सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महरुमा महवट दश० । 3 महरुआ-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] जस्ता । (सुनार) । ३ वडा कमग । ४ अवसर । मौका । वक्त । ५ पहाडी मधु- महरू --सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ चडू पीने की नली। २. एक प्रकार का मक्खी । मारग । उगर । ६ पत्नी । बीबी (को०)। ७ मकान । वृक्ष । घर (को०)। ८ जगह । स्थान (को०)। महरू-वि० [ फ़ा० माहरू ] चद्रवदन । चद्रमुख । उ०-वह जुल्फ यौ० महलदार = वह व्यक्ति जो मकान को व्यवस्था और रक्षा मेर महा खमदार कहाँ है ।—कबीर म०, पृ. ३२४ । करे । महलसरा । महलखम = पटरानी । बडी बेगम । महरूम-वि० [अ०] १ जिसे प्राप्त न हो। जिसे न मिले । वचित । महल पु -मज्ञा स्त्री० [ म० महिला 70 'महिला' । उ०-जो माल उ०-इन्सान ग्वबर संर से महरूम हुआ है। -कबीर म०, वीजी महल पाखइ झूठ एवाल ।-ढोला०, दू० ४४० । पृ० १४१ महलम-वि० [अ० महल्लन् ] १ मर्वप्रधान । मर्वप्रमुन्य । क्रि० प्र०—करना । —रखना ।—रहना । गोचर | व्यक्त । ३ ईश-कृपा-प्राप्त । उ० - महनम जुगपति २ वर्जित। जो रोका गया हो (को०)। ३ निपिद्ध (को०)। ४ चिजिवे जीवथु ग्यागदीन मुरतान । -विद्यापति, पृ० २ । वेनमीव । अभागा (को०)। ५ जो किसी काम का न हो। महलसरा सा मी० [अ० महल + फा० सरा] महल का वह नाकाम । बेकाम (को०)। भाग जिममे रानियाँ या बेगमे आदि रहती है। अत पुर । महरेटा-मज्ञा पु० | हिं। महर + एटा (प्रत्य॰)] रनिवाम । जैसे, शाही महलगा। महर का बेटा । महर का लडका । २ श्रीकृष्ण । महलाठ-सरा पुं० ['ग०] एक प्रकार का पक्षो जिमको दुम लबो, महरेटी-सज्ञा स्त्री० [हिं० महरेटा ] वृषभानु महर की लडकी, ठोर कालो, छातो संगे, पीठ खामी रग की और पैर काले श्रीराधिका । उ०-। क) नूपुर की धुनि मुनि रीझत है महरेटी होते है। खोलति न याते जब जब पापु गमि जात ।-रघुनाथ महलायतYT-ना पुं० [अ० महल ] महल । प्रामाद । उ०- (शब्द॰) । (ख) लाती महरेटी के अधर मरसान लागे अधरन दखा महतायत एक पलका के नगन मे ।-नट०, पृ. ११२ । बान लागे बतिया रसाल की ।-रघुराज (शब्द०)। महलिया @-शा मी० [अ० महल + हिं० इया (प्रत्य॰)] छोटा महरो-वि० [देशी] असमर्थ । —देशी०, पृ० २५७ । महल । उ०-झरि लागे महलिया गगन घहराय ।-घरम० महर्षता सज्ञा स्त्री० [ म० ] महगे का भाव । महंगो । श०, पृ०३३। मर्बानीg स्रो० [फा० महरवानी ] १० 'मेहरवानी' । महली@t- वि० [अ० महल + हिं० ई (प्रत्य॰)] महल ( शरीर ) उ.- हमको तो आपकी महर्वानी चाहिए।-श्रीनिवास ग्र०, में रहनेवाला ( जीव )। उ० --गुरमुखि माचा जोग कमाउ । पृ० ३७ । निज घरि महली पावहि थाउं । -प्राण०, पृ० १०६ । महर्लोक-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] पुराणानुसार भू, भुव प्रादि चौदह लोको महलो पटैला-मज्ञा पु० [हिं० महन्त + पटेला ] एक प्रकार की बडी नाव जिमपर केवल लकडी या पत्थर यादि लादा जाता है। विशेष -१४ लोको में से ७ ऊर्ध्वलोक और ७ अधालोक है। महल्ल' -मज्ञा पु०[सं०] राजा के प्रत पुर मे रहनवाला। हिंजडा (को॰] । महर्लोक इन ऊर्चलोको मे मे चौथा है। विशेष-मस्कृत मे यह शब्द अरबी मे पागत माना गया है। महर्पभी-मन्ना स्त्री० [सं०] काँछ। केवाच । महल्लg२ - सज्ञा पु० [अ० महत] २० 'महल' । उ० – चढं लोक महपि-सज्ञा पु० [ म० महा+ऋपि ] १ वहुत वडा और श्रेष्ठ ऋपि । चल्ल, मसीतां महल्ले । झरोखो सझायौ, उठो माह पायो । ऋपीश्वर | जैसे, वेदव्यास, नाद, अगिग इत्यादि । २ -रा० रू०, पृ० ३२ । एक गग जो भरवराग के पाठ पुत्रो मे से एक माना जाता है। उ० -पचम ललित महर्षि बिलावल अरु वैशाख मुमाधव पिंगल । महल्लक'-वि० [ म० ] कमजोर । पुराना । जर्जर । क्षीण , फो०] । यहित समृद्धि आठ मताना। भैरव के जानहु नर पाना । महल्लक'-- सञ्ज्ञा पु० १ १० 'महल्ल"। २. वडा मकान । प्रासाद [को॰] । -गोपाल (शब्द०)। महल्ला - मञ्ज्ञा पुं० [अ० महल्लह, ] शहर का कोई विभाग या टुकडा महर्पिका -मन्ना नी० [सं०] मफेद कटकारी । भटकटैया। जिसमे बहुत से मकान आदि हो । महल'-सशा पु० [अ० ] १ राजा या रईस आदि के रहने का यो-महल्लेदार = महल्ले का चौधरी या प्रधान । बहुत वना पार बढिया मकान । प्रामाद । उ०—निाम गई महल्लिक-सञ्ज्ञा पुं० [ 10 ] हिंजडा । जनखा। पुरुपेंद्रियरहित पच पल एक जाम | राजन्न महत प्रावेम ताम |-पृ० रा०, स्त्रीस्वभाव का व्यक्ति [को०) । १३६९ । २ राजप्रामाद का वह विभाग जिसम रानिया आदि रहती हा । रनिवास । अत पुर। उ० - कुज कुज नवपुज महवट-सज्ञा स्त्री० [हिं० महावट] माघ की वर्षा । २० 'महावट' । महल सुवस बमो यह गाव री ।-स्वामी हरिदास (शब्द॰) । उ०-नैन चुपहिं जस मह्वट नीरू । तोहि विन अग लाग सर चीरू।—जायसी ग्र०, पृ० १५५ । -सज्ञा मे से एक।