पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/९३

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महाराष्ट्रो ३८५२ महालोभ FO 50 म० स० प्रदेश इसी का दक्षिणी भाग है। बहुत प्राचीन काल मे इस महार्य '-० [सं० ] १ वहुमूल्य । बडे मोन का। . जिसका प्रदेश का उत्तरी भाग दडक वन कहलाता था। यहाँ सात- मूल्य ठीक से अधिक हो । महंगा । वाहन, चालुक्य, कलचुरी और यादव आदि वणो का राज्य बहुत महाघ-मज्ञा पुं० महासोमलता । दिना तक था। मुसलमानो के राजत्व काल मे यहां बहमनी, महाघता -सज्ञा स्त्री॰ [स०] महार्घ होने का भाव । महंगी। निजामशाही और कुतुबशाही आदि वशो का राज्य था। पोछे महार्य-वि० [ मुप्रसिद्ध वीर महाराज शिवाजी ने इस देश मे अपना साम्राज्य ] ने० 'महाघ'। स्थापित किया था। यह प्रदेश पहले आधुनिक वबई प्रात के महार्णव-सञ्ज्ञा पुं० [ ] १ बहुत बटा समुद्र । महासागर । २ लगभग रहा है और यहां के निवासी भी महाराष्ट्र कहलाते हैं । शिव । ३ पुगणानुसार एक दैत्य जिने भगवान ने कूर्म अवतार मे अपने दाहिने पैर में उत्पन्न किया था । २ इस राज्य के निवामी, विशेपत ब्राह्मण निवामी। ३ बहुत वडा राष्ट्र । जैम, अमेरिकान महाराष्ट । महार्थ '-सज्ञा पुं० [ स० ] एक दानव का नाम । महार्थ:-वि० [ स० १ बडे या गभीर अर्थवाला । महत्वपूर्ण । २ महाराष्ट्री-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] १ एक प्रकार की प्राकृत भापा जो अत्यधिक मपत्तिवाला । प्रचुर धनयुक्त (को०] | प्राचीन काल मे महाराष्ट्र देश मे वोली जाती थी। उ०-वही अत को महाराष्ट्री प्राकृत भी कहलाई।-प्रेमघन०, भा० २, महाक-मज्ञा पुं० [ स०] १ जगली अदरक । २ मोठ । पृ० ३७५ । २ महाराष्ट्र की प्राधुनिक देशभापा । ३ जलपीपल। महावुद -सञ्ज्ञा पुं० । स० ] सौ करोड या दम अबुद की मम्या । महाहे --सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] सफेद चदन । महारास-सज्ञा पुं॰ [ स० ] श्रीकृष्ण की वह लीला जो शरत्पूर्णिमा के दिन गोपियो के साथ रास नृत्य के रूप में हुई थी। महाई-वि० ६० 'महाप' । उ०--उसे राज्य मे भा महार्ह वन देता प्राकर कौन अहो ।-साकेत, पृ० ३७१ । महारुद्र-सज्ञा पुं० [ ] शिव । महाल-मशा पुं० [अ० महल का बहु व०] १ वह स्थान जहाँ बहुत महारूप- सज्ञा पु० [ स०] १ शिव । २ मर्ज रम । राल (को०)। मे बडे मकान हो। मुहल्ला । टोला । पुरा । पाडा । उ०-- महारूपक-सञ्ज्ञा पुं० [ ] नाटक । ऐह जितेक महाल ते मब भानुजा मधि गग के ।-मुजान०, महारुरु-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] मृगो की एक जाति । पृ० ८६ । २ बदोबस्त के काम के लिये किया हुआ जमीन का महारुख-सज्ञा पु० [ म० महावृक्ष ] १ थूहर । सेंहुड । स्तुही । २. एक विभाग, जिसमे कई गांव होते है। ३ भाग। पट्टी। एक जगली वृक्ष जो बहुत सुदर होता है। हिस्मा । उ-कधी रमाल के ताल फले कुच दोऊ महाल विशेष—इस वृक्ष की लकही से पारायशी सामान बनता है । जगीर प्रनग के ।—(शब्द०) इसकी छाल मे सुगधि होती है। मदराम और मध्यप्रदेश में यह महालक्ष्मी-सशा स्त्री० [सं०] १ लक्ष्मी देवी को एक मूर्ति का अधिकता से पाया जाता है। नाम । २. पुराणानुसार नारायण की एक शक्ति का नाम । महारेता-मज्ञा पु० [ स० महारतम् ] शिव [को० । ३ एक वणिक वृत्त जिमके प्रत्येक चरण मे तीन रगरण होते महारोग-सञ्ज्ञा पुं० [ २० ] बहुत बडा रोग । जैसे, पागलपन, कोढ, हैं । जैसे—(क) रात्रि द्यौमी रहै कामिनी। पीव की जो तपेदिक, दमा, भगदर आदि | मनोगामिनी । भापती बोन वोले ममी । जानेए सो महालक्ष्मी (ख) राधिका वल्लभ गाइ ले चित्रनी इद्र से पाइ ले । विशेप-उन्माद, राजयक्ष्मा, श्वासरोग, त्वक्दोष अर्थात् कुष्ठ मधुमेह, अश्मरी, उदररोग ( मभवत मग्रहणी ) भौर भगदर, महालय-सञ्ज्ञा पुं०स० ) १ कुमार का वृष्णपक्ष जिसमे पितरो के लिये तर्पण और श्राद्ध आदि किया जाता है। पितृपक्ष । २. आयुर्वेद मे उक्त भाठ रोग महारोग कहे गए हैं। कहते हैं, इस प्रकार के रोग पूर्वजन्म के पापो के परिणामस्वरूप होते तीर्थ । ३ पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । ४ नारायण, हैं। वध लोग ऐसे रोगो की चिकित्सा करने से पहले रोगी जिनमे महदादि तत्व का लय होता है। ५ सपूर्ण विश्व का से प्रायश्चित्त प्रादि कराते हैं। महालया-सज्ञा स्त्री॰ [ सं०] अश्विन कृष्ण प्रमावस्या जिम दिन महारोगी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महारोगिन् ] जिसे कोई महारोग हो । पितृविसर्जन होता है । पितृपक्ष को प्रातम तिथि । महारौद्र-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] शिव । २ एक प्रकार का छंद । २२ महालिंग-सशा पुं० [ स० महालिङ्ग ] महादेव । मात्रायो के छदो की मज्ञा । महालील-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महा + लीला] महान् लीला करनेवाले, महारोद्रो 1-सज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा । श्रीकृष्ण । उ०-महालील मायी महा, महापुरुष मतिमान ।- महारौरव-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ पुराणनुसार एक नरक का नाम । घनानद, पृ० २६८ । विशप-कहते हैं, जो लोग देवताओ का धन चुराते या गुरु महालोक-सज्ञा पुं० [ स० महा + लोक ] दे० 'महर्लोक' । की पत्नी के साथ गमन करते हैं, वे इस नरक मे भेजे जाते हैं। महालोध्र-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] पठानी लोध । २ एक प्रकार का माम। महालोभ-सञ्चा पुं० [सं०] कौया । लय । प्रलय ।