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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/६४

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मवाद ३८२३ मशरिक डगर। विशेष—इस शब्द का प्रयोग रुपए और गाँव के अशो का द्योतन मवेशी-सज्ञा पुं० [अ० माशियह का बहु व० मवाशी ] पशु । ढोर । करने के लिये होता है। जैसे, मवाजी दस पाना, पवाजी पांच बीघा छह बिस्वा। यौ०-मवेशीखाना। मवाद-सज्ञा पु० [अ० १ सामग्री । सामान | मसाला । २ पीव । मवेशीखाना-सज्ञा पुं० [फा० मवेशीखान ] वह वाडा जिसमे मवाद । ३ प्रमाण । सबूत (को॰) । मवेशी रखे जाते हैं। मवाली-मज्ञा पुं० [अ०] १ यार दोस्त । सगी माथी । २ बदमाश । विशेप-वर्तमान सरकारी गज्य मे स्थान स्थान पर ऐसे गुडा । ३ दक्षिण भारत की अर्धसभ्य और उछ खल मवेशीखाने है जिनमे ऐसे मवेशी बद किए जाते हैं जिन्हे एक जाति । कृपक उनकी खेती को हानि पहुंचाने पर हॉककर ले जाते मवास-मज्ञा पुं॰ [ मं०] १ रक्षा का स्थान । पारणम्थल । पाश्रय । हैं। वे मवेशी नवतक उम मवेशीखाने मे बद रहते हैं शरण । उ० -( क ) चलन न पावत निगम पथ जग उपजी जबतक कि उनका मालिक प्रति मवेशी कुछ दड और खूराक अति त्रास । कुच उतग गिरिवर गहौ मीना मंन मवास |- खर्च वहाँ के कर्मचारी को नही दे देता। मवेशीखाने का विहारी ( शब्द०)। ( ख ) दैन लगं मन मृगहि जब विरह कर्मचारी 'मुहरिर मवेशी' कहलाता है। अहेरी त्रास । जाइ लेत हैं दौरि तब प्रीतम सुबन मवास । मश-मज्ञा पुं॰ [ म०] १ क्रोध । २ मच्छड । रस निधि ( शब्द०)। मशक'-सज्ञा पु० [ स०] १ मच्छड। २ गार्ग्य गोत्र मे उत्पन्न मुहा०-मवास करना = बसेरा करना। निवास करना। उ०- एक प्राचार्य का नाम जो एक कल्पमूत्र के रचयिता थे। कहै पदमाकर कलिंदी के कदवन पं, मधुवन कीन्हो प्राड महत ३ महाभारत के अनुसार शकद्वीप मे क्षत्रियो का एक निवास- मवामो है । -पद्माकर ( शन्द० )। स्थान । ४ मसा नामक चर्मरोग। २ किला । दुर्ग। गढ । उ०—( क ) हठो मरहठो ता मे राख्यो मशक-मशा स्त्री० [फा० ] चपडे का बना हुआ थैला जिसमे न मवाम कोऊ छीने हथियार डोले बन वनजारे से ।-भूषण पानी भरकर एक स्थान मे गरे स्थान पर ले जाते हैं । (शब्द०)। ( ख ) रहि न सफो सब जगत मे सिसिर मोत मशक कृटी-सज्ञा स्त्री॰ [ मे० ] मच्छड हाँकने की चौरी । के भास । गरमि भाज गढव भई तिय कुच अचल मवास । मशकबीन-सज्ञा ० [फा० मशक + हिं० बीन ] एक प्रकार का विहारी ( शब्द०)। (ग ) सिंधु तरे बडे वीर दले खल जोर मुंह से फूंककर वजाया जानेवाला वाजा जिसमे थैला सा हैं लक से बक मवासे । —तुलसी (शब्द०)। ३ वे पड जो बना रहता है और जिसमे एक नली फूकने के लिये तथा अन्य दुर्ग के प्राकार पर होते हैं । उ० -जहाँ तहाँ होरी जर हरि स्वर सयोजनार्थ होती है। यह शब्द (अ० वैग पाइप का ) होरी है। मनहुं मवामे अागि अहो हरि होरी है। -सूर हिंदी रूपातर है। (शब्द०)। मशकहरी-सज्ञा स्त्री॰ [म. ] २० 'मसहरी' । मवासी-सज्ञा ली० [हिं० मवास ] छोटा गढ । गढी । उ० मशकावती-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] एक नदी का नाम | ( क ) जम ने जाइ पुकाग्यिा टडा दीया डारि । सत मवासी मशकी-मज्ञा पु० [सं० मशकिन् ] उदुधर । गूलर का पेड जिममे व रहा फाँमि न पर हमारि ।—कबीर ( शब्द०)। (ख) मशक रहते हैं [को०] । कोट किरीट किए मतिराम कर चढि मोरपखानि मवासी।- ] कृतज्ञ को । मतिराम ( शब्द०)। मशक्कत ~ सञ्चा ली० [अ• मशक्कत ] १ मेहनत । श्रम । परिश्रम । मुहा०-मवासी तोहमा = (१) गढ तोडना। (२) विजय २ वह परिश्रम जो जेलखाने के कैदियो को करना पडता है । करना। सग्राम जीतना। उ०-कब दत्तं मवासी तोरी । कब जैसे, चक्की पीसना, कोल्हू पेरना, मिट्टी खोदना रस्सी वटना मुकदेव तोपची जोरी।—कबीर (शब्द॰) । आदि । ३ कष्ट । दु ख । तकलीफ (को०) । मवासी-मज्ञा पु० १ गढपति । किलेदार । उ०—(क) प्राइ मशक्कती- वि० [अ० मशक्कत ] मेहनत करनेवाला । मेहनती। मिले सब विकट मवासी। चुक्यौ अमल ज्यो रयत खासी।- परिश्रमी। लाल ( शब्द०)। (ख ) हुते शत्रु जेते भए ते भिखारी। मशगला -सज्ञा पु० [अ० मश्गलह, ] १. उद्यम । व्यवसाय । २. मवासे मवासीन की जोम भारी।-मूदन (शब्द०)। २ व्यापार । शगल । ३ कार्य । काम [को०] । प्रधान । मुखिया। अधिनायक। उ०—(क) गोरम चुराइ मशगूल-वि० [अ० मशगूल ] काम मे लगा हुआ । प्रवृत्त । लीन । खाइ बदन दुराइ राखं मन न धरत वृद्रावन को मवासी। मशरव-सज्ञा पुं० [अ० मश्रब] १. पानी पीने का स्थान । २ मत । मूर श्याम तोहि घर घर सब जान इहाँ को है तिहारी दासी। अकीदा । विश्वास (को०] । —सूर (शब्द०)। (ख ) वन मैं बसी बजावत डोलत घर मैं मशरिक-सज्ञा पुं० [अ० मश्रिक ] सूर्य निकलने का स्थान । भए हो मवासी-धनानद, पृ०४४४ । उदयाचल । २. पूर्व । पूरव । उ०—यो सुन्या हूँ शहर मशरिक ८-७ मशकूर-वि० [ प्र०