पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महशर ३८३६ महाईस महशर - सज्ञा पुं० [अ० मह शर] १ महाप्रलय । २ कयामत का महावुक-सा पु० [सं० महाम्दुक ] शिव (को०] । दिन । मुसलमानी धर्म के अनुसार वह अतिम दिन जब ईश्वर महाबुज-सज्ञा पुं० [सं० महाम्बुज] १ दम अरब । २ दस अर्व । सब प्राणियो का न्याय करेगा। उ०-रखता हूँ क्यूं जफा को महाँ '-- अव्य० [हिं० महँ ] ३० 'मह' । उ०—प्रभु नत्य करी प्रह्लाद तुझ पर रवा ऐ जालिम । महशर मे तुझमे आखिर मेरा गिरा प्रगटे नर केहरि सभ महाँ । -तुलगी ( गब्द० )। हिसाव होगा।-क० को०, भा०४, पृ० ८ । ३ कयामत का मैदान । बहुत से लोगो के एकत्र होने का स्थान । ४ महाँ २-वि० [म० महा ] दे० 'महा' । हगामा। उपद्रव । महा-वि० [सं०] १ अत्यत । बहुत । अधिक । उ०-महा अजय -महशर बरपा होना= भारी हगामा मचना । समार रिपु जीत मकइ मो वीर | जाके प्रम रथ होइ दृढ मुहा- महसिल-सज्ञा पु० [अ० मुहस्सिल ] तहसील वमूल करनेवाला । सुनहु सखा मतिधीर ।-तुलसी (शब्द०)। २.मर्वश्रेष्ठ। सबसे बढकर। उ०-महा मत्र जोइ जपत मेहेमू । कासी महसूल आदि वमूल करनेवाला । उगाहनेवाला। उ०-मोत मुकुति हेतु उपदेसू । —तुलसी (शब्द०)। ३ बहन बहा । नैन महसिल नए बैठत नहिं हुई सीन। तन वोघा पै करत है ये मन की तहसील ।-रसनिधि (शब्द०)। भारी । जैसे, महाबाहु, महासमुद्र । उ० - ( क ) बुद मोग्वि गो कहा महा समुद्र छीजई । -केशव (शब्द०)। (अ) कहै महसीर--मज्ञा स्त्री॰ [ दश० ] एक प्रकार की मछली। विशेष द० पद्माकर मुबास तें जवाम ते मुफूलन को राम तें जगी है महा 'महासीर'। सास ते ।- पद्माकर (शन्द०)। महसूद-वि० [अ० मह सूद ] जिससे ईर्ष्या की गई हो । ईपित [को॰] । विशेष-ब्राह्मण, पात्र, यात्रा, प्रस्थान, निद्रा, तेल और मान महसूब-वि० [अ० मह स ब ] १ हिमाब मे जोडा या गिना हुआ । इन शब्दो मे 'महा' शब्द लगाने मे इन शब्दो के अर्थ कुरिमत हो २ मुजरा किया हुआ [को०] । जाते हैं। जमे,-महाब्राह्मरण = कहा ब्राह्मण । महापान% महसूर-वि० [अ० महसुर ] १ घेरे मे पाया हुआ। घिरा हुआ । कहा ब्राह्मण। महायात्रा = मृत्यु। महाप्ररथान = मृत्यु। २ शत्रु के घेरे मे पाया हुआ (को०] । महानिद्रा = मृत्यु । महामास = मनुष्य का मांस । महसूल-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १. वह धन जो राजा या कोई अधिकारी यौ.-महावली = अत्यत शक्तिवान् । बलवान । ममर्थ। उ०- किसी विशिष्ट कार्य के लिये ले । कर । २ भाडा । किराया । माचा समरथ गुरु मिन्या, तिन तत दिया बताइ । दादू मोटा जैमे,-आजकल रेल का महसूल कुछ वढ गया है । ३. भूकर । महाबली घटि घृत मथि करि स्वाइ।-दादू०, पृ० ७ । मालगुजारी । लगान । महबिरही = मत्यत वियोगपीडित । उ०-मनहु महाविरही महसूल-वि० प्राप्त किया हुा । हामिल (को॰] । अति कामी ।-मानस, ३।२८ । महाबिरहिनी = अति महसूलो-वि० [प्र०] १ जिसपर किसी प्रकार का कर या महमूल वियोगिनी। उ०-छिनक माझ बरनी तिहि वाला। महाबि- हो या लग सकता हा। महसूल के योग्य । २ जिसपर लगान रहिनी ह तिहि काना ।-नद००, पृ. १६४ । महामनि = या महमूल देना पडता हो । मणि जिममे सर्पविप दुर होता है। 30-मन महामनि विषय व्याल के। -मानस, १२३२ । महसूस-वि० [अ० महगूस ] १ जिसका अनुभव किया जाय । अनुभूत । २. मालूम । ज्ञात । ३ प्रकट । स्पष्ट (को॰] । महा-मज्ञा पुं॰ [हिं० महना ] मठ्ठा । छाछ । उ०-रीझि बूझो यौ०-करना । - होना। मव की प्रतीति प्रीत एही द्वार दूध मो जग्यो पिवत पूंकि महसूसात-भञ्ज्ञा पुं० [म. महमूस का बहु व० ] अनुभूति का कि मह्यो हौ । - तुलसी (शब्द०)। समुच्चय । अनुभूतियाँ (को०] । महा-मज्ञा श्री० [ म०] १ गाय । २ गोपवाली [को०] । महत्वान-वि० [सं० महस्वत् ] ज्योतिर्मय । तेजयुक्त । शानदार । महाअरभ- वि० [सं० मह + रभ (= शोर, हलवल ) ] बहुत २ महान् । शक्तिमपन्न (को०] । गोर | बहुत हलचल । उ०- नीर होइ नर, ऊपर मोर्ट महा- महत्वी-वि० [ स० महस्विन् ] दे॰ 'महस्वान्' [को०) । अर म समुद जम होई। जायसी (शब्द० Di महाग'- वि० [स० महाग ] भारी भरकम । मोटा (को०] । महाअहि - संज्ञा पुं॰ [ मं० ] शेषनाग । महाग'-सज्ञा पुं० १ ऊंट । २ एक प्रकार का चूहा । ३. शिव । ५. महाई। - सज्ञा रसी० [ म० मथन, हिं० महना - थाई (प्रत्य॰)] १. गोखरू । ५ रन चित्रक वृक्ष [को॰] । मथने का काम । २ नील की मथाई। नीत के रंग को नवन महाजन-सज्ञा पुं० [ स० महाजन ] एक पर्वत का नाम (को०] । का काम । ३ मयने का भाव । ४ मयने यी मजदूरी। महातक-सज्ञा पुं० [स० महान्तक] १ मृत्यु । मौत । २. शिव (को०]। महाईस सझा पु० [ स० महेश<महा + ईग ] महादेव । उ०- महाधकार-सज्ञा पुं० [स० महान्धकार ] १ घोर अंधेरा। भयकर महाईस जगदीम जोगिमनि महादेव नियम क्यापर।- अधकार । २ आत्मा सवधी घोर अज्ञान [को०] । घनानद, पृ०४०६ । . Y ८-8