पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१११

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उभरौहा ६२५ उमड़े उभराहा–वि० [हिं० उभार+ौहा (प्रत्य॰)] उभार पर प्राया जैसे- आज उनका चित्त वडे उमग में है। उ०—-वसे जाय हुआ । उभरा हुआ। उ०—-भावुक उमरौंहा भयो, कछुक अनद उमग सो गैया सुखद चरावें ।—सूर (शब्द०)। परयो भाइ । सीप हरा के मिसि हियौ निसि दिन हरत २ उभाड । अधिकता । पूर्णता । उ०—ानंद उमग जाइ ।-विहारी र०, दो० २५२ ।। मन, जोबन उमग तन, रूप के उमग उमगत अग अग है-- उभाँखरा--वि० [सं० उद्भावन, गुज० ऊस+हि० खरा= खडा तुलसी (शब्द॰) । खड़े रहने वाले । कहीं न टिकनेवाले । भ्रमणशील। जिनका उमंगनी -क्रि० प्र० [हिं० उमग+ना (प्रत्य॰)] दे० 'उमगना' । एक जगह निवास न हो । उ०---पहिरण-स्रोढण कवला, साठे उमड--सज्ञा पु० [सं० उद् = ऊपर+मण्ड= माँड़ (या मण्डन) या पुरसे नीर । अापण लोक उभखरा गाडर छाली खीर । वा फेन] १. उठान । १ चित्त का जेवाल । वेग । जोश ।। ठोला० दू०, ६६२ । | उमडना-क्रि० अ० [हिं० उमड+नो (प्रत्य॰)] दे० 'उमडना' । उभाड़--संज्ञा पुं॰ [सु० उभेद या उद्भरण हि० उभरना] १ उठान । ऊँचापन । ऊँचाई । २ ग्रोज । वृद्धि ।। उ०–जलज अचल डेरा दए सिंह सुजान उमहि । नि* ह्व उभाडेदार--वि० [हिं० उभाड +फा० दार (प्रत्य॰)] उठा हुआ। करम नृपति पार्छ चल्यो घुमडि -सुजान, पृ० ३९ । उमरा हुआ 1 सतह से ऊँचा । फूला हुपा । जैसे --उसे बरतन उम - सज्ञा पुं० [सं०] १. नगरी । नगर । पुरी। २. घाट । तट। घाट पर बनी हुई रक्षा चौकी को०] । पर की नकाशी उभारदार हैं । २ भडकीला । जैसे—इस उमत-वि० [स० उन्मत्त प्रा० उम्मत्त अथवा स० उन्मन्त्र = मत्रहीन] जेवर की वनावट ऐसी उमाडदार है कि लागत तो दस ही रुपए की है, पर सौ का ऊँचता है । विचाररहित । मत्ररहित । उन्मत्त । उ०—ए सामत उमतउभाडना---क्रि० स० [हिं० उभडना] १. किसी जमी बा रखी हुई झूझ्झ देषत विरुझाने ।--पृ० ० ६६।४३७ । भारी वस्तु को धीरे धीरे उठाना। उकसाना । जैसे—पत्थर मना । जैसे—पत्थर उमकना-क्रि० अ० [देश०] उखड़ना । जमीन में पॅस गया है, इसको उभाड़ो । २ उत्तेजित करना । उमकना -क्रि० प्र०[हिं०उमगन] दे० उमगाना'। उ०-वहदत इधर उधर की बातें करके किसी बात पर उतारू करना । फसरत एकै रंग। ज्यो जल से जल उमकि तरग!--प्राण, बहकाना । जैसे—उसी के इमाइने से तुमने यह सव उपद्रव । पृ० १३ । १ । । । किया है। ३. जगह से उठाना । उमग सज्ञा स्त्री० [हिं० उमंग] दे॰ 'उमंग' । उभाना)-क्रि० अ० [हिं० अभुयाना, हबुआना] अम्माना । सिर उमगन -संज्ञा स्त्री० [सं० उ+मङ्ग] अानंद । हर्ष । खुशी । हिलाना और हाथ पैर पटकना जिससे सिर पर भूत का गाना प्रसन्नता ।। समझा जाता है। उ०—घुमुन लगे समर में घंहा । मनहु उमगना --क्रि० अ० [हिं० उमग + ना] १ उभहना । उमडना । उभात भाव भरि भैहा ।