20 महन्ताना ३८३६ भहेर रज मित्ति सु गत्ति अनत मती। महनूर अदन्च न जाइ मती। मुर ठठ हैं ।--(भन्द०)। (ग) मेत नारी मोहत उजारी -पृ० रा०,६१ | ६३७1 मुख चद की मी महानि मद मुसक्यान की ममही । --मति० महन्ताना-मशा पुं० [अ० मेहनत ] रे० मेहनताना' । उ०—महर- ग्र०, पृ० ३०८ । बानी करके मेरा पूरा महन्ताना मुझको दिला दो मैं इसी मे महमहाना-क्रि० अ० [हिं० महमह अथवा महकना ] गमकना । तुम्हारा बडी सहायता समझूगा । -श्रीनिवास ग्र०, मुगवि देना। उ०-मल्लो म बलित ललित पारिजात पुज पृ० ३५५। मजु बन वेलिन, चमेलिन महमहात ।-रमकुसुमाकर (शब्द॰) । महफिल-मज्ञा स्त्री० [अ० महफ़िल | १ मनुष्यो के एकत्र होने का महमा-सञ्ज्ञा मा. [ २० महिमा ] 'महिमा'। स्थान । मजलिम । सभा। समाज । जलमा । २ नृत्य गीत महमाई@ -~-नश स्त्री० [ स० महामाया ] " 'महमाय' । उ०- होने का स्थान | नाच गान होने का स्थान । चारा भाट जन महमाई। भोजक भाट तहाँ चलि पाई । क्रि० प्र०-जमना । -मरना |-लगना । -कवीर मा०, पृ० ५४० । महफूज-वि० [अ० महफूज ] जिमको हिफाजत की गई हो। महमान-पशा पुं० [फा० मेहमान ] 20 'महमान' । मुरक्षित | बचाया हुआ । रक्षा किया हुआ । महमानिय-वि० [ मं० महा+मान्य ] अत्यत ममानित । महव-वि० [अ० मह व ] पूण रूप मे रत। लीन । उ०-जिम महामान्य । उ०---कह्यि वत्त भूपति ममानिन ।-१० रामो, वक्त यादमी का दिल किसी बात के ख्याल मे मब हो।- पृ०५१। श्रीनिवास ग्र०, पृ० ३१ । महमानी-सज्ञा स्त्री॰ [फा० मेहमानी ] २० 'मेमानो' । महबूब -सञ्ज्ञा पु० [अ० ] वह जिमसे प्रेम किया जाय । जिससे दिल महमिल-तज्ञा पुं० [अ० ] ऊंट को पाठ पर कमा जानेवाला हीदा । लगाया जाय । उ०-रसनिधि पावत देखके मनमोहन महबूब । पलान [को०)। उमडी डिठ वरुनीन की दृगन बधाई दूव ।--रसनिधि महमाय-सज्ञा स्त्री० [० महामाया] पार्वती। (टि०)। उ०—बाल (शब्द०)। वृद्ध भव्धन करो, हम का दं महमार । -. रा०, २२।१० । महबूबा-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] वह स्त्री जिसमे प्रेम किया जाय । महमूदी' -नशा नी० [फा० महमूद + ई (प्रत्य॰) ] मल्लम को तरह प्रेमिका । माशूका । उ०-प्राशिकहूं पुनि आप तो महबूबा पुनि का एक प्रकार का मोटा देशो कपडा। आप। चाहनहारो आप त्यो वैपरवाही पाप । --रमनिधि महमूदो-सज्ञा पु० एक प्रकार का पुराना छोटा निकका । (शब्द०)। महमत-वि० [सं० महा + मत्त ] मस्त । उन्मत्त । महमेज - सज्ञा स्त्री॰ [फा० महमेज ] एक प्रकार की लोहे की नाल । उ०—काया कजरी बन अहै मन कुजर महमत । अकुश ज्ञान विशप-यह जूते मे पीछे की प्रार एडी के पाम लगाई जाती रतन है फेरै माधू मत |—कबीर (शब्द॰) । है और इसको सहायता से घाडे क सवार उसे चलाने के लिये एड लगाते ह। उसके पीछे एक छोटा घूमनेवाला महमद।-सज्ञा पु० [ म० मृगमद ] २० 'मृगमद' । उ –साँझो काटेदार पहिया लगा होता है, जा घाड को पाठ पर लगता समइ धन कियो सीणगार । सीरह महमद गलि मोती हार ।- है और घूमता है। बी० रामो, पृ० ११४ । महम-सज्ञा पु० [अ०] चिंता । फिक्र । उ०—लागी महम गनीम महम्मद - सज्ञा पुं० [अ० मुहम्मद ] १० मुहम्मद' । पर काल कटक कटकन । कबीर ग्र०, पृ० ५६० । महम्मदा-सा पु० [ ] 70 'महमदो' । महमद-सशा पु० [अ० मुहम्मद ] दे॰ 'मुहम्मद'। उ०—परबल महर' - सञ्चा पु० [ सं० महत् या महार्ह, हिं० महरा (= वडा, श्रेष्ठ ) भजन गरुन महमद मदगामी।—कोति०, पृ० १०० । [ सी० महरि ] १ ज मे बोला जानवा ना एक पादर- सूचक शब्द जिमका व्यवहार विगेपत जमादारो और वैश्यो महमदी-वि० [अ० मुहम्मदी ] मुहम्मद का मतानुयायी । प्रा.द के सवध मे होता है। ( कभी कभी इस शन्द का मुसलमान । व्यवहार केवल श्राज्य के पालक और पिता नद के भहमह-क्रि० वि० [हिं० महकना ] सुगधि के साथ । खुशबू के लिये भी बिना उनका नाम लिए ही हाता है)। उ०-महर के माय । उ०—(क) महमह महमह महकत परती रोम विनय दोऊ कर जोरे घृत मिष्टान पय बहुत मगायो ।-सूर रोम जनु पुलकि उठी।- देवस्वामी (शब्द०) । (ख) चारु (शब्द०)। (ख) यूर अभिलापन को चाखन के माखन ले चमेली बन रही महमह महकि सुबास । हरिश्चद्र (शब्द॰) । दाखन मधुर भरे महर मंगाय रे ।—दीन (शब्द०)। (ग) महमहण--मुज्ञा पु० [ स० महि+ मयन ] विष्णु ( डि० )। ब्रज की विरह अरु मग महर की कुवरािह वरत न नेकु लजान । महमहा--वि० [हिं० महमह ] [ वि०मी० महमही ] सुगधित । —तुलसी (शब्द०)। २ एक प्रकार का पक्षी । खुशबूदार । उ०—(क) महमही मद मद मारुत मिलनि, तैसी सारो सुवा महर कोकिला। रहसत पार पपीहा मिला । गहगही खिलनि गुलाब के कलीन की।-रमखनि (शब्द॰) । -जायसी (शब्द०)। ३ दे० 'महरा' । उ०-नाक वारी (ख) मह्महे लोक दस चारहू मुगवन तें उमहे महेश अज भादि महर सब, धाऊ धाय समेत ।-रघुराज (शब्द०)। मदमत्त । श्र० उ०-
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७७
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