पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/९१

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७ व्यास। HO म० म स० स० महामुनि ३८५० महायोगा भी एक उपविभाग था जो राज्य मे प्रवेश के लिये विदेशियो को महायक्ष-सज्ञा पुं० [सं० ] १ यक्षो का राजा। २ एक प्रकार के अनुमति पत्र देता था। पू० म० भा०, पृ० १०६ । बौद्ध देवता। महामुनि-नशा पुं० [ मं०] १ मुनियो मे श्रेष्ठ । बहुत बड़ा मुनि । महायज्ञ-मज्ञा पुं० [सं०] १ हिंदू धर्मशास्त्र के अनुमार नित्य किए २ कपटी व्यक्ति । ठग । चोखेबाज (व्यग्य , ! ३ अगस्त्य जानेवाले कर्म जो मुख्यत पांच हैं-(क) यह्मयज्ञ = सध्योपासन, हपि । ४ बुद्ध । ५ कृपाचार्य । ६ काल । (२) देवयज्ञ = हवन, (३) पितृयज्ञ = तर्पण, (४) भूतयज्ञ एक जिन का नाम । ६ तुंबुरु का वृक्ष । बलि और (५) नृयज्ञ = अतिथिसत्कार । महामूत्ति 1-सा झी० [३०] विष्णु । विशेष-इन पांचो कर्मों के नित्य करने का विधान है। कहते हैं, मनुष्य नित्य जो पाप करता है, उनका नाश इन यज्ञो के महामूल-सञ्ज्ञा पु० ॥ म० ] प्याज । अनुष्ठान से हो जाता है । २ महान कार्य । ऐसा कार्य जिमका महामूल्य'--मशा पु० [स०] माणिक । लक्ष्य अत्यत ऊंचा हो। महामूल्य-वि० १. जिमका मूल्य बहुत अधिक हो। बहुमूल्य । २ महायम-सन्चा पुं० [ ] यमराज। महगा । महाघ । महायशा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महायशस् ] महायगस्वी । अत्यत प्रसिद्ध । महामृग-संज्ञा पुं० [ ] हायी। ख्यात । समानित [को०] । महामृत्यु जय-सचा पुं० महामृत्युञ्जय ] १ शिव । २ महायाग-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ ० 'महायज्ञ'। २ बहुत बडा यज्ञ । शिव जी का एक मत्र। कहते हैं, इसके जप मे प्रकालमृत्यु जैसे, अश्वमेव, राजसूय आदि । उ०-इसीलिये अब ये महा- टल जानी और आयु बढती है । याग मिर्फ पुराने महोत्सवो को निर्जीव नकल तथा पुरोहितो महामेघ-सशा पु० [ ] शिव । की आमदनी का एक जरिया मात्र रह गया |-भा० इ० महामेद-मज्ञा पुं० [सं०] ८० 'महामेदा' । रू०, पृ० १५२ । महामेदा-मशा स्त्री॰ [स० ] एक प्रकार का कद जो मौरग देश मे महायात्रा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] मृत्यु । मौत। पाया जाता है। महायान-सज्ञा पुं० [ ] १ एक विद्याधर का नाम । २ बौद्धो विशेष—यह देखने में अदरक के समान होता है। इसकी लता के तीन मुख्य सप्रदायो मे से एक मप्रदाय । चलती है। वैद्यक मे इमे शीतल, रुचिकर, कफ और शुक्र को विशेष-महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण के थोडे ही दिनो बाद बढानवाली, दाह, रक्तपित्त, क्षय और वात को नाश करने- उनके शिष्यों और अनुयायियो में मतभेद होने के कारण यह माली माना है। यह जडी आजकल नहीं मिलती। इसके स्थान सप्रदाय चला था। इसका प्रचार नेपाल, तिब्वत, चीन, जापान पर च्यवनप्राश आदि मे दूसरी ओषधि डालते हैं । आदि उत्तरीय देशो में है जहाँ इसमे तत्र भी बहुत कुछ मिला पर्या-देवमणि । वसुच्छिद्रा। देवेष्ट । सुरमेदा । दिव्या | हुआ है । जिस प्रकार शिव की शक्तियां हैं, उसी प्रकार बुद्ध की त्रिदती। सोमा। कई शनियाँ या देवियां हैं जिनकी उपासना की जाती है। ३ चौडा मार्ग । प्रशस्त पथ । उ०—यह वह महायान या चौडा महामोध-सज्ञा पुं० [सं० ] शिव [को०] । मार्ग था जिसपर सकीर्णता को दूर करके सवको चलने का महामंधा-मक्षा सी० [ म० ] दुर्गा (को०] । निमत्रण दिया गया।-पोद्दार अभि० ग्र० पृ० ६५४ । महामैत्र--सज्ञा पु० [सं० ] एक बुद्ध का नाम । महायाम-सञ्चा पुं० [सं० ] एक प्रकार का साम । महामोदकारी-सक्षा पु० [ स०] एक वगिक वृत्त जिसके प्रत्येक महायाम्य-मज्ञा पुं॰ [ स० ] विगु । चरण छह मगण होते है। इसका दूसरा नाम क्रीडाचक्र महायुग-सञ्ज्ञा पु० [ ] सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि इन चारो युगो का समूह जो देवताग्रो का एक युग माना जाता है। महामोह-मज्ञा पुं० [ म०] १ सामारिक मुखो के भोग की इच्छा महायुत-सञ्ज्ञा पुं० [म. ] एक बडी संख्या जो सो अयुत की जो अविद्या का स्पातर मानी गई है। उ०—जै जै कलयुग होती है। राज की, जं महामोह महराज की । -भारतेंदु ग्र०, भा० १, महायुद्ध-सज्ञा पु० [ स० महा+ युद्ध ] वहुत बडा युद्ध ।, ऐसा युद्ध पृ० ४८३ । २ भारी मोह । तान प्रामक्ति (को०)। जिसमे ससार के अनेक शक्तिशाली देश भाग लें। महामोहा-सश स्त्री० [ ] दुर्गा । विशेप-ईस्वी सन् की वीसवी शताब्दी के विगत काल में दो महाल वि० [स० महा ] महान् । बहुत । अधिक । ज्यादा । महायुद्ध हुए हैं एक सन् १९१४-१८ तक और दूसरा सन् उ०—(य) तोमर अपनो रूप रचि व्यक्ट शैल वराय । कह्यौ १६३६-४५ तक। मकन शियन करटु यामे प्रीति महाय ।-रघुराज (शब्द॰) । महायुध-सज्ञा पुं॰ [सं० ] शिव । (स) याकै मनमुख म दोऊ बैठी रूप बनाय । हमपं तनक महायोगी-सज्ञा पुं० [सं० महयोगिन् ] १ शिव । २. विष्णु । ३, तर्क नही अचरज लगन महाय ।-रघुराज (शब्द०)। मुर्गा (को०] । HO भी है। HO