पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१०७

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उपस्तिमनै ६२१ उपास्तमन—संज्ञा पुं० [सं० उप+अस्तेमन] मूर्यास्त किये। उपेय---वि० [अ०] उपायसाध्य । जो उपाय से सिद्ध हो । जिसके लिये उपास्तमय---क्रि० वि० [सं०] सूर्यास्त के आसपास । सूर्य के अस्त । उपाय करना उचित हो । | होने से कुछ पहले [को॰] । उपेना --वि०[डी][स्त्री॰ उर्पनी] खुला हुआ। नगा । अाच्छादनउपास्ति-मज्ञा • [सं०] १ वैवा। २ देवपूजा । ३ अराधना । । रहित । उ०—-जनु तो लगि तरवारि त्रिविक्रम, धरि करि कोप उपासना (चै०]। उपैनी ।—सूर०, ६।११ । उपास्त्र-सज्ञा १० [सं०] छोटा हथियार । छोटा या लघु अस्त्र [को॰] । उपना—क्रि० अ० [हिं०] उडना। लुप्त हो जाना। ३०-देखत दुरै उपास्थित-- वि० [सं०] १ चढ़ा हुआ। । २. खडा हुन । ३ सतोप कपूर ज्यौं उपे जाई जिन लाल । छिन छिन जाति परी खरी | जनक [को०] ।। छीन छवीली वाल [-विहारी र०, दो० ८६ । उपास्य–वि० [३०] पूजा के योग्य ! अाराध्य ! जिसकी सेवापूजा उपोढ-- वि० [सं० उपोड] १ लाया हुआ । २ घनीभूत । दृढ । ३ | की जाती हो । एकत्र किया हुआ । एकत्रित । ४ व्यूह में रचित । ५ प्रारंभ | यौ9-—उपास्यदेव ।। किया हुमा [को०] । उपाहार-संज्ञा पुं० [स०] जनपान । नाश्ता । उपोढ़-सज्ञा पु० व्यूह को०] । उपाहित–वि० [स०] १ परस्पर की सुमत से किया हुआ । ३ उपोत--वि० [सं०] १ ढका हुप्रा । आच्छादित (कवच से) ३. जिसको आप किया गया हो। आरोपित ३ पहला या धारण | आवरण में रखा हुआ (को॰] । किया इग्री 1 ४ रखा हुआ कि०] । उपोती--सज्ञा स्त्री० [स०] पूतिका नाम का पौधा [को०] । उपेंद्र --सुज्ञा १० [सं० उपेन्द्र] १ इंद्र के छोटे भाई वामन या विप्लु उपोदक'----वि० [सं०] पानी के पासवाला । जल का समीपवर्ती । | भगवान् । कृष्ण ।। जल के पास (को॰] । उपेंद्रवज्रा -मज्ञा स्त्री॰ [स० उपेन्द्रवज्रा] ग्यारह वर्षों की एक वृत्ति उपोदक---सज्ञा पु० जल की निकटता । पानी का पडोस को०] । जिसमें क्रमश जगण, तगण, जगण और अत में दो गुरु होते उपोदका–संज्ञा स्त्री० [स०] जल के समीप होनेवाला पुतिको नाम का हैं। जैसे--प्रकप धुम्राक्षहि जानि जूझ्यो । महोदर रावण मत्र एक पौधा [को॰) । बुझ्यो । सदा हमारे तुम मत्रवादी। रहे कहा ह्व अति ही उपोदकी--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'उपोदका' [को॰] । विषादी–केशव (शब्द॰) । उपोदिका---सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'उपोदक' (को०] । उपेक्षक--वि० [सं०] १ उपेक्षा करनेवाला। विरक्त होनेवाला । २. उपोदोका–सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे॰ 'उपोदका' [को॰] । घृणा करनेवाला ।। | उपोद्ग्रह--संज्ञा पु० [सं०] अतृदृष्टि । ज्ञान [को॰] । उपेक्षण-सज्ञा पुं० [सं०][वि० उपेक्षणीय, उपेक्षित, उपेक्ष्य] १ त्याग उपोद्घात--सज्ञा पुं० [सं०] १. किसी पुस्तक के ग्राम का वक्तव्य । करना । छोडना । विरक्त होना । उदासीन होना। दूर रहना। प्रस्तावना | भूमिका । २. नव्य न्याय में छह सगतियों में से किनारा खींचना 1 २ घृणा करना। ३ आसन नीति का एक एक । सामान्य कयन से भिन्न भिदिप्ट या विशेष वस्तु के भेद । अवज्ञा प्रदर्शित करते हुए अाक्रमण न करना । विषय में कैयन् । उपेक्षणोय–वि० [स०] १. त्यागने यौग्य । दूर करने योग्य । २ घृण पोवलन--संज्ञा पुं० [सं०] पुष्टि । समर्यन | ताद [को॰] । | करने योग्य है । उपोपण--सज्ञा पुं० [सं०][वि॰ उपोषणीय,उपोषित, उपोप्य] उपउपेक्षा—संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ उदासीनता । लापरवाही । विरक्ति । वास । निराहार व्रत ।। चित्त का हटना । २ घृणा । तिरस्कार । उपोपित'- वि० [सं०] १ उपवास किया हुआ । जिसने उपवास किया उपेक्षायान-सज्ञा पुं० [सं०] शत्रु से छुट्टी पाकर उसके सहायक मित्रो है । २ भूखा (को० ।। | पर चढ़ाई (कामद॰) । उपेक्षासन-संज्ञा पुं० [सं०] शत्रु की उपेक्षा करते हुए चुपचाप बैठे उपोपित-सज्ञा १० उपवास । व्रत 1 [को०] । उपोसथ—संज्ञा स० [सं० उपवसय, प्रा० उमौसय] निराहार व्रत । रहना, इसपर चढ़ाई अादि न करना (कामदं०)। उपवास । उपेक्षित--वि० [स०] जिसकी उपेक्षा की गई हो। जिसकी परवा न की गई हो । तिरस्कृत ! विशेप---ग्रह शब्द जैन और बौद् नोगों का है। उपेक्ष्य–वि० [सं०] उपेक्षा के योग्य । दूर करने या त्यागने योग्य । उ उप्पम--सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] मदरास प्रात के तिनाव नी मीर कोयंबटूर घृणा के योग्य । जिलों में उत्पन्न होनेवाली एक प्रकार की कपास । उपेना--क्रि० स० [सं० उपेक्षण] उपेक्षा करना । अनादर उप्परf—-वि० [सं० उपर अथवा उपरि] दे॰ 'ऊपर'। उ०—-दक्षिण | करना । तिरस्कार करना । उरु उप्परय प्रयम वामहि पम् अनय -सुदर० ग्रं०, मा० १ उपे—वि० [स०] युक्त । सहित । ३०—राधा पद अकिन विराजि पृ० ४२। । रही मही महा, श्रीपति निवास हु ते दीपति उपेत है।-- उफ-मच्य० [अ० उफ] अाह । ओह । अफसोस । घनानंद, पृ० २७ । यो०-उफ मोह = विस्मयसूचक शब्द ।