पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५२८

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लालिनी ४२९ लावण्यार्जित HO कटया (को०)। HO लालिनी-मज्ञा स्त्री॰ [स०] पुंश्चनी या कामुक स्त्री | दुश्चरित्रा औरत। २ रस्सी । डोरी । रज्जु । उ०—फिरि फिरि चितउत ही रहतु लालिमा-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] लाली । ललाई । अरुणता । सुर्यो । टुटी लाज की लाव | अग अग छवि झीर मे भयौ भौर की ल ली-पहा स्त्री० [हिं० लाल+ ई (प्रत्य॰)] १ लाल होने का नाव ।-विहारी (शब्द॰) । ३ उतनी भूमि जितनी एक दिन भाव । अरुणता। लालपन । सुर्सी । २ इज्जत। पत। मे एक चरसे से सीची जा सके। आवरू । जैसे,—(क) आज आपकी ही कृपा से उनकी लाली लाव -सज्ञा पुं० [हिं० लगाना ] वह ऋण जो किसी की चीज अपने रह गई । (ख) मेरी लाली तुम्हारे हाथ है । पाम ववक रखकर उमे दिया जाय । विशेप-कभी कभी खाली 'लाली' और कभी कभी 'मुह की मुहा०-लाव उठाना = (१) चीज वधक रखकर रुपया उधार लाली' भी वोलते हैं। देना । (२) किसानो को उनके कष्ट के समय ऋणस्वरूप धन ३ पीसी हुई ईटें जो चूने में मिलाई जाती हैं । सुरखी । देना। तकावी वांटना । लाली२-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] अासाम की एक नदी का नाम । लावक-शा पुं० [ ] १ लवा पक्षी । उ०—तीतर लावक लालो -सज्ञा स्त्री॰ [ स० लालिन् ] वह व्यक्ति जो स्त्रियो को बहका- पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज वल्था । तुलसी कर कुमार्ग की ओर प्रवृत्त करना हो । (शब्द) २ काटने या खड करनेवाला व्यक्ति (को०)। ३ वह जो अवचयन करे। काटकर इकट्ठा करनेवाला। लाली-वि० दुलार करनेवाला । प्यार करनेवाला (को०) । लाली"-सज्ञा स्त्री॰ [ ] भूत प्रेत आदि से आविष्ट होना (को०] । लावक-पज्ञा पु० [ देश०] १ चावल की जाडे की फपल । २ लालील-सज्ञा पुं० [ स० ] अग्नि । प्राग। चरमा। ३ मोट खोचने मे बैलो के एक बार जाने और आने लालुका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] गले मे पहनने का एक प्रकार का हार । का काल । लाले-सज्ञा पु. [ स० लाला या लालायित ] लालपा। अभिलापा । नावज-सज्ञा पुं० [स०] बहुत प्राचीन काल का एक प्रकार का वाजा इच्छा । अरमान । जैसे,-हमे तो आपके देखने के ही लाले है। जिसपर चमड़ा मढा हुआ होता था। मुहा०-किसी चीज के लाले पडना = किसी चीज के देखने या लावज-सज्ञा पु० [स०] १ मुंघनी । नस्य । २ लवणसमुद्र । पाने के लिये बहत तरसना। किमी चीज के अप्राप्य या पहुंच लावण-वि० [स०] १ जिसका सस्कार लवण द्वारा हुआ हो। २ के बाहर होने के कारण बहुत अधिक लालायित होना । लवण का । नमकीन । उ०-लावण लाँडु प्ररी पकवान । सेना २ श्राफत । विपत । सकट । सहित राज जीमीयो।-बी० रामो, पृ० १११ । विशेष-इस शब्द का प्रयोग सदा बहुवचन मे होता है । लावणसैंधव-वि० [सं० लावण सैन्धव] समुद्रतट पर स्थित [को०] । लालो-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'लाले' । लावणा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] वैश्यो की एक जाति । लानोलाल-वि० [हिं० लाल+लाल ] पानदमग्न । मस्त । सुर्खरू । लावणिक'-वि० [सं०] १ जिसका लवण द्वारा संस्कार हुआ हो। उ०-रामसिंह गाडी ले जाते थे, माल अधिक विकता था । २, लवण सवधी। नमक का । ३ लावण्ययुक्त । मनोहर । आजकल लालोलाल है।-काले०, पृ० २१ । सु दर (को०)। लाल्य-वि० [ स० ] लालन करने योग्य । दुलार करने लायक । लावणिक-सज्ञा पुं० १ वह जो नमक बेचता हो। २ नमक का लाल्हा- सज्ञा पु० [हिं० लाल साग (= मरसा) ] मरसा सौदागर । २ वह पात्र जिसमे नमक रखा जाता है। नमकदान । साग । उ०-चौलाई लाल्हा अरु पोई। मध्य मेलि निवुयानि निचोई । —सूर (शब्द०)। लावण्य-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ लवण का भाव या धर्म । नमकपन । २ अत्यत सुदरता। नमक । लोनाई। उ०-जटा मुकुट लाव'-सञ्ज्ञा पु० स०] १ लवा नामक पक्षी । विशेष दे० 'लवा' । सुरमरित सिर लोचन नलिन विशाल । नीलकठ लावण्य २ लौंग। ३ काटना या खटित करना । निधेि साह बालविधु भाल |- तुलसी (शब्द०)। ३ शील लाव-वि० १ काटनेवाला | खंडित करनेवाला । २ अवचयन करने- की उत्तमता । स्वभाव का अच्छापन। वाला। चयनकर्ता। एकत्र करनेवाला । ३. नष्ट भ्रष्ट या यो०-लावण्यकलित = रूपसपन्न । सौदर्ययुक्त । लावण्यकात = विध्वस्त करनेवाला (को०] । सौंदर्य की दीप्ति वा प्रभा। लावण्य नेधि = सौदर्य वा शोभा लाव-सञ्ज्ञा स्त्रा० [हिं० लाय (= प्राग) ] १ अग्नि । आग । के समुद्र वा खजाना । लावण्यमय = सांदर्ययुक्त । प्रिय । सुदर । पांच । २ ली। लगन । लावरयलक्ष्मी, लावण्यश्रा अत्यत शोभा । अतशय सौंदय । लाव-मज्ञा स्त्री॰ [ दश० या सं० रज्जु ] १ वह मोटा रस्मा जिससे चरसा खीचत या इसी प्रकार का और कोई काम करते है। लावण्यवान्-वि० [स० लावण्यवत् । सौंदर्ययुक्त । प्रिय । सु दर को०)। रस्सा । लास । लावण्या सज्ञा स्त्री० [सं०ब्राह्मी नाम की बूटी । मुहा०-लाव चलाना = चरसे के द्वारा कूएं से पानी खीचकर लावण्यार्जित-सञ्ज्ञा पुं० [स०] स्त्रोवन । वह धन जो विवाहिता स्त्री को सास, ससुर आदि से प्राप्त हो (को०] | नामक खेत सीचना।