पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/६५

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मशरिकी ३८२४ मष्ट मरकूर-वि० [ का नकन, वादशाह उम शहर म्याने था अकल |-दक्सिनी०, यो०-मशीनगन = एक प्रकार की लूक जिसमे बहुत तेजी से पृ. ३६३ । गोलियां छूटती हैं। मशीनमैन = मशीन चलानेवाना ग्रादमी । मशरिकी - वि० [अ० मश्रिकी ] १ पूर्वोय । पूरव का । २ जो प्रेम मैन । पश्चिमी या यूरोप का न हो, एशिया का हो किो०] । मशीनगे-मज्ञा ग्गे० [अ० ] १ किमी कारणाने के यत्रो का ममूह । २ कार्यप्रक्रिया । रचनापति [को०] । मशरू-मगा पुं० [अ० मशरूम ] एक प्रकार का धारीदार कपडा। विशेष- यह रेशम और मूत मे बुना जाता है । मुसलमान स्त्री पुग्प मशीर-मज्ञा पुं० [अ० ] मशविग देनेनाना। मनाह देनेवाला। मप्रणा देनेवाला । मग्री। इसका पायजामा बनाकर पहनते हैं। यह अधिकतर बनारस मे वनता है। मशुन - न पु० [ म० ] श्वान । कुना [को०] । मशवरा-मणा पुं० [अ० मशवरह. ] ० मशविरा' । मश्क-शा पुं० [य. मम्फ ] किमी काम को अच्छी नन्द करने का अभ्याम । ३० - दिवा मन्न मुरिकत मश्क दीक । था मशविरा मा पु० [५० भश्वरह, ] मलाह । परामर्श । मत्रणा । पानी का वाँटा चश्मा श्रमीक ।-दनियनी०, पृ० ३१५ । यौ०-लाह मशविरा = परामर्ण। उ.- उन्होंने समझा कि मश्री-सग पी० [हिं० मगरी ] ro 'ममसरी'।1०-दुष्ट मुद्र पूर्व मे भी एक प्रवन गक्ति का प्रादुर्भार हुग्रा और बडे राणे ने मश्करी ये गय विप को चरणामृत कलाकर बडे राजकीय मामलो में प्रव श्रागे उसमे भी मनाह मशविरा भिजवाया।-राम० वर्म०, पृ० २८२ । करने की जरूरत पडा करेगी।-द्विवेदी (शब्द॰) । मश्कूक-वि० [अ०] १ जिगपर शक हो। म.देग्य । २ जिमको मशहूर-वि० [अ० 1 प्रख्यात | प्रसिद्ध । शक हो । शकावान । शकित (को०) । मशाता- सज्ञा स्त्री० [अ० मश्शातह.] १ प्रमाधिका । २ कुटनी । अ.] , 'मगार। दूती। उ०-- छिपी थी सो एक माह मद की छबीली। मशाता हो ईदी निगारत दिखाया। - दक्खिनी०, पृ० ७३ । मरशाक-वि० [अ० मश्शाक ] जिसे कोई काम करने का खूब अभ्यास हो। अग्यम्त । मशान-सज्ञा पुं० [ स० श्मशान ] मरघट | उ०-बमे मशान भूत संग लिये । रक्त फूल की माला दिए । लल्लू (शब्द॰) । मरशाकी-मज्ञा स्त्री० [अ० मरशा] अभ्यस्त होना। निपुग्ण होना । निपुणता [को०] । मशायरा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मशायरह, 1 दे० 'मुशायरा'। उ०-प्राज इस महल्ले में एक जगह मशायरा होगा इस वास्ते दो घडी मश्शाता-संशा सी० [अ० मश्शातह] प्रसाधिका । दे० 'मशाता'। वहीं जाने का इरादा है।-श्रीनिवास न०, पृ. ३६ । मप-सभा पुं० [ स० मख ] » 'मग्व' । उ०-दक्ष लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड जाग। नेवते मादर सकल सुर जे पावत मशाल-सज्ञा पुं० [अ० मशथल, मिशाल ] एक प्रकार की मोटी मप भाग 1-मानम, १ । ६० । बत्ती जिनके नीचे पकटने के लिये काठ का एक दस्ता लगा मपार-वि० [सं० श्रमर्प] १ ईग्यालु । ढेपी । २ क्रोधी । रहता है और जो हाथ में लेकर प्रकाश के लिये जलाई जाती है। ३ चिकना चुपटा। उ० --फदैत कुरंग ने दून मार । जर हेम पट्ट डोरी मपार । -पृ० रा०, ५८ । २१ । विशप-यह कपडे की बनाई जाती है और चार पांच अगुल के व्याम को तथा दो ढाई हाथ लगी होती है। जलते रहने मपि-सज्ञा सी० [ स०] १ काजल । मुरमा । ३ म्याही । के लिये इसके मुंह पर बार बार तेल की धारा डाली जाती है। मपिकूपी-मज्ञा सी० [ म० ] दावात । मुहा०-मशाल लेकर या जलाकर दिना= अच्छी तरह ढूंढ़ना । मपिघटी-सज्ञा री० [सं० ] दावात । बहुत हूंढना। उ०-अगर मशाल लेकर भी ढूंढोगी तो इतना मपिधान-मज्ञा पुं० [ ] दावात । वडा दुश्मन न मिलेगा।-फिमाना०, भा० ३, पृ० ६१३ । मपिपण्य-मश पुं० [ ] लिसन का काम करनेवाला । वह जो मशालची--सज्ञा पु० [फा०] [ सी० मशालचिन ] मशाल दिखलाने- लिखने का काम करता हो। लेखा। वाला । मशाल जलाकर हाथ मे लेकर दिखलानेवाला। मषिप्रसू-सज्ञा को॰ [सं०] १ दावात । २ कलम । मपिमणि-सज्ञा सी० । २० 'मसि' को । मशी-सका सी० [ ] दावात । मपी-राशा सी० । ] - मशीसत - सज्ञा स्त्री० [अ० मशीखत ] १ बडप्पन । बुजुर्गो (को०) । 'मपि'। २ शेखी। घमड। मष्ट-वि० [ ८० मष्ट, प्रा० मप्ट = मट्ट ] १ सस्कारशून्य । जो भूल गया हो । २ उदासीन । मौन । उ०—(क) सो अवगुन मुहा-मशीखत बघारना = वढ बढकर बातें करना। शेखी कित कीजिए जिव दीजे जेहि काज । अब कहनो है कछु नही वधारना। मष्ट भलो पखिराज । - जायसी (शब्द०) मुनिहैं लोग मशीन-सश सी० [अ०] किसी प्रकार का यत्र जिसकी सहायता मष्ट प्रबहुं करि तुमहिं कहाँ की लाज । सूर म्याम मेरौ माखन से कोई चीज तैयार की जाय । कन्न । भोगी तुम आवति वेकाज ।- सूर०, १० । ७७५ । RO HO म० O ] FO -