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शब्दों का यह लघु संग्रहकोश था । विषयवर्गानुसार वाक्यो मे प्रयोग- समानार्थक अग्रेजी शब्दों के अलावा यूरप की अनेक नव्यभाषाओं के निदर्शन के रूप में भाषा के प्रारंभिक सीखनेवालो की उपयोगिता के भी पय०ि दिए गए थे ।। १५४७ ई० के बाद अग्रेज और नध्ययूरोपीय निमित्त इसका निर्माण किया गया था। ‘डिक्शनरी' शब्द का भी भाषा के मी कोश बनने लगे। कदाचित सर्वप्रथम प्रयोग इसी शब्दसूची में हुआ था । १४वीं पाती के प्रतिलिपीकरण के माध्यम से प्रसारित इन सूचियो में शब्दो और उत्तरार्ध में भी ऐसे कुछ कोश बने । वाक्याशो को उपयोगिता की दृष्टि से अकारादि क्रमानुसार व्यवस्थित कालांतर में अलग पन्नों पर उक्त शब्दों-अयों की प्रतिलिपियाँ की करना अधिक लाभकर जान पडा । यही से इनमे अकारादि क्रमानुसारी जाने लगी । उन्हें एकत्र भी किया जाने लगा। ‘लातिन' भाषा के विलष्ट संग्नपद्धति घी आरंभ होता है । शव्द या वाक्यांश के श्रारभिक शब्दो का अर्थबोध कराने के लिये शब्दार्थ संग्रह का यह कार्य अत्यत । प्रथमाक्षर को क्रमवद्ध सूची मे लिपिक संगृहीत कर देता था । उसमे उपयोगी हो गया है । तत्तत् सूचियों में समाविष्ट शब्दों को आगे चलकर । द्वितीयोझर अथवा अनुपूर्वी नही देखी जाती थी। अत इस पद्धति को ग्लासेरियम कहने लगे, जिसका अर्थ है शब्दार्थसूची । १ ६वीं १७वी-- वर्णमालानुसारी प्रथम,1क्षर क्रम वह सब ते हैं। यह व्यवस्था सहस्रों में इन्हीं ‘ग्लासेरियम' के आधार पर वर्णक्रमानुसारी शब्दसारणियाँ शब्दीवाली सूची में अनुभृत कठिनाई को दूर कर, सुविधाजनक पद्धति । टेबुल्स मल्फाबेटिकल ) और क्लिष्ट-ब्दार्थ-बोध क सग्रहो को को ढूंढ निकालने के सायास व्यवस्था द्वारा प्रचलित हुई। फलत निर्माण हुआ । धीरे-धीरे उसमे विकास होता गया और प्रथमाक्षर के साथ साथ द्वितीय, तृतीय अक्षरों पर भी ध्यान दिया जाने लगा। फिर अकाराविक्रम---१५वी शती से भी दो तीन सौ वर्ष पूर्व योरप धीर धीरे वर्णानुपूर्वी के अनुसार आधुनिक युग में प्रचलित पद्धति से की विभिन्न भाषाओं में अनेक प्रकार के विभिन्न वर्गों के शब्दों की शब्दार्थसंग्रह होने लगा। सूचियाँ सगृहीत होने लगी थीं। इन शब्दसूचियों में शब्दसकलन वर्गीकृत होता था। जिस प्रकार अग्रेजी कोश का उद्भव सस्कृत के अमरकोश आदि ग्रंथों में अपनी दृष्टि से पर्यायवाची शब्दो का वर्गश्रित सग्रह मिलता है उसी प्रकार इन शब्दसूचियों में । 'लातिन' की इन शब्दसूचियो ने आधुनिक काश-रचना-पद्धति को शरीर के अंगों पारिवारिक संवधो, मनुष्य के पदो और श्रेणियो, घरेलु जिस प्रकार विकास किया, अग्रेज कोशो के विकास क्रम में एव-पालत जानवरो, जगली पशुओं, मछलियो, वृक्षो, व्यवसायो, वस्त्रा उसे देखा जा सकता है। अरिभ में इन शब्दार्थ सूचियो का प्रधान भूषणों, अस्त्रास्त्रों, चर्च की सामग्रियो, रोग आदि के नामो की अर्थ विधान था क्लिष्ट ‘लातिन' शब्दो का सरल ‘लातिन' भाषा मे सहित सूचियाँ सगृहीत होती थी। अर्थ सूचित करना । धीरे धीरे सुविधा के लिये रोमन भूमि से दूरस्थ पाठक अपनी भाषा में भी उन शब्दो का अर्थ लिख देते थे। 