पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५४

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मलखाना' ३८१३ मलदूपित मलखम और बेत का मलखम । गडा मलखम एक लबा मोटा लेते हैं और वर्तन के रंग को छानकर उसमे हिना का इत्र चार पांच हाथ ऊंचा मुगदर के आकार का खभा होता है जो मिलाकर उममे फिर उस कपडे को डुवाकर सुखाते हैं । पर भूमि मे गडा रहता है । लटका हुआ या लटकोना मलबम छत्त आजकल प्राय रंगरेज मलगिरि रग रंगने मे कपडे को कत्ये या किसी और धरन के सहारे ऊपर से अधोमुख लटका रहता और चूने के रग मे रंगते हैं, फिर उसे कसीस के पानी मे डुवा है । जब इस खभे की जगह धरन आदि मे बेंत लटकाया जाता देते हैं इसके बाद रंगे हुए कपडे को आहार देकर निचोडते है, तब इसे बेंत का मलखम कहते हैं इसपर कसरत करनेवाले और मुखाते हैं और अत में उसपर हिना का इत्र मल देते हैं । वेत को हाथ मे पकटकर उसपर अनेक मुद्रानो से कसरत मलगिरि-वि० मलगिरि रग का । करते हैं। इसे बांस, लग्गी या मलखानी भी कहते हैं । मलखम मलघन-सज्ञा पुं॰ [ स० मलध्न ] एक प्रकार की कचनार, जो लता की कसरत भारतवर्ष की एक प्राचीन मल्ल नामक क्षत्रिय जाति रूप मे होती है । को निकाली हुई है। इसो मल्ल जाति को आविष्कार की हुई विशेष—यह हिमालय की तराई, मध्य भारत और टेनासरम के कुश्ती को मल्लयुद्ध भी कहते हैं। मलखम पर चढने उतरने को जगलो मे पाई जाती है । इसकी छाल मलू कहलाती है जिसपर 'पकड' कहते है। इस कसरत से मनुष्य मे फुरती पाती है रग अच्छा चढता है और जो कूटने पर ऊन की तरह चमकदार और राने दृढ होती है। हो जाती है । इस ऊन में मिलाकर तागा काता जाता है २ वह कसरत जो मलखम पर या उसके महारे से की जाय । ३. जिससे ऊनी कपडे बुने जाते हैं। यह छाल ऐसी साफ होती पत्थर या लकडी के पुरानी चाल के कोल्हू मे लकडी का एक है कि ऊन में मिलाने पर इसकी मिलावट बहुत कम पहचानी खूटा जो कातर या पाट मे कोल्हू से दूसरी छोर पर गाडा जाती है। जाता है और जिसमे ढेंके की रस्सी बाँधो जाती है, अथवा मलन -वि॰ [सं०] [वि० स्त्री० मलनी ] मलनाशक । जिसमे रस्सी लगाकर ढेंकी वाँभकर जाट के कार लगाते हैं । इसे मरखम भी कहते हैं। मलघ्न -सञ्ज्ञा पु० १ शाल्मली कद । सेमल का मुमला। २ कचनार का एक भेद । 'मलघन' । मलखाना'-वि० [हिं० मत + खाना ] मल खानेवाला । उ०—कोउ न जग मे होत कुटिल जैसे मलखाने । उसर वैठि मरजाद भ्रष्ट मलघ्नी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ ] सं० ] नागदौना । प्राचार न जाने ।-गिरिभरदाम (शब्द॰) । मलज-सज्ञा पुं० [सं०] पीब । मलखाना-सज्ञा पु० [ स० मल्ल + हिं० खान ] १. महोवे के राजा मलजुद्ध-सज्ञा पुं॰ [ सं० मल्लयुद्ध ] दे० 'मल्लयुद्ध' । उ०- परमाल के भतीजे मलखान का नाम । यह पृथ्वीराज चौहान का मलजुद्ध समुद्ध सुबीर करै । ह० रामो, पृ० १५७ । समकालीन था। २ पश्चिमी उत्तरप्रदेश मे बसनेवाले एक प्रकार मलवर-सञ्ज्ञा पु० [ स० मल+ज्वर ] अमृतसागर के अनुसार के राजपूत जो मुसलमान बना लिए गए थे। इन लोगो का एक प्रकार का ज्वर जो मल के रुकने के कारण होता है। आचार विचार अव तक प्राय हिंदुप्रो का सा है । इमसे रोगी के पेट मे शूल और सिर मे पीडा होती है, मुंह मलखानी-मज्ञा स्त्री॰ [हिं० ममखम ] एक ऊचा गोल और सीधा सूखा रहता है, जलन होती है, भ्रम होता है और कभी कभी पतला खभा जिसपर वेंत मलखम की कसरत की जाती है। मूर्छा भी आती है। इसे वांस और लग्गी भी कहते हैं । विशेप दे० 'मलखम' । मलझन-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की वेल जो वागो मे लगाई मलगजा'-वि० [हिं० मलना+गीजना ] मला दला हुआ। जाती है। गीजा हुआ । मरगजा। मलट-सज्ञा पुं० [अ० मैलेट ] १ लकडी का हथौडा जिससे खूटे आदि गाडे जाते हैं। २ काठ का वह हथौडा जिससे छापने मलगजा-सज्ञा पुं० वेसन मे लपेटकर तेल या घी मे छाने हुए बैगन, कुंहडा आदि के पतले टुकडे । के पहले सीसे के अक्षर ठोककर बैठाए और बराबर किए मलगिरी'-सज्ञा पु० [हिं० मलयागिरि ] एक प्रकार का हल्का कत्थई रग। मलतना-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मल्लत्व, प्रा० मल्लत्तण या हिं० मल विशेष—यह रग रंगने के लिये कपडा पहले हह के हलके काढ़े मे (= मल्ल)+तन (प्रत्य॰)] बहादुरी। शक्ति का अभिमान । उ.-सभ भागी सिद्धां की मलतन । -प्राण०, पृ० १२० । और फिर कसीम के पानी मे डुबोते है, और फिर उसे एक रग मे जिसमे कत्था, चूना, मेहदी की पत्ती और चदन का चूरा मलता--वि० [हिं० मलना ] मला या घिसा हुआ ( सिक्का )। जैसे, मलता पैसा, मलती अठन्नी । पीसकर घोला रहता है और छलछबीला, नागरमोथा, कपूर- कचरी, नख, पांजर, विरमी, सुगधवाला, सुगध कोकल, मलद-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] वाल्मीकीय रामायण के अनुसार एक प्रदेश का नाम। वालछड, जराकुश, बुढना, सुगधर्मश्री, लोग इलायचो, केशर और कस्तूरी का चूर्ण मिला रहता है, डालकर पहर भर विशेष—कहते हैं, ताडक। यहीं रहती थी। इसे मल्लभूमि भी उवालते हैं और उतारने पर उसे दिन रात उसी मे पडा कहते थे। रहने देते हैं। दूसरे दिन कपडे को उसमे से निकालकर निचोड मलपित-वि० [सं० ] मलीन | मैला । जाते है।