पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५४०

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लिहाजी ४२६६ लीची बंधा हुई दृष्टि ३ किसी को कोई बात अप्रिय या दु खदायी न हो, उ०-लीक लीक गाडी चले लीक चले कपूत ।-(शब्द॰) । इस बात का खयाल । मुरव्वत । मुलाहजा। शील सकोच । ४ चलने चलने बना हुप्रा रास्ते का निशान । दुरीं । जैसे,- जैसे,—काम बिगडने पर वह कुछ भी लिहाज न करेगा। यही लोक पकडे सीधे चले जानो। पक्षगत । तरफदारी । ५ बडो के सामने ढिठाई आदि न मुहा०-लोक पकहना = दरों पर चलना। पगडडी पर होना । प्रकट हो, इस बात का ध्यान । ममान या मर्यादा का ध्यान । लोक पीटना - पुराने निकले हुए रास्ते पर चलना। चलो अदव का खयाल । जैसे,—वडो का लिहाज रखा करो। ६ आती हुई प्रथा का ही अनुसरण करना। बंधी हुई रीति या लज्जा । शर्म। हया। प्रणाली पर ही चलना। लोक लोक चलना= दे० 'लाक क्रि० प्र०-पाना ।—करना ।-रखना। पीटना'। मुहा० लिहाज उठना या टूटना = लिहाज न रहना। मर्यादा, ५ महत्व या प्रतिष्टा। मर्यादा । नाम । यश। उ०-दपति घरम समान आदि का ध्यान न रहना । उ०-पत्र लिहाज प्राचरन नीका । अजहु गाव श्रुति जिन्क लोका।-तुलसी टूट गया। शर्म मजिलो दूर है। -फिसाना०, भा० ३, पृ० (शब्द०)। ६ बंधी हुई मर्यादा । लोकव्यवहार की बंधा हुई १४८। सीमा या व्यवस्था। लोकनियम । उ०-नंदनदन के नेह मेह जिन लोक लोक लापा ।—सूर (शब्द०)। ७ लिहाजा-अव्य० [अ० लिहाजा प्रत । अतएव । इसलिये । विधि । राति । प्रथा । चाल । दस्त्र । ८ हद। प्रतिवध । लिहादा-वि० [दश०] १ नीच । वा हयात । गिरा। २ खराब । Ĉ कलक की रेखा । धञ्चा। बदनामी। लाछन । उ०- निकम्मा । तिहि देखत मेरो पट काढत लोक लगा तुम काज ।-सूर लिहाड़ी '- सझा सो० | देश०) उपहाम । विडवना । निंदा । (शब्द०)। १० गिनती के लिये लगाया हुआ चिह्न। गिनतो। क्रि० प्र०-करना।—होना । गणना । उ-बारिदनाद जठ सुत तासू । भट मह प्रथम लाक मुहा०—लिहाडी लेना = (१) उपहास करना। ठठ्ठा करना । जग जामू । - तुलसी (शब्द०)। बनाना । (२) निदा करना। लीकर लिहाड़ी-वि० [हिं० लेना ?] लेनेवाला । उच्चारण करनेवाला । -सज्ञा स्त्री० [दश०] मटियाले रग को एक चिडिया जो बत्तख से उ०-चाके कुल मे भक्त मम नाम लिहाडी होय । एक एक शत कुछ छोटो होतो है । २ दे० 'लोख' । आपनी पीढ़ी तारत सोय।-(शब्द०)। लीक्का-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] दे० 'लिक्षा' [को०] । लिहाफ-सञ्ज्ञा पुं० [अ० लिहाफ १ रात को सोते समय अोढने लोख-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० लिक्षा] १ जू का अडा। २ लिक्षा नामक का रुईदार कपडा। भारी रजाई। २ मोटा चदरा। ३ परिमाण। झूल ( हायो या घोडे को)। लीग-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अ० १ सघ । सभा। समाज । जैसे, -मुसलिम लिहित-वि० [ स० लिह ] चाटता हुआ। उ०--उन्नत कध कटि लीग। लीग श्राफ नेश-स । २ एक नाम वा दूरी जो जल पर खोन विशद भुज अग अग प्र.त मुखदाई । सुभग कपोल साढे तीन और स्थल पर तीन मील की होती है (को॰) । नामिका, नन छवि अलक लिहित घृत पाई-पूर (शब्द॰) । लीगल रिमेबरेंसर-सज्ञा पुं० [अ० ] वह अफपर जो सरकार के लीक'-सज्ञा स्त्री॰ [ स० लिख । १ लवा चला गया चिह्न । लकीर । कानूनी कागजपत्र रखता है और सलाह देता है। कि० प्र. -खीचना । विशेष-अनजी शासन मे कलकत्ता, बबई और युक्त प्रदेश (उत्तर प्रदेश ) मे लीगल रिमेबरेंमर होते रहे हैं जो प्राय सिविलियन मुहा०- लीक करके = द० 'लोक खीचकर'। उ०-यागम निगम होते थे। इनका दर्जा ऐडवोकेट जनरल के बाद है। इनका काम पुरान कहत करि लीक ।-तुलसी (शब्द०)। लीक खीचना = सरकारी मामले मुकदमो के कागजपत्र रखना और तैयार (१) किसी बात का अटल और दृढ होना। इस प्रकार स्थिर करना है और सरकार को कानूनी सलाह देना है। किया जाना कि न टले। (२) मर्यादा बंधना। व्यवहार का प्रतिवध या नियम स्थापित हाना। हद या कायदा मुकरर लोचड़-वि० [ दश०] १ सुस्त । काहिल । निकम्मा। २ जल्दी न छोडनवाला । चिमटनेवाला । ३ जिपका लेन देन ठोक न हो। होना । (३) साख बंधना। प्रातष्ठा स्थिर होना। उ०-हरि चरनारविंद तजि लागत अनत कहूं तिनकी मास काँचो । लीचर-वि• [ देश० ] चिमटनेवाला। जल्दी न छोडनेवाला । दे० सूरदास भगवत भजत जे तिनकी लोक चहूँ दिसि खाँची । 'लोचह' । उ०-बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच मिलि मुंह - सूर (शब्द०)। लोक खीचकर = इस बात की दृढ प्रतिज्ञा पीर केतुजा कुरोग जातुधान है। -नुलसी (शब्द०)। करके कि ऐसा ही होगा । निश्चयपूवक । जोर देकर । उ० लीची-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [चीनी लीचू, लूचू] एक सदाबहार पेड और उसका सूर श्याम तेरे वस राधा, कहति लीक मैं खाँची ।-सूर फल जो खाने में बहुत मोठा होता है। (शब्द०)। विशेप-इसकी पत्तिया छोटो छोटो होती हैं, फल गुच्छो मे लगते २. गहरी पडी हुई लकीर । ३. गाडी के पहिए से पड़ी हुई लकीर । और देखने में बहुत सुदर होते हैं । छिलके के कार कटावदार रेखा ।