पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५६

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मलमल ३८१५ मलयगिरि . लोक सृष्टि मिरज ति यह माया। तुम तें दूरि मलमई काया। कहते हैं। वह चाद्र माम, जिसमे सूर्य को गंझाति पगी है, नद० ग्र०, पृ० ३१५ । शुद्ध मास कहलाता है। पर मकातिवजिन माम तीन प्रकार के माने गए है जिन्ने भानुनधित, क्षय और मनमाग करते मलमल-मज्ञा स्त्री॰ [ स० मलमल्लक ] एक प्रकार का पतला कपडा जो बहुत बारीक मूत मे बुना जाता है। उ०—(क) मलमल है । भानुलधित और मलमास वे मान कहलाते हैं जिनमे सूर्य- खासा पहनते खाते नागर पान । टेढा होकर चालते करते मक्राति न पडे । पर यदि मूर्यमक्राति शुक्ल प्रतिपदा को पड़ी हा, ता उमे क्षय मान कहते है। बारह महीन दा प्रयना मे बहुत गुमान । -कबीर (शब्द॰) । (ख) कमरी थोर दाम की बांटे गए है एक वंशाख म कुमार तक, दूसरा कानिक गे श्राव बहुत काम | खासा मलमल वाफता उनकर गर्ख मान । —गिरधरराय (शब्द०)। चंत तक। यह मनमाम प्राय फागुन न अगहन तक दन ही महीनो मे पडता ह । गेप दो महीनो म मे पूनम नो कभी विशेप-प्राचीन काल मे यह कपडा भारतवर्ष मे विशेषकर बगाल कभी मलमाम पडता ही नहीं, पार माघ मे बहुत ही कम पटा पौर विहार मे बुना जाता था और वहीं से भिन्न भिन्न देशो करता है। इसका नियम यह है कि याद दक्षिणायन और मे जाता था। अब तक ढाके और मुर्शिदाबाद में अच्छी उत्तरायण दोनो अयनो मे मलमासयुक्त माम परें, तो मलमल बनती है। दक्षिणायन का माम भानुलाधन और उत्तरायण का माम मलमला-मज्ञा पुं॰ [देश॰] कुलफे का माग | मलमास कहतावेगा। पर यदि एक ही अयन मे दा माग मलमलाना'-क्रि० म० [हिं० मलना ] १ बार बार स्पर्श कराना । मलमाम-लक्षण युक्त हा, ता पहला मलमास और ट्मरा लगातार छुलाना। २ बार वार खोलना और ढकना । भानुलाघा कलावेगा। पर ऐस दो उगी वर्ष मे पडत है जैसे, पलक मलमलाना। ३ पुन पुन आनिंगन करना । जिसमे क्षय माम भी पटता है। पर कातिर, अगहन और उ०-नवल सुनि नवल पिया नयो नयो दर निचि तन पूस के महीने म क्षय मास नहीं होता। विवाहादि गुभ मलमले प्रामपति पीय को अमर भरवो री। प्रीति की रीति कृत्य जिम प्रकार मनमाम में वजित है, उसा प्रकार भानुनधित प्राश बचल करत निरखि नागरी नंन चिबुक सो मोरी। पौर क्षय माम मे भी वजित हैं। तब कामकेलि कमनीय च दय चकोर चातक स्वाति बूद पर्या-अधिक मास । पुरुषोनम । मलिम्लुच । अधिमाम । परयो री। सुनि मूरदास रस राषि रस बरमि कं चली जनु असक्रांत मास । नपुसक मास । हरति ले कुहू सु गोरी ।—सूर (शब्द॰) । मलय-मया पुं० [स० मलम (= पर्वत) ] १ दक्षिण भारत के एक मलमलाना'-क्रि० प्र० [अनु० ] पश्चात्ताप करना । अफसोस पर्वत का नाम। करना। पछताना। विशेष-(१) यह पश्चिमी घाट का वह भाग है जो मैमूर गज्य मलमलाहट–मचा स्त्री॰ [ अनु० ] मलमलाने की क्रिया या भाव । के दक्षिण और ट्रावकोर के पूर्व मे है । यहां च दन बहुत उत्पन्न पश्चात्ताप । अफसोस । होना है। पुराणो मे इमे नान दुलपवतो म गिनाया मलमल्लक-सचा पु० [ ] कोपीन । गया है। मलमास-मचा पु० [हिं०] ८० 'मलमास' । उ०—-अली शुभ (२) मलय गन्द पवन, ममोर, वायु प्रादि गन्दा के प्रादि मे तीरथ तीर लस मलमास पवित्र नदी जुग सग।-श्यामा०, ममस्त होकर ( १ ) मुगधेित पार ( २ ) दक्षिणा वायु का अर्थ पृ० ३२६॥ देता है । जैसे, मलयममीर, मलयपवन, आदि । मलमा-मज्ञा पुं० [हि० मलबा ] ० 'मलबा' । पर्या-यापाद । दक्षिणाचल । चदनादि । मलयाचल । मलमास-सज्ञा पुं॰ [ मं० ] वह अमात मास जिसमे सक्राति न पडती २ भलावार देश । ३ मतावार देश के रहनवाले मनुप्त। ४. हो । इसे अधिक मास भी कहते हैं। एक उपद्वीप का नाम । ५ मफेद चदन । उ.दार विचार कि करर कोउ यदिय मलय प्रमग ।-मानम, १।१०। ६. विशेष—यो तो माधारण रीति से वारह महीने का वर्प माना जाता है, पर कभी कभी तेरह महीने का भी वर्ष होता है। गरुड के एर पुत्र का नाम । ७ नदन पन। ८ उचान। उपवन । बाग (को०)। ६ छप्पय के एक नेद का नाम । पर यह वात केवल चाद्र मास मे ही होती है, और माम सदा वर्ष मे बारह ही होते है। चार माम की वृद्धि का हेतु यह है इनमे २५ गुर, १०२ लघु, कुल १२७ वर्ग या १५२ माया कि दिन रात्रि का मान, जिसे दिनमान कहते है, ६० दइ का होती है । १० पहाड का एक प्रग। नाग। ११. पदन माना जाता है। पर एक तिथि का मान ५८ दड का माना के एक पुत्र का नाम । जाता है। इसलिये ३० दिन मे ३१ तिथियां पडती है। मलयगिरि-श पुं० [ म०] १ मा नामय परत जो भार इस हिसाब से चार वर्ष भोर सामान्य वर्ष में प्रति वर्ष बारह दक्षिण दिशा मे है। दिन का अतर पहा करता है जो पांच वर्ष मे पूरे दो महीने विशेष—यहां चदन पधिन और उनम पर होता। यर का प्रतर डाल देता है। ऐसे अधिक महीने को मलमास पश्चिमी घाट का वह भाग जो मरने दक्षिण भरी म० ।