पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५५

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स० करते है। मलद्रावी ३८१४ मलमई मलद्रावी-सज्ञा पुं० [सं० मलदाविन् ] जयपाल । जमालगोटा । 30-जो कहो तिहागे वल पार्य चार्ग दाथ नाथ, प्रागुरी मो मलद्वार-मज्ञा पुं० [सं०] १ शरीर की वे इद्रियां जिनसे मन मेर मलि डारो यह छिन मैं ।—हुनुमनाटक (शब्द०)। ४. निकलते हैं। २ पाखाने का स्थान । गुदा । मरोडना । गैठना । जमे, मुह मलना, नाक मलना, कान मलना। मलधात्री-सज्ञा स्त्री॰ [ ] वह धाय जो बच्चो का मलमूत्र धोने पर नियुक्त हो। सयो० क्रि०-ढालना ।—देना । मलधारो-भज्ञा पु० [म. मलधारिन् ] एक प्रकार के जैन माधु ५ हाथ मे बार वार रगडना या दवाना । जमे, छाती मलना, जो शरीर मे मल लगाए रहते है और उमको धाने और शुद्ध गाल मलना। नहीं करते। मलनी-सझा पी० [हिं० मलना ] पाठ दम अगुल लवा, दो अगुल मलन' - सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ मर्दन । २. पोतना। लेप करना । चौडा, मुडोल और चिकना कतजन के प्राकार मा वाम का लगाना । ३ तवू । शामियाना (को०) । एक टुण्डा जिसमे कुम्हार मलकर मुराह्यिा श्रादि चिकनी मलना--वि० ममलनेवाला। पीस डालनवाला । मल देनेवाला । उ० - अफजल का मलन शिवराज पाया मरजा ।-भूपण मलपको-वि० [ मं० मल पशिन् ] १ मनीन । मला। २ कोचड मे मना हुप्रा। ग्र०, पृ० ११७ ॥ मलपाक-मज्ञा पुं॰ [ म० मल + पाक ] शरीर की वह स्थिति जिगमे मलनg-० [हिं० ] दूपित । वुरा । दे० 'मलिन' । उ०—मलन दोपो की प्रवृति बदल जाती है, वे हलके हो जाते हैं, गरीर काज मैं खलन की मति अति होति अनूप ।--दीन० ग्र०, हलका हो जाता है और इद्रियां निर्मन हो जाती है। --माधव०, पृ०८१ । पृ०२८ । मलना-क्रि० म० [ म० मलन ] १ हाथ अथवा पिसी और पदार्थ मलपात्र-शा पु० [स० मल+पान] वह पाम जो शौच के से किमी तल पर उसे माफ, मुलायम या अच्छा करने के लिये उपयोग में लाया जाता हो । कमोट । रगडना। हाथ या किसी और चीज से दवाते हुए घिमना । मर्दन । मीजना। ममलना । जैसे, लोई मलना, घोडा मलना मलपू-सज्ञा पुं॰ [ मु० ] कठूमर । वरतन मलना। उ०—(क) यहि मर घडा न वूडता मगर मलि मलपृष्ठ-मझा पु० [ स० ] पुस्तक का पहला या वाह्य पृष्ठ [को०] । मलि न्हाय । देवल बूडा कलम लो पक्षि पियामा जाय । मलप्पना-क्रि० अ० [ प्रा० मल्लप्पण ] १ पहलवानों के समान -कवीर (शब्द०)। (ब) चलि मखि तेहि मरोवर जाहिं । मस्ती भरी चाल चलना । क्रीडा में कुदान करना । उ०परत जेहि सरोवर कमल कमला रवि बिना विकसाहिं । हस उज्वल केलि सारमी मलप्पते महा रसी। विरद्द नेफ वोलते पलक्क पग्ब निर्मन अग मलि मलि न्हाहिं । मुक्ति मुक्ता अबु के फत चप्प खोजते ।-पृ० रा०, १७/६० । तिन्हें चुनि चुनि खाहिं । —सूर (शब्द॰) । मलफ मज्ञा स्त्री० [हिं० मलफना ] कूद । कुदान । उ०-गाज सयो० क्रि०-ढालना ।-देना। मलफ एता गुरणां, मोहां काज मरत ।-बांको०, ग्र० भा० १, मुहा०-दलना मलना= = (१) चूर्ण करना। पीसकर टुकडे टुकडे पृ० १७ । करना। उ० रन मत्त रावण सकल मुभट प्रचड भुजवल मलफना-कि० अ० [हिं० ] कूदना । कुदान भरना । उ०-तै दलमले ।-तुलसी (शब्द॰) । (२) मसलना । हाथो मे जेहा दोघा तुरी ,मृग जीपण मनफत । चढे जिकाँ अन पह चढं रगडना । घिसना । हाथ मलना = (१) पछताना । पश्चात्ताप- तारण वारण तत 1- वांकी०, ग्र०, भा० ३, पृ० १० । करना। उ०-बार वार करतल कह मलि के। निज कर मलफूफ-वि० [अ० मल्फूफ़ ] १ जो लपेटा हुआ हो। जिसपर पीठ रदन मो दलि के ।-गोपान (शब्द०)। (२) क्रोध कागज या कपडा चढा हो । २ जो लिफाफे मे वद हो । प्रगट करना । उ०—चलो मुकर्मा बीर भलो अबर तन धारे । उ.-प्रेम बत्तीसी हिस्सा दोयम का किम्मा 'खून यजमत' मलो करहि भरि क्रोच हलोरन नद बहुवारे ।-गोपाल मलफूफ है -प्रेम और गोर्की, पृ० ५४ । (शब्द०)। २ किमी तरल पदार्थ या चूर्ण प्रादि को किमी तल पर रखकर मलबा-मझा पुं० [हिं० मलभार] १ कूडा फर्कट | कतवार । २ टूटी हाथ मे रगडना। मालिश करना । जैसे, तेल मलना, सुरती या गिराई हुई इमारत की ईंटें, पत्थर और चूना आदि । मलना । उ०—(क) मधु सो गीले हाथ हूं ऐंचो धनुप न जाइ। ३ एक प्रकार की उगाही या बेहरी जो गाँव मे पट्टीदारो से ते पराग मलि कुमुम शर बेधत मोहिं बनाइ ।-गुमान दौरे के हाकिमो प्रादि के खर्च के लिये वमूल की जाती है। (शब्द॰) । (ख) चलेउ भूप पुरुमित्र मित्रहुति मगध मित्र मन । मलभाड-~-सज्ञा ५० [सं० मल+भाण्ड] दे० •मलपात्र' । पट पवित्र मनि चित्र सहित मलि इन घरे तन । गोपाल मलभुज् - मझा पुं० [ मैं• ] कौवा । (शब्द०)। ३ किसी पदार्थ को टुकडे टुकडे या चूर्ण करने मलभैदिनी-सज्ञा सी० [सं० ] कुटकी । के लिये हाथ से रगडना या दवाना। मसलना। मीजना। मलमई-वि० [सं० मल+हिं० मई (प्रत्य॰)] मलयुक्त ।