पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१०८

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उफडनी ६२२ वैहेना क्रि० प्र०-२ करना । सानै ।-सूर०, १०८०१ । (ख) उबटन उवट अप विशेप--यह शब्द प्राय शोक और पीडा के अवसरों पर अनायास । अन्हवाइ । पठए, पट भूखननि वनाई।–नद० ग्र०, पृ० २५६।। | मुंह से निकलता है । उवटना--क्रि० अ० [सं० उद्वर्तन, प्रा० उब्यट्टण] वटना लगाना । उफडना –क्रि० अ० [हिं० उफनना] उबलना । उफान खाना । उवटन मलना । उ०—(क) जननि उटि अन्हवा इ के अतिक्रम जोश वा । उ०—काचा उछरई उफड़ई काया हाँडी महि । सो लीनो गोद। पौढाएँ पट पालने शिशु निरखि जननि मन दादू पर कामिलि रहहि, जीव ब्रह्म होइ नाहि --दादू |मोद 1-सूर (शब्द॰) । (ख) माइन्ह सहित उवटि (शब्द॰) । अन्हवाएँ । छरस असन प्रति हेतु जेंवाए ।—मानस, १।३३६। उफताद-सज्ञा स्त्री॰ [फा० उफताद] १ अापत्ति । मुसीवत । २ उवनायु-क्रि० अ० [स० उदय> प्रा० उअन्न, उवय]१ दे० 'उगना' । अरभ । शुरुअात् । ३ घटना । सयोग [को०] । उवना —क्रि० अ० [हिं० ऊबना दे० 'कवना' । । उफतदा--वि० [फा० उफ्तीदह] १ परत पडा हुअा (खेत) । उबरना--क्रि ० अ० [सं० उ4 Vवृ, प्रा० उब्वर] १ उद्धार २ गिरा हुआ। (को०)। ३ दीन । दुखी । दलित (को॰) । पाना । निस्तार पाना। मुक्त होना । उ०--(क) अपुिहि उफनना--क्रि० प्र० [सं० उत् + फेन या उत् +/फण = गमन, मूल फूल फुलवारी, पुहि चूनि चूनि खाई । कहैं कवीर तेई या स० उत् + हि० फालगति चलना] १ उबलना । जन उवरे जेहि गुरु लियो जगाई |--कबीर (शब्द॰) । उठना । अच या गरमी से फेन के साथ होकर ऊपर उठना । (ख) भवसागर जो उबरन चाहे साई नाम जिन छोडे ।उ०—(क) उफनत छीर जननि करि व्याकुल, इहि विधि (शब्द॰) । २ छूटना। वचना । उ०—धरी न काहू” धीर सबके भूजा छायो ।—सूर०, १०।६६०] (ख) उफनत दूध न मन मनसिज हरे । जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महु । धरयो उतारि । सीझी थूलीं चूल्हे दारि —सूर (शब्द०)। —मानस १८५। ३ शेप रहना। बाकी बचना । उ०—(क) २ उमडना । उ॰—अनुराग के रगन रूप वरगन अगन रूप फोरे सवे वासने घर के दधि माखन खायो जो उपरयो सो मनो उफनीं । (शब्द०)। हरियो रिस करिके ।--सूर (शब्द०) । (ख) देव दनुज उफनाना-क्रि० अ० [स० उत् + फेन वा उत् +फण= गतौ] १ मुनि नाग मनुज नहिं जाँचत कोउ उवरयो [--तुलसी अवलना । किसी तरह की अच या गरमी पाकर फैन के अ ०, पृ० ५०५ ।। सहित ऊपर उठना । उ०—अच पय उफनात सीचत सलिल उवरा-वि० [हिं० उबरन][वि॰ स्त्री० उबरी]१ वचा हा । फालतू ।। ज्यो सकुचाइ । तुलसी ग्र०, पृ० ४२७ । २ पानी अादि यौ॰--उबरा-पवरान बचा हुआ । का ऊपर उठना । हिलोर मारना। उमड़ना ?