान लौ प्रत्यक्ष ज्ञान । अनुभूति (को०)। ७ गडा हुमा धन । निखात वान सरासन ताने ।-पद्माकर (शब्द॰) । निधि (को०) । ८ घन सपत्ति (को॰) । लाप-सज्ञा पु० [स०] १. सलाप । बोलना। वात करना। २ यौ०-लाभकारी । लाभदायक | कलरव । चहचहाना। उ०--लार के प्रलाप उनमाद के संताप व्याधि, पापिन की आप नेकु वेग सुधि लहियो ।--धनानद, लाभक-सशा पु० [स०] १ प्राप्ति । लब्धि । २. मुनाफा। फायदा। नफा [को०] । पृ० ५९२। लापता-वि० [अ० ला (= विना) + हिं० पता ] १. जिसका पता लाभकर, लाभकारक-वि० [मं०] जिससे लाभ होता हो । फलदायक लाभदायक । फायदेमद । न लगे। जो कही मिल न रहा हो। खोया हुआ। २ गुप्त । लाभकारी-वि० [स० लाभकारिन् ] [वि०सी० लाभकारिणी ] गायव । फायदा करनेवाला । गुण करनेवाला । फायदेमद । क्रि० प्र०—करना ।—रहना ।—होना । लाभक्षायिक-मञ्ज्ञा पुं॰ [स०] जैनो के अनुसार वह अनत लाभ जो लापनिका-सशा स्त्री० [सं०] गपशप । वातचीत । वार्तालाप किो०] । समस्त कर्मों का क्षय या नाश हो जाने पर प्रात्मा की शुद्धता लापरवा-वि० [अ० ला+फा० परवाह ] [ सच्चा स्त्री० लापरवाई ] के कारण प्राप्त होता है। १ जिसे किसी बात की परवा न हो। वेफिक्र । २ जो लाभदायक-वि० [स०] जिमसे लाभ हो । गुणकारी। फायदेमंद । सावधानी से न रहता हो । असावधान । लाभमद-सज्ञा पुं॰ [स०] जनो के अनुसार वह मद जिसमे मनुप्य लापरवाह-वि० [फा०] दे० 'लापरवा'। अपने आपको लाभवाला और दूसरे को हीनपुरय समझे। लापरवाही-मझा सी० [अ० ला+फा परवाह ] १. लापरया होने लाभलिप्सा-सज्ञा स्त्री० [स०] लाभ को प्रवल तृष्णा [फा०] । का भार । वेफिक्री । २ असाववानी। प्रमाद । लाभलि सु-वि० [स०] १. लालची । लोभी । २ लागच्छु । लाभ का कि० प्र०—करना ।-दिखलाना ।—होना । इच्छुक [को०] । लापसी-सशा सी० [सं० लप्सिया ] ३० 'लपसी' । उ०-लुचुई लाभस्थान-सम्रा पु० [सं०] फलित ज्यातिप अनुसार जन्म कुठली ललित लापता सोहै। स्वादु सुवास सहज मन मोहै।-पूर मे लग्न से ग्यारहवा स्वान, जिने देखकर यह निश्चय किया (श-द०)। जाता है कि घन, सपत्ति, सतान, भायु और विद्या प्रादि लापिका-तज्ञा सी० [स०] एक प्रकार को पहेली या वुझौनल (को०] । कैसी रहेगी। लापी-वि० [सं० लापिन् ] १. पालापी। बालनवाला। २. लाभातराय-सधा पुं० [सं० लाभान्तराय ] वह प्रवराय फर्म निसके पछतानेवाला यो०] । उदय होने से मनुष्य के लाभ मे विघ्न पड़ता है।