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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/५७

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मलयगिरी ३८१६ मलमासा की वायु। भापा । ट्रावकोर के ' मे वपू है। पुराणो मे इसे कुलपर्वतो मे अवधि का शाप । लगे न लू होकर कही तू अपने को प्राप । गिनाया है। -साकेत, पृ० २६२ । २ मुगधित वायु । ३. वसत काल २ मलयगिरि में उत्पन्न चदन । उ.-बेधी जानि मलयगिरि वामा। मीस चढी लोटहि चहुँ पामा ।—जायसी (शब्द॰) । मलयालम'-सज्ञा पु० [स० मलय (= पर्वत)+ अलम (= उपत्यका)] ३ हिमालय पर्वत का वह देश जहाँ कामरूप और आसाम दक्षिण के एक पहाडी देश का नाम जो पश्चिमी घाट के है। ४ दे० 'मलयगिरी' । किनारे किनारे फैला हुआ है। इसे केरल भी कहते हैं। यहां मलयगिरी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं मलयगिरि ] दारचीनी की जाति का की भापा मलयालम कहलाती है। यहाँ नायर नामक हिंदुओं एक प्रकार का वडा और बहुत ऊंचा वृक्ष जो कामरूप, प्रामाम और मोपला नामक मुमलमान जाति की पावादी है । केरल । और दार्जिलिंग मे उत्पन्न होता है । मलयालम-मज्ञा पी० केरल प्रदेश मे प्रचलित भापा जो दक्षिण की विशेप-इसकी छाल दो अगुल से चार पांच अंगुल तक मोटी चार प्रमुख भाषाओं मे से एक है। होती है और लकडी भारी, पीलापन लिए सफेद रग की होती मलयालि-सज्ञा पुं० [ त० मलयालम ] मलयालम मे बसनेवाली एक । इसकी छाल और लकडी दोनो सुगधित होती हैं। लकडी पहाडी जाति का नाम । इस जाति के लोग पशुपालन और बहुत मजबूत होती है और साफ करने पर चमकदार निकलती खेती करते हैं और तमिल भाषा बोलते हैं। है जिसमे दीमक प्रादि कीडे नहीं लगते । इमसे मेज, कुरमी, मलयाली'—वि० [ त० मलयालम ] १ मलावार देश का । मलाबार सदूक आदि बनते हैं और इमारत आदि मे भी यह काम देश सबची। २ मलावार देश मे उत्पन्न । आती है । वसत ऋतु मे वीज बोने से यह वृक्ष उगता है । मलयाली-मशा खी० मलावार देश की भापा। केरल मे प्रचलित मलयज'-मचा पुं० [म. ] १ चदन । १०-मलयज घसि घनसार मैं सौरि किए गयगौनि । सेत बसन सजि तजि गली मलयुग-मञ्ज्ञा पुं० [ स० मल (= पाप )+ युग ] दे० 'कलियुग'। चली चाँदनी रैनि ।म० मप्तक, पृ० २५० । २ राहु । उ०-नाम पोट अव लगि बच्यो मलजुग जग जेरो। अव मलयज-विमलय पर्वत से भानेवाली । मलय पर्वत की। उ० गरीब जन पोपिए पायवो न हेरो।—तुलसी (शब्द०)। सोता तारक किरन पुलक रोमावलि मलयज वात | लहर, मलयोद्भव-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] च दन। पृ० १२॥ मलराना-क्रि० स० [ स० मल्ह ] दे० 'मल्हराना' । यौ to-मलयजरज = च दन का चूर्स । मलयजवात = दक्षिण की मलरुचि-वि० [ ] दूपित रुचि का। पापी। उ०—सेइय सहित वायु । मलवानिल। सनेह देह भरि कामधेनु कलि कासी। समनि सोक सताप मलयद्रुम-मक्षा पु० [ स०] १ च दन । २ मदन । मैना या मनी पाप रुज सकल सुमगल रासी। दडपानि भैरव नामक पेड। विपान मलरुचि खलगन भे दासी। लोल दिनेम त्रिलोचन लोचन मलयपवन-सज्ञा पु० [ स० ] दे० 'मलयानिल'। करनघट घटा सी।—तुलसी (शब्द॰) । मलयभूमि-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] हिमालय के एक प्रदेश का नाम । मलरोधक-वि० [ स० ] जो मल को रोके । जिसके खाने से कोष्ठ मलयवासिनी-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] दुर्गा । वद्ध हो । कब्जियत करनेवाला । काविज । मलयसमीर-सज्ञा पु० ॥ ] मलयानिल । मलय पवन । दक्षिणी मलरोधन-सज्ञा पुं० [ स० ] विष्ठभ । कोष्ठबद्ध । कब्जियत । वायु (को०)। मलवधा-वि० [?] स्वादरहित और अरुचि उत्पन्न करनेवाला । मलया'-मशा सी० [सं०] १ त्रिवृता । निमोय । २ सोमराजी। उ०--प्राकास का मलवधा स्वाद ।-गोरख०, पृ० २२३ । बावची । बकुची। मलवती-सज्ञा स्त्री॰ [ ] ऋतुमती स्त्री (को॰] । मलयालर-सञ्ज्ञा पु० [ मं० मलय ] श्वेत च दन । मलयज । मलय | मलवा-सज्ञा पु० [ बरमी ] हावर की जाति का एक पेड जो बरमा उ०—मलया के परसग से सीतल होगत साँप ।-पलटू, मे होता है। पृ० ३७। विशेप-यह बहुत अधिक उंचा नहीं होता। इसकी लकडी मलयागिरि-सज्ञा पु० [हिं०] ० 'मलयगिरि'। उ०—मलयागिरि चिकनी और नारगी रग की होती है और मेज, आदि बनाने के पीठि मंवारी। वेनी नाग चढा जनु कारी।—जायसी ग्र० के काम में आती है। (गुप्त ), पृ० १६६ । मलवा-सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'मलवा' । मलयाचल-मचा पुं० [ म० ] मलयगिरि । मलय पर्वत । मलवाना-क्रि० स० [हिं० मलना का प्रे० रूप ] मलने के लिये मलयादि-नशा पुं० [स०] मलयाचल । मलय पर्वत [को०] । प्रेरणा करना । मलने का काम दूसरे से कराना। मलयानिल-सद्या पुं० [सं०] १ मलय पर्वत की ओर से आनेवाली मलवासा-सञ्ज्ञा सी० [सं०] ऋतुमती स्त्री। वह स्त्री जो अपने वायु । दक्षिण की वायु । उ०—जा, मलयानिल, लौट जा, यहाँ मासिक धर्म मे हो [को०] । SO स० HO