'पलाँसरी', इन्हें 'वोकैव्यलेरियम्' कहा जाता था। अंग्रेजी का 'वोकैव्युलरी' र 'वो केव्युलरी' के अग्रेजी भाषी विद्वानो की प्रवृत्ति में भी यह शब्द भी इसी से निर्गत है। कागज के अतिरिक्त चमडो पर भी इनका नई भावना जगी। इस नवचेतना के परिणामस्वरूप लातिन' शब्दो संग्रह होता था । मूलत भिन्न दृष्टि से सर्व लित होने पर भी ग्लॉस' का अग्रेजी में अर्थनिर्देश करने की प्रवृत्ति बढने लगी । इस क्रम में और 'धोकव्युलरी' दोनो का व्यावहारिक उपयोग भाषाज्ञान में लैटिन अगेजी' कोश का प्रारंभिक रूप सामने आया । सहायता देनेवाले उपकरण के रूप में होने लगा था। अत इन । दोनों प्रकार की शब्दार्थं सूचियो का प्राय एकत्र संयोजन कर विदान धर्मपीठाधीश 'एफिक' ने 'लैटिन' व्याकरण का एक ग्रंथ बनाया दसवीं शताब्दी में ही 'आक्सफोड के निकटवर्ती स्थान के एक दिया जाने लगा। था। और उसी के साथ वर्गीकृत 'लातिन' शब्दो का एक 'लैटिन-इग्लिश', स्वज्ञान से अथवा दूसरों की पलॉसरी' और 'वोकैब्यूलरी' से लघुकोश भी जोड़ दिया था। संभवत उक्त ढग के कोशो में यह नए शब्दों को लेकर शब्दसूचियों के स्वामी उनमें नए शब्द जोडते प्रथम था । १०६६ ई० में लेकर १४०० ई० के बीच की काशात्मक रहते थे । इनकी प्रतिलिपि करके अन्य व्यक्ति भी समय समय पर शब्दसूचियो को एकत्र करते हुए राइट व्यूलर ने ऐसी दो शब्दइनका संग्रह प्राप्त कर सकता था। प्रतिलिपि परपरी द्वारा इनका सूचियाँ उपस्थित की हैं। इनमे भी एक १२ वी ताब्दी की है। प्रसार और विस्तार होता चल रहा था। वह पूर्ववर्ती शब्दसूचियो की प्रतिलिपि मात्र है। दूसरे शब्दसूची में 'लातिन तथा अन्य भाषाओं के शब्द है। सर टामस ईलियट (१५३८ ई०) का निर्मित शब्दकोश डिक्शने विष महत्व भी रखता है और मननपथ का भी प्रदर्शक इगलैड मे सास्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना के उद्बुद्ध होने पर है । जे० इल्प ० विद।ल्स् द्वारा अग्रेज के प्रारमिक लातिन पाठको अंग्रेजी राजभाषा हुई। शिक्षा-सस्था में फांसीसी के स्थान पर अग्रेजी की सुविधा के लिये रचित 'अग्रेजी-नातिन' का लघुशव्दम्।श भी का पठन पाठन बढ़ा। अग्रेजी में लेखकों की संख्या भी अधिक होने विपयानुसारी वर्गों में हो ग्रथित है। परतु 'अगेजी में लातिन का कोपा लग । फलत अग्रेजी के प्राब्दकोश की आवश्यकता भी बढ़ गई। होने के कारण विशेष महत्व रखता है। । । १५ची शर्त में 'राइट व्यूलर' ने छह महत्वपूर्ण पुरानी शब्दार्थ सूचियो को मुद्रित किया। अधिकत विषयगत वर्गों के आधार पर वे बनाई इससे भी अधिक महत्व का एक बहुभाषी लातिन शव्दकोश-- गई थी। केवल एक शव्दसूची ऐसी थी जिसमे अकारादिक्रम से १३३६ ई• में मार एस्टीम ने बनाया था जिसमे लातिन शब्दो के २५००० शब्दों का सकलन किया गया था।