पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/८९

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महाभाग ३८४८ महामति ग० alo महाभाग-वि० [सं०] १ भाग्यवान् । फिम्मतवर । २ महान् महाभीता-सशा पुं० [ ] लजालू । विशिष्ट । ३ पवित्रात्मा। महाभीम'-मचा पुं० [ मं०] १ राजा शातनु का एक नाम । २ शिव के शृगी नामक द्वारपाल का एक नाम । महाभागवत-सज्ञा पुं० [सं०] १ बारह महाभक्त अर्थात् मनु. सनकादि, भरत, जनक, कपिल, ब्रह्मा, बलि, भीम, प्रह्लाद, महाभीम-वि० अत्यत भयानक । बहुत भयर (को०] । शुकदेव, धर्मराज और शभु । २ एक प्रकार के छद का नाम । महाभीरु-सज्ञा पुं० [ मं० ] ग्वानिन नाम का नग्नाती कीटा। २६ मात्रायो के छदो की मज्ञा । ३ परम घेण्णव । १० महाभीष्म-मश पुं० [ स० ] गा गातनु का एक नाम । 'भागवत' (पुराण)। महाभुज-मज्ञा पुं० [सं० ] वह जिसकी बांह नहुत उबी हो। महाभागा-सज्ञा स्त्री॰ [ ] दाक्षायिरगी का एक नाम । याजानुवाह। महाभागी-वि० [सं० महाभागिन् ] अत्यत भाग्यवान् (को०] । महाभूत-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और पाप महाभारत-मज्ञा पु० [म० ] १ एक परम प्रसिद्ध प्राचीन ऐतिहासिक ये पचतत्व । उ०-वालहू के कान महाभूननि के महाभून करम महाकाव्य जिसमे कौरवों और पाडवों के युद्ध का वर्णन है । के करम निदान के निदान हो ।-तुलमी (गन्द०) विशेष—यह ग्रथ आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, विशेप-६० 'भूत'। द्रोण, कर्ग, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शाति, अनुशासन, अश्वमेघ, महाभ ग-मक्षा [ स० महाभृा ] नीले फूनवाला नंगरा। श्राश्रमवामी, मौसल, महाप्रस्थान और स्वर्गारोहण इन अट्ठारह महाभैरवमा पु० [ म० ] शिव । पों में विभक्त है। कुछ लोग हरिवश पुराण को भी इमी के महाभैरवी-राग म्० [ मं० ] तात्रिकों के प्रतर्गत और इसका अतिम अश मानते हैं। इन अथ मे लगभग अनुसार एक विद्या का नाम । ८०-६० हजार श्लोक है। ऐतिहासिक और धामिक दोनों दृष्टियो से इस ग्रन का महत्व बहुत अधिक है । यो तो महाभारत महाभोग-सा पुं० [ #० ] १ नांप। २ दे० 'महाप्रमाद' । ग्रथ कौरव-पाडव-युद्ध का इतिहास ही है पर इनमे वैदिक काल महाभोगा-गज्ञा स्पी० [ मं० ] दुर्गा । की यज्ञों में कही जानेवाली अनेक गावानों और पाख्यानों महाभोगी-मशा पुं० [ मं० महामोगिन् ] बडे फनवाला मांप। आदि के संग्रह के अतिरिक्त मर्म, तत्वज्ञान, व्यवहार, राजनीति महामडल-सज्ञा पुं॰ [सं० महा+मण्डल ] १ बहुत बडा मघटन । आदि भनेक निषगों का भी बहुत अच्छा समावेश है। कहते वडा मघ । २ वहुत विशाल परिवि या घेरा। हैं, फौरन-पाडन-मुद्ध के उपरात व्यास जी ने 'जय' नामक ऐतिहामिक काव्य की रचना की थी। वैशपायन ने उसे और महामडलिक-सज्ञा पुं० [सं० महा+माण्डजिक ] प्राचीन राजायो की एक उपाधि । उ०-~-प्रतिहार तथा पाल नरेशों के लेखो मे वहाकर उसका नाम 'भारत' रखा। मवके पीछे सोति ने उममे उनके लिये राजन, गजन्यक, राजनक, मामत अथवा महासामत और भी बहुत सी कथाप्रो आदि का समावेश करके उसे वर्तमान शब्दों का प्रयोग मिलता है। कहीं कहीं वह महामलिक के रूप देकर 'महाभारत' बना दिया। महाभारत मे जिन वातों नाम मे भी पुकारा जाता था।-पू० म० भा०, पृ०६८ ! का वर्णन है, उसके प्राधार पर एक ओर तो यह ग्रथ वैदिक साहित्य तक जा पहुंचता है और दूसरी ओर जनो तथा बौद्धो महामत्र-मज्ञा पु० [ म०] १ वेद का कोई मत्र। वेदमत्र । २ के पार भिक काल के साहित्य से प्रा मिलता है। हिंदू इमे बहुत सवसे वढा मग । उत्कृष्ट मय । उ-महामन जोइ जपत ही प्रामाणिक धर्मग्रंथ मानते हैं। महेमू । कासी मुकुति हेतु उपदेम् ।—मानस, १११६ । ३ वह २ कोई बहुत बडा ग्रंथ । २. कौरवो और पाडवो का प्रसिद्ध युद्ध मंत्र या मलाह जिसको महायता से किमी काम का होना जिसका वर्णन उक्त महाकाव्य में है। ४ कोई बड़ा युद्ध या निश्चित हो । प्रच्छी और बढिया सलाह । उ-राजा राज- लडाई झगडा । जैसे, यूरोपीय महाभारत । उ०-अबकी बार पुरोहितादि मुहृदो मत्री महामंत्र दा।-केशव (गन्द०)। प्रत्यक्ष महाभारत होइ गया।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३०७ । महामत्री- गज्ञा पुं० [ म० महामन्त्रिन् ] राजा का प्रधान या मवसे महाभाष्य-सञ्ज्ञा पुं० [ न० ] पाणिनि के व्याकरण पर पतजलि का वहा मनी। लिसा हुआ प्रसिद्ध भाप्य । महामट्ट-सचा पु० [ म० महा + महक ] बडा मटका । नांद, जिसमें महाभासुर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] विष्णु का एक नाम (को०) । रंगरेज कपडे रंगते हैं। उ०-फट कुभ प्राहार श्रोन अजेज । महाभिक्षु-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] भगवान बुद्ध । महामट्ट फुट्या मनो रगरेज |-पृ० रा०, १२ । ३७८ । महाभिपव-सज्ञा पुं० [ J सोम का रस (को०] । महामणि-नग्या पुं० [सं०] १ मूल्यवान् रल । २ शिव (को०] । महाभिनिष्क्रमण-सज्ञा पुं॰ [ स० महा + अभिनिष्फमण ] १ बाहर महामति'-वि० [ म०] १ जो बहुत बडा बुद्धिमान् हो। २ जो जाना । २ प्रव्रज्या के लिये वाहर जाना। वहुत अधिक उदार विचार का हो [को०] । महाभीत-मज्ञा पुं० [सं०] १ राजा शातनु का एक नाम ।२ महामति:--मशा पुं० १ गणेश । २ एक यक्ष का नाम । ३ एक शिव के शृगी नामक द्वारपाल का एक नाम । बोधिसत्व का नाम । ४ वृहस्पति (को०) । स०