पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१०६

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उपायी ६२० पासी उपायी–वि० [सं० उपायिन्] १ उपाय करनेवाला । युक्ति रचने- उपव्याव--सज्ञा पुं० [सं०] अरदित स्थान । वह स्थान जहाँ र वाला। ३ पास जानेवाला (को०)। ३ सुरत के लिये पास | का कोई उपाय या साधन न हो [को०] । जानेवाला (को॰) । उपाशसनीय---वि० [सं०] १ प्रतीद के योग्य । २ अपेक्षा करने के उपायें --- क्रि० वि० [सं० उपायेन]उपाय से । उ०—सो प्रम जाइ योग्य [को॰) । न कोटि उपायें 1--मानस, १ । ११ । उपाय—संज्ञा पुं० [सं०] १ आश्रियं । रिणे । २ विधामायान । उपारभ-- सज्ञा पुं० [स० उपारम्भ] अरिम । शुरुअात [६] । वेतू जगह जहाँ अाराम किया जाय । ३ ग्राहक जने । । उपार--सज्ञा पुं० [सं०] १ निकटता । समीपता । २ भून्न । ३ तकिया । मसनद (को०] । अपराधे । ४ पाप [को०] । उपाश्रित--वि० [म०] १ आश्रित । २ प्रघाति । अद्युत । ३ उपारत-वि० [स०] १ प्रसन्न । खुश । २ लौटाया हुआ । ३ लगा परोक्षत अाश्रित । ४ तकिया लगाया हुआ [ये] । हुग्रा । तल्लीन । ४ बार बार होनेवाला । ५ त्यत । उपास --सज्ञा पुं॰ [स० उपवास] [वि॰ उपाप्ता] खाना पोना अयुक्त (को॰) । छूटना । लघन । फाका । उ०--(क) उठ सिंहासन गंजे सिंह उपारना--क्रि० स० [सं० उत्पादन, प्रा० उप्पाडण] ३० ‘उपटना' । तरै नहि घास । जव लग मिरम न पाव भोजन करे उपसि । उ०—(क) खाएसि फल अरु विटप उपारे ।---मानस, ५।१८। (शब्द॰) । (ख) बहुत कुसुम मधुन पिप्रामल जाएत तुम (ख) सिअार का जो सीग जनमए गिरि उपारवे चाह -- उपासे ।-विद्यापति, पृ० ४२६ । विद्यापति, पृ० ३५० ।। उपासक-वि० [सं०] [स्त्री॰ उपासिका] पूजा करावा । अाराधना उपार्जक-वि० [स०] उपार्जन करनेवाला। कमानेवाला । पैदा करनेवाला । भक्त । सेवक। | करनेवाला (को०)। उपासक-मज्ञा पु० १ अनुचर । दास । सेवक । ३ शूद्र । ३ भि। उपार्जन---सज्ञा पुं॰ [सं०][वि० उपजनीय, उपाजित] कमाना । पैदा भियq (बौद्ध)। करना । लाभ करना । प्राप्त करना (उ०--प्राप कुछ उपार्जन उपासकदशा-सज्ञा स्त्री० [सं०] जैन धर्मग । के एक आग की किया ही नही, जो था वह नाश हो गया ।-भारतेंदु नाम [को०] । ग्र ०, भा० १, पृ० २६५ ।। क्रि० प्र०—करना ।—होना । उपासन-संज्ञा प ० [सं०] [वि० उपाती उपासित, उपासनीय, उपार्जना-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'उपार्जन' [को०] । उपास्य] १ पास पैठना । २ सैया में उपस्थित रहना । सेवा उपार्जनोय--वि० [सं०] १ संग्रह करने योग्य । एकत्र करने लायक । करना । पूजा करना । अाराधना करना। ३ अभ्यास के लिये २ प्राप्त करने योग्य ।। वाण चलाना। तीरदाजी। आरभ्यास । ४ गार्हपत्या। अग्नि । उपाजित--वि० [सं०] कामाया हुअा। प्राप्त किया है । सगहीत । उपासना-सज्ञा १० [सं०] १. पास बैठने की क्रिया । २ मेवा । उपार्य-वि० [स०] फम कीमत का । अल्प मूल्य का [वै] । अाराधना । पूजा । टहल । परिचर्या ।। उपालुभ-संज्ञा पुं० [सं० उपाल्भ] [वि० उपालब्ध] ओलाहना । उपासना --क्रि० सं० [सं०] उपासना करना । पूजा करनी। शिकायत । निदा । उ०—यह उपलभ अापको शोभा नहीं देता, | सेवा करना। भजन । उ०-गोड देश पाखंड मेटि कियो करनेवाला सब दूसरा है।--भारतेंदु ग्र ० 'भा० १. पृ० १८७ । भजन परायन । करुन।सिंधु कृतज्ञ भए अगतिन गति दायन । उपालभन-संज्ञा पुं० [सं० उपालम्भन] [वि० उपालभनीय, दशधा रस अाक्रात महत जन चरण उपासे । नाम लेते उपालभित, उपालम्प, उपालब्ध] १ लाहना देना।२ निंदा निष्प दुरित तिहि नर के नासे 1-प्रिय। (शब्द॰) । करना। रक्षा के लिये जाना । बचाने के लिये जाना (को०)। उपासना---० ग्र० स० उपवास, उपाप्त १ उपवास करनः । उपालि---संज्ञा पुं० [सं०] गौतम बुद्ध के एक प्रधान शिष्य का नाम, भूखा रहना । अन्न छोडना । २ निराहार व्रत रहना । जो पहले जाति का नाई था किो०) उपासनोय–वि० [सं०] सेवा करने योग्य । अाराधनीय। पूजनीय। उपाव -सज्ञा पुं० [सं० उपाय] ६० ‘उपाय' । उ०—करत उपाय। उपासा'--वि० [हिं० उपास + प्री (प्रत्य॰)] उपवाम या व्रत करने पूछत काहू, गुनत न खाटौ खारी।—सूर० १।१५२ वाला । भूखा । उपावणहार-वि०स० उत्पादन, प्रा० उप्पावण+हि० हार(प्रत्य॰)] उपास--सज्ञा जी० [सं०] १ सेवा । टहल । २ भक्ति । पूजा । उत्पन्न करनेवाला । उ०—(क) अरे मेरा अमर पाबणहार उपासना । ३ धार्मिक चिंतन [को॰] । र खालिके ग्रासिक तेरा ।---सतवाणी॰, भा॰ २, पृ॰ ६५ । उपासित--वि० [सं०] १ जिसकी उपासना की गई हो । सेवित । (ख) दादू सब जग मरि मरि जात है अभर उपवणहार । पूजित १२ पूजा करनेवाला । उपासक [को० । * दादू०, पृ० ३६५। । उपासिता--वि० [सं० उपासितृ] उपासक । अरराधक । भजन पूजन उपावर्तन-संज्ञा पुं० [सं०] १ लौटना। २ चारों और चक्कर | करनेवाला (कौ०।। | - काटना । ३ पास अना। ४ रुक जाना । त्याग देना को०]। उपासी ---वि० [स० उपासिंन] [वि० स्त्री० उपासिनी] उपासना करने उपावृत्त—वि० [स०] १ लौटा हुआ । अाया हुआ । २. विरत । ३. वाला। सेवक । भक्त 1 उ०-प्रानैदघन व्रज महल भइन व योग्य । उचित । ४. चक्कर खाया हुआ । संकेतउपासी ।--घनानंद, पृ० ४८५ ।