—नाल (शब्द०)। भरकर ऊपर उठना । बढ चलना । चु०-ऋधि, सिधि, उभारसज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उमा' । सपति नदी सुहाई। उमगि अवध अबुधि पहें आई । -तुलसी उभारदार- वि० [हिं०] दे॰ 'उभाडदार' । (शब्द॰) । २ उल्लास में होना । हुलसना । जोश मे आना। उभारना---क्रि० स० [हिं०] दे० 'उभाडना' । उमगा –वि० पुं० [सं० उ +मङ्ग [ली० उमगी] उमड़ा। उत्साहित उभासना--क्रि० अ० [सं० उभासन, प्रा० उभासण.] प्रकाशित हुआ। सीमा से बाहर हुआ । इद्द से निकला हुआ । होना । घोषित होना । चमकना । उ०—-दीप के तेज में दीपक सीमोल्लघित। तीरे के तेज ते हीरो उभासे । तैसे हि सुदर अतिम जानहुँ । उमगाना--क्रि० स० [हिं० उमगना] उत्साहित होना । जोश में भर अपु के तेज से यापु प्रकासे ।-सुदर ग्र०, 'भा० २, पृ॰ ६१६।। जाना । उमगने का कारण होना । उभिटना--क्रि० अ० [न० उभिदन, प्रा० उभिडन] ठिठकना । उमगाव उमगावन--वि० [हिं० उमगन] उमग भरनेवाला । यानदित हिचकना । भिटकना । उ०—जाहु नहीं हो जाहु चले हरि, करनेवाला । उ०—सोकहरन आनंदकरन, उमगावन सब जात जिते दिन ही विन वगे। देखि कहा रहे घोसे परे उभटे कैसे देखियो देखहु अागे ।—केशव (शब्द॰) । गात –भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ४६२। उभियाना-क्रि० स० [हिं० उभना] खडा करना । ऊपर उठाना ।। उमचना--क्रि० अ० [हिं० उन्मञ्चन]१ किसी वस्तु पर त वो उभेप - संज्ञा पुं० [सं० उभयस्थ ?] सदेह । अनिश्चय । उ०-ऐसा से अधिक दवि पहुचान के लिये झटके के साथ शरीर के ऊपर उठाकर फिर नीचे गिराना ! हृमचन। २ चौंक पडेना । अदभुत मेरे गुरि कथ्यो, मैं रह्या उभेष । मुसा हस्ती सी लडे, कोई विरला पे -कवीर ग्र० पृ० १४१ । चौकन्ना होना । सजग होना ।- सुनहु सखी मोहन कहा उभे--वि० [सं० उभय] दे० 'उभय'। कीन्हो । उमचि जाति तव ही सव सुकु चति बहुरि मगन हैं उभौ -वि० [सं० उभय दे० 'उभय' । उ०—fमरे उमौ बाली अति जाति । सूर श्याम सो कहाँ कहर यह कहत न बनत लजाति ।तर्जा । मुठको मारि महा धुनि गर्जा ---मानस, ४८ । सूर (शब्द०)। उमग—सज्ञा स्त्री० [सं० उद= ऊपर+मङ्ग= चलनी अथवा मं० उन्म- उमड-नवा स्त्री० [स० उद्धन) १ वा । तर दाङ्ग, प्रा० उम्मग्रग अथवा देशी०] १ चित का उभाइ । घिराव । धिरन । छाजन । ३, धावा ! सुखदायक मनोवेग । जोश 1 मौज । लहर अनद उल्लास। यौ०-उमड़ घुमड़े।