पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५२९

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लावण्याजित १२६० लाविका लावण्यार्जित-वि० सुदरता के कारण प्राप्त । लोनाई के माध्यम से नाम लावन्य भरयो है। मधुरिम सार सकेलि धरयो है । अजित । -घनानद, पृ० २५१ । लावदार-वि० [हिं० लाव (= प्राग) + फ़ा० दार (प्रत्य०) ] लावबाली-सञ्ज्ञा पुं० [अ० लाउवाली ] १ वह जिसे किसी प्रकार (तोप ) जो छोडी जाने या रजक देने के लिये तैयार हो । को चिंता आदि न हो। लापरवाह । वेफिक्र । २ वह जिसके उ०-~लावदार रक्खो कि सबै अरावो एह । ज्यो हरीफ विचार, धार्मिक दृष्टि से, बहुत ही स्वतत्र और उच्छृ ग्बल हो । आव नजरि तब घडाघड देहु ।-सूदन (शब्द०)। ३ वह जो सदा निकम्मा घूमा करना हो । बागारा । लावदार'-मझा पुं० तोप मे बत्ता लगानेवाला। तोप छोडनेवाला। लावबाली-मशा स्त्री० लावबाली होने का भाव । लाववालीपन | तोपची। उ०-किते जजालदा र प्रारदार लावदार ही। किते निसानवान सान के भरे तयार हो लावर-वि० [ म० लपन (= वकना) ] दे० 'लावर'। उ० - माया ।- सुदन (शब्द०)। भरगो अरु हिलसी हरामजादे लावर दगेन म्यार प्रांखिन लावन -सज्ञा पुं॰ [ हिं० लाव (- अग्नि) जलाने के काम आनेवाले दिखाए तें ।-ठाकुर०, पृ० २७ । पदार्थ । ईंधन । जैसे लकडी, कोयला आदि। लावल्द- वि० [फा० ] जिमके वाल वच्चा न हो। नि मनान । लावनता-सज्ञा स्त्री॰ [सं० लावण्य -- ता (प्रत्य०) ] बहुत अधिक सौदर्य । मुदरता । खूबसूरती । नमक । उ०—तुलसी तेहि अवसर लावल्दी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० ] लावद या नि मतान होने का भाव या लावनता दसचारि नव तीनि एकोस सबै ।-तुलसी (शब्द॰) । अवस्था। लावना - gt- क्रि० स० [हिं० लाना ] । उ० -(क) विप्र कह्यो लावा'-राश पुं० [ स० लावक ] लवा नामक पक्षो। विशेष २० धन लावनी करन सुता को व्याह । यहि थल चोर चुगय 'लवा' । उ०-गयउ सहमि नहिं कछु कहि पावा । जनु सचान लिए भयो भोर दुख दाह । -रघुराज (शब्द॰) । (ख) जाहि वन झपटेउ लावा । —तुलसी (शब्द॰) । अवम पापी हम चीन्हा । तेहि तब 'ढग लावन मन कीन्हा । लावा'-सज्ञा पुं॰ [ स० लाजा ] भूना हुआ धान, ज्वार, बाजरा या विश्राश्र (शब्द॰) । (ग) को हेसि मधु लावइ लेइ माग्यो । रामदाना आदि जा भुनन के कारण फूलकर फूट जाता है और की-हेमि भवर पखि अरु पाखो।—जायसी (शब्द॰) । जिसके अदर से सफेद गूदा बाहर निकाल आता है। यह बहुत लावना-क्रि० स० [हिं० लगाना ] १ लगाना । स्पर्श कराना । हलका और पथ्य समझा जाता है और प्राय रोगियो को दिया 0-(क) लावत मैन सुगध लख्यो सव सौरभ की तन देत जाता है । खोल । लाई। फुन्ला । दसीहै ।-रघुनाथ (शब्द०)। (स) तुलसिदास कह रूप क्रि० प्र०-फूटना ।-भूनना । देखावहु । मेरे शीश पानि निज लावह । -रघराज (शब्द॰) । यौ०-लावा परछन। (ग) मेरे अग सहत सुगध मो सही है सदा लावन न देत और लावा'-सज्ञा पुं० [अ० ] राख, पत्थर और धातु आदि मिला हुमा ऐसे हैं सुधर्मी । -रघुनाथ (शब्द॰) । (घ) सो मोहि लेइ वह द्रव पदार्य जो प्राय ज्वालामुखी पर्वतो के मुख से विस्फोट मंगावई लावइ भूख पिमास । जउं न हात अस बहरी केहि होने पर निकलता है। काहू कर पास । जायसी (शब्द॰) । २ जलाना। प्राग लावादक-सशा पुं० [सं०] एक प्रकार का धान । लगाना । उ.-बहुरि इद्रजित ग्रह्मास्त्रात हनुमत बधन गाया। सभागमन रावण समुझावन लावन लक गनायो ।-रघुराज लावाएक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] प्राचीन काल के एक देश का नाम जो मगध के पास था। (शब्द०)। लावनि-सज्ञा स्त्री० [सं० लावण्य ] सौदर्य । लावण्य । मुदरता । लावा परछन-सज्ञा पुं० [ हि० लावा+परछना । विवाह के समय नमक । उ.---(क) काट काम लावनि बिहारी जा देखत की एक रीत। सब दुख नसत ।-स्वामी हरिदास (शब्द०)। (ख) सुदर विशप-इसमे वर के आगे कन्या खडी की जाती है और उसके मुख की बलि बलि जाऊं। लावनि नि,ध गुणनिधि सोभानिधि हाथ मे एक डलिया दी जाती है। कन्या का भाई उसी डलिया निरखि निरखि जीवत सब गाऊँ। -सूर (शब्द॰) । मे धान का लावा डालता है। हवन और सप्तपदी इसके बाद लावनि-सज्ञा स्त्री॰ [दश०] दे० 'लावनी' । होती है। लावनिता-सच्चा स्री० [हिं० लखनि (= लावण्य)+ता (प्रत्य॰)] लावारा- वि० [ हिं० ] अावारा । दे० 'लावनता। लावारिस -सझा पुं० [अ०] १ वह मनुष्य जिमका कोई उतराधि- लावनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश०] १ गाने का एक प्रकार का छद । २ कारी या वारिस न हो। २ वह सपत्ति जिसका कोई अधिकारी इस छद का एक प्रकार जो प्राय च ग वजाकर गाया जाता या स्वामी न हो। (क्व०)। है। इस साल भी कहते हैं । ३ इस प्रकार का कोई गोत । लावारिसी-वि० [अ० लावारिस ] (सपत्ति) जिसका कोई अधिकारी लावनीवाज-सज्ञा पुं० [हिं० लावनी+फ्रा० वाज़ ] लावनी गाने न हो। या रचनेवाला लावनी का प्रेमी । लाविक-शा पुं० [सं०] भैसा । महिप (को०] । लावन्यकु-सज्ञा पुं० सं० लावण्य ] दे० 'लावण्य'। उ०-स्न लाविका-सज्ञा स्त्री॰ [सं० लावा ] १ लवा नामक पक्षो । २. मैंस ।