--भर २ जिसका उद्धार हुआ हो। भरी उफनात खरी सु उपाव की नाव तरेर ति तोरति । उवरा--संज्ञा पुं० बोने से बचा हुप्रा बीज जो हावाहो और मजदूरों -घनाद, पृ० १५ । को वांट दिया जाता है । विवरः । मुठिया । उफान--संज्ञा पुं० [सं० उत् + फैन या उत् +फण् ] किसी वस्तु का उवरी--- संज्ञा स्त्री॰ [स० अपवारिका, प्रा० उव्यरि] दे॰ 'अोवरी'। अचि या गरमी पाकर फेन के सहित ऊपर उठना । उबाल । उवरी-सुन्नी सी० [प्रा० उदबूर = विषमोन्नत प्रदेश या हि० उबरना] उवकना---क्रि० अ० [हिं० मोकना या उबाक] के करना । एक प्रकार की काश्तकारी । उबका-- सज्ञा पुं० [स०पदबाहेक, पा उव्वाहक डोरी का बहु फदा । उबरी--वि० स्त्री० [हिं० उबरना] १ मुक्त । जिसका उद्धार हुअा हो । उब' | जिसमे लोटे या गगरे का गला फंसाकर कुए से पानी निकालते ३ बची हुई । शेष । हैं । अरिवन । उबलना-किं० [ स० उद् = ऊपर+वलन = जना अथवा हि० उबकाई -सज्ञा स्त्री० [हिं० ओकाई] उवात । मतली । कै।। उ (= सं० उत्) + बल( = स०yज्वल्> हि० जल, वल)] १ क्रि० प्र०—ाना 1 लगना । ऊपर की ओर जाना। अच या गरमी पाकर पानी, दूध आदि उबछना-क्रि० स० [स० उत्प्रोक्षण, प्रा० उप्पोवखन, उप्पोच्छन] तरल पदाय का फेन के साथ ऊपर उठना । उफनाना । जैसे, १ पछाडना । पछाड़कर धोना । २ सिंचाई के लिये पानी दूध जब उबलने लगे तव आग पर से उतार लो। २ उमडना । खीचना । वेग से निकलना । जैसे,—सोते से पानी उबल रहा है। उबट-सज्ञा पुं० [स० उद्+वर्म> उब्वट = चलना फिरना] अटपट उसने--सज्ञा पुं॰ [स० उद्वसन- ऊपर की छाल, खर या नारियल | माग | बुरा रास्ता । विकट मार्ग । की कटी हुई जटा जिससे रगड़कर वरतन मांजते हैं । छवट-वि० ऊबड़ खावड। ऊँचा नीचा। अटपट ।-(क) गुझना। जूना ।। बसनाक्रि० स० [सं० उद्वसन] १ बरतन मांजना ! ३० जोरि उवटे 'मुई परी भलाई की मरि पथ चनै नहि जाई । 'उपासना' । २ उजड़ना । अपना निवासस्थान छोड कर (ब) सायर उबट सिखिर की पाटी। चढ़ी पानि पाहुन अन्यत्र जा बसना । हिय काटी ।—जायसी (शब्द॰) । उबहन-सा स्त्री० [सं० उद्वहन, प्रा० उदग्रहण,] कुएँ से गगरी यो उबटन--सृज्ञा पुं० [सं० उत्तन, प्रा० उद्धट्टन] १ शरीर पर मलने के लोटा खीचने की रस्सी । पानी निकालने की हो । लिये सरसो, तित्र श्रीर चिरौंजी आदि का लेप । बटना । उवहना -क्रि० स० [स० उद्वहन, पा० उठबना+ ऊपर उठाना। मुम्यग । ६०-तव महरि वाहि गहि अन । लै तेल उर्बदनौ १ हथियार खींचना । (हथियार) म्यान से निकालना । शस्त्र