पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/८१

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महाउत ३८४० महाकाली वही मख्या। महाउत-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'महावत' । उ० - हूलै इत पर महाकला-सज्ञा ग्री० [ नं0 ] शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की गन यो०] । मैन महाउत लाज के प्रादू परे गथि पायन ।-पद्माकर महाकल्प-सज्ञा पुं॰ [ म० ] पुगणानुसार उतना वाल जितने में एक ( शन्द०)। ब्रह्मा की आयु पूरी होती है । ब्रह्माकल्प । निरोप दे० 'कल्प'। महाउर-सञ्ज्ञा पु० [हिं०] दे॰ महावर'। उ०—(क) प्यारो लग यो०-महाकल्पात = महाकरप का प्रत समय। उ.-महारुल्पात यह जाकी सनेह महा उर बीच महाउर को रंग।-देव ब्रह्मार मटल दवन भवन कैलाश प्रागीन पानी -तुलनी (शब्द॰) । (ख) मोहि तो साध महा उर है री महाउर नाइन ( शब्द०)। तोसो दिवाऊं । —दास ( शब्द०)। महाकवि-मश पु० [ मं० महा+कवि ] १. महान् कवि । गासे महाऔषधी-सज्ञा पुं० [पुं० महौषध] सोंठ। उ०—विस्वा नागर वडा कवि। जमे, कालिदास, भवभूति, वाण, माघ, भारवि, जगभिपक महाप्रौपधी नाउ ।-अनेकार्थ, पृ० १०४ । हर्प आदि । उ०-उपाध्याय जी यो एक मात्र महाकवि महाककर-सज्ञा पुं॰ [ स० महाक्कर ] बौद्धों के अनुसार एक बहुत और प्रशस्त प्राचार्य रहने मे रचा भी नहीं हिचकिचात ।- रम क०, पृ० ३ । 0 गुकानार्य (०) । महाकद-सञ्ज्ञा पुं० [स० महाकन्द ] १ लहसुन । २ प्याज । महाकपाय-सज्ञा पु० [सं० ] कायफल [को०] । उ.-सवा में पान जीव प्रति लायो। सवासेर महाकद मंगामो।-कवीर सा०, पृ० १५५। महाकात-मज्ञा पुं० [ म० महाकान्त ] शिव । महाकाता-सा पी० [ मै० महाकन्ता ] पृथ्वी । धरा । महाकबु-सज्ञा पुं॰ [ स० महाकम्नु ] शिव । महाकच्छ-सञ्ज्ञा पु. [ सं• ] १ समुद्र । २ वरुण देव । ३ पर्वत। महाकातार-नस पुं० [म० महाकान्तार] एक प्राचीन देश का नाम । पहाट । ४ एक प्राचीन देश का नाम । महाकाय-मज्ञा पु० [स० ] | शिव जी ना बदी नामा गण और द्वारपाल । २ शिव (को०) । ३ विगु (को०)। मगन गह महाकन्य-सज्ञा पुं॰ [ सं• ] एक प्रवरकार ऋषि का नाम । (को०)। ५ हाथी। महाकपर्द-सज्ञा पुं॰ [ स० ] एक प्रकार की सीपी या शख (को०] । महाकाय-वि० विशालकाय | भारी भरकम शरीरवाला । [को०] । महाकपाल-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक राक्षस का नाम। २ शिव के एक अनुचर का नाम। महाकार्तिकी-सज्ञा सी० [म० ] कार्तिक की वह पूर्णिमा जो रोहिणी महाकपि-तज्ञा पुं॰ [सं.] १ शिव के एक अनुचर का नाम । २ नक्षत्र मे हो । यह बहुत पडी पुण्यतिथि मानी जाती है । एक बोभिमत्व का नाम । महाकाल-सज्ञा पुं० [सं०] , सष्टि और प्रणियों का प्रत करने- महाकपित्थ—सझा पुं० [सं०] १ बेल का वृक्ष। २ रक्त लशुन । वाले, महादव । शिव का एक म्वरूप। उ०—कराल महाकाल लाल लहसुन [को०] । काल वृपाल । —तुलसी (शब्द०)। २ शिव के द्वादश ज्योति- महाकपोत-मा पु० [ से० ] सुश्रुत के अनुसार २६ प्रकार के बहुत लिंगो मे से एक जो उज्जैन (ज्जयिनी ) में है । ३ विप्रणु का ही विषधर साँपो मे से एक प्रकार का माप । एक नाम (को०)। ४ समय जो विष्णु के समान अखड और महाकपोल-सज्ञा पु० [ स० ] शिव के एक अनुचर का नाम । अनत है । ५ तुंबी लता । कटुतुवी (को०)। ६ शिव के एक गण का नाम । ७. पुराणानुसार शिव के एक पुत्र का नाम । महाकरज-सज्ञा पुं० [सं० महाकरज ] एक प्रकार का करज जो वडा होता है। विशेप-कालिका पुराण मे लिखा है कि एक बार देवतामो ने अग्नि से शिव का वीर्य धारण करने के लिये कहा पा। जब विशेप-इसका व्यवहार प्रौपध रूप में होता है। वैद्यक मे इसे वह वीर्य धारण करने लगा, तव उसम ने दो बूदें अलग जा तीक्ष्ण, उष्ण, कटु तथा विष, फडु, कुष्ठ, प्रण और त्वचा के दोपो का नाशक माना है। पडी जिनसे महापाल और भृगी नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए । एक बार इन दोनो पुत्रो ने भवानी को उन समय देख लिया पर्या०-हस्तिचारिणी। विषनी। काकनी। मदहस्तिनी । था जिस समय वे शिव के माथ विहार करने के उपरात वाहर मधुमती। रसायनी । हस्तिकरज । काकमाडी । मधुमत्ता। निकल रही थी। भवानी ने उन्हे शाप दिया जिससे ये दोनो महाकर'-सझा पुं० [सं०] एक बोधिसत्व का नाम । वैताल और भैरव हुए। - महाकर-वि० १ लवे हाथवाला। महाबाहु । २ जिमसे अच्छी महाकालपुर-सज्ञा पुं॰ [ म० ] उज्जैन [को०] । थामदनी होती हो को०] । महाकालफल-सशा पुं० [सं० ] एक प्रकार का फल जो लाल होता महाकर्ण-सज्ञा पु० [ स० ] १ शिव । २. एक नाग का नाम । है और जिसका वीज काला होता है (को०] । महाकर्ण-सशा स्त्री॰ [ स० ] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । महाकाली-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ महाकाल स्वरूप शिव की पत्नी महाकर्णिकार-सज्ञा पुं॰ [ ] अमलतास । जिसके पांच मुख और पाठ भुजाएं मानी जाती हैं। २ दुर्गा महाकर्मा-सज्ञा पुं॰ [ १० महाकर्मन् ] शिव का एक नाम [को॰] । की एक मूर्ति । ३. शक्ति की एक अनुचरी का नाम । ४. जैनो go