पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/९२

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महायोगेश्वर ३८५१ महाराष्ट्र स० महारस'-मा स० [ ] १ कांजी | २ खजूर । ३ कसेरू । ४. ऊख । ५ पारा । ६ कातीमार लोहा । ७ ईगुर । ८ सोनामक्खी। ६ रूपामक्खी। १० अभ्रम | ११ जामुन का वृक्ष । महारस-वि• जिसमे बहुत रस हो । अधिक रसवाला [को०) । महारा-सर्व० [हिं० हमार। १० 'हमारा' । उ०-अग अग मदन उमग बल बारे रे । जारे उर कठिन महारे यो महारे हार, प्यारे अब न्यारे हू के चित्त सो बिसारे रे ।-नट०, पृ०५२। महाराज-मज्ञा पु० [ म० ] [स्त्री० महारानी ] १ राजानो मे श्रेष्ठ । बहुत बटा राजा। २ ब्राह्मण, गुरु, धर्माचार्य या और किसी पूज्य के लिये एक सबोवन । ३ एक उपाधि जो भारत मे ब्रिटिश मरकार की ओर से राजामो को दी जाती थी। उंगलियो का नाखून (को०)। महाराजचूत-मज्ञा पुं॰ [ स० ] एक प्रकार का श्राम (को०] । महाराजाधिराज-सज्ञा पु० | स०] १ बहुत बडा राजा। अनेक राजाओ महाराजानो मे श्रेष्ठ । सम्राट् । २ एक प्रकार को पदवी जो ब्रिटिश भारत मे सरकार की ओर से बड़े बड़े राजानो को मिलती थी। महाराजिक-सज्ञा पु० [ ] एक प्रकार के देवता जिनकी संख्या कुछ लोगो के मत से २२६ और कुछ लोगो के मत से HO महायोगेश्वर--मज्ञा पुं॰ [ म० ] पितामह, पुलत्स्य, वमिण्ठ पुलह, अगिरा, ऋतु और कश्यप जो बहुत बडे ऋषि और योगी माने जाते है। महायोगेश्वरी-मज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ दुर्गा । २ नागदमनी । महायोनि-सज्ञा स्त्री॰ [स०] वैद्यक के अनुसार स्त्रियो का एक प्रकार का रोग जिसमें उनकी योनि बहुत बढ जाती है । महायौगिक-मचा पु० [ स० ] २६ मात्रामो के छदो की सजा । महारग-सज्ञा पु० [स. महारन] अभिनय करने का विशाल रंगमच (को०] । महारभ-वि० [ स० महारम्भ ] जिसका प्रारभ करने मे बहुत अधिक यत्न करना पडे । बहुत बडा । उ०—सच है छोटे जी के लोग थोडे ही कामो मे ऐमा घबरा जाते हैं मानो सारे समार का वोझ इन्ही पर है। पर जो बडे लोग है, उनके सब काम महारभ होते हैं, तब भी उनके मुख पर कही से व्याकुलता नही झलकती।- हरिश्चद्र ( शब्द०)। महारभ-सज्ञा पुं० वडा काम [को०] महारक्त-सज्ञा पुं॰ [सं० ] मूगा । महारक्षा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] बौद्धो के अनुसार महाप्रतिमरा, महा- मयूरी, महामहस्रप्रमदिनी, महाशीतवती और महामत्रा- नुसाारणी ये पांच देवियां । महारजत-सचा पुं० [ स०] १ सोना । मुवर्ण । उ०—जातरूप कलघौत पुनि चामीकर तपनीय । रुक्म रुद्र रोदन कनक महारजत रमनीय ।-अनेकार्थ०, पृ० १६ । २ धतूरा । महारजन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ कुसुम का फूल । २ सोना । महारण्य-सज्ञा पुं० [ स० ] घोर जगल । घना जगल [को०) । महारत-सशा स्त्री॰ [ फा०] १ अभ्यास । मश्क । २ योग्यता । कौशल (को०) । ३ ज्ञान । जानकारी (को०)। महारत्न-सज्ञा पुं० [सं०] मोता, हीरा, वैदूर्य, पद्मराग, गोमेद, पुष्पराग ( पुखराज), पन्ना, मूंगा और नीलम इन नौ रत्नो मे से कोई रत्न । महारत्नवर्षा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] तात्रिको को एक देवी का नाम । महारथ-मझा पुं० [सं०] १ बहुत भारी योद्धा जो अकेला दस हजार योद्धाओं मे लड सके । २ बहुत बडा रथ । विशाल रथ (को०) । ३ प्राकाक्षा । मनोरथ (को०)। महारथी-सज्ञा पु० [ स० महारथिन् ] १ दे० 'महारथ' । उ०- पूरण प्रकृति मात धीर बीर है विख्यात रथी महारथी अतिरथी रण साज के ।-रघुराज (शब्द०)। २ किसी विषय का प्रकाड विद्वान् या जानकार व्यक्ति । जैसे, शास्त्रार्थमहारथी । महारथ्या-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] चौडा रास्ता । सडक । महारम-सञ्ज्ञा पु० [अ० महारिम ] १ परिचित या जाना पहचान का व्यक्ति। २ दोस्त । ३ भेद का जानकार । उ०-क्यो मिलेगा घर तुझे चुप शाह का । होयगा क्यो महारम उस दरगाह का ?-दक्खिनी०, पृ० १७७ । HO महाराज्ञी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ दुर्गा । २ महारानी । महाराज्य-सहा पुं० [ ] बहुत वडा राज्य । साम्राज्य । महाराणा-मज्ञा पु० [ स० महा+ हिं० राणा ] मेवाड, चित्तौर और उदयपुर के राजाप्रो की उपाधि । महारान-सज्ञा पुं० [ म० ] आधी रात [को॰] । महारात्रि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ मं०] १ महाप्रलयवाली रात, जब ब्रह्मा का लय हो जाता है और दूसरा महाकल्प होता है। २ तात्रिको के अनुसार ठोक प्राधी रात बीतने पर दो मुहूर्त का समय। विशेष—यह काल बहुत ही पवित्र समझा जाता है। कहते हैं कि इस समय जो पुण्य कृत्य किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है। ३ दुर्गा। ४ आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी की रात्रि जिस दिन निशीथ मे भगवती का पूजन किया जाता है। ५.८० 'शिवरात्रि' । महारावण-मज्ञा पुं० [ सं० ] पुराणानुसार वह रावण जिसके हजार मुख और दो हजार भुजाएं थी। अद्भुत रामायण के अनुसार इसे जानकी जी ने मारा था। महारावल-सञ्ज्ञा पु० [ सं० महा+ हिं० रावल ] जैसेलमेर, डूंगरपुर आदि राज्यो के राजाओ की उपाधि । महाराष्ट्र-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] १. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राज्य । विशेप-यह राज्य अरब सागर के तट पर, गुजरात के दक्षिण, कर्णाट के उत्तर और तलग प्रदेश के पश्चिम में है। कोकण