पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/११२

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उमड़ना माकना उमड़ना-क्रि० अ० [f६० उमडना]१ पानी या और किसी इव वस्तु उमरा–सज्ञा पुं० [अ० अमीर का वच्च ३० }प्रतिदिठत लोग । सरदार। का अधिकता या वाहुल्य के कारण ऊपर उठना। भरकर उ०—निखी पनि चारि दिसि धाए । जहे नक उमा वनि ऊपर माना । उताकर वह चलना । जैसे—बरसात में नदी बुलाए ।—जायसी (शब्द०)। नाले उमडते हैं। उ०—नदियाँ नद लौं उमड़ी लतिका तरु उमराऊ -संज्ञा पुं० [अ० उमर] दे० 'उमराव' । उ० --चार प्रधान हारनप गुरबान लगी --सेवक (पब्दि०) । २ उठकर सात उमराऊ । प्रोहित दोय हिए मन भाऊ !-—कबीर सा०, फैनना । छाना । घेरना । जैसे-वादलु उमडना, सेना उमडना । पृ० ५६३। उ०—(क) घनघोर घटा उमडी चहू और सो मेह कहै न उमराय---सज्ञा पुं० [अ० उमरा] दे॰ 'उमराव' ।--अरे वे रहौं बरसौं ।—कोई कवि (शब्द०) । (ख) अनी वडी उमड़ी । गुसुलेखाने बीच ऐसे उमराय ले चने मनाय महाराज शिवराज लखें असि वाहक भट भूप ।-विहारी (शब्द॰) । को ।--भूपण ग्र ०, पृ० ६ ।। यौ०---उमड़ना घुमडना = घुम घूमकर फैलना वा छाना। उ०- उमराव+-सज्ञा पुं० [अ० उमरा]प्रतिष्ठित लोग । सरदार उमडि घुमडि घन बरसन नागे, इत्यादि ।—(शब्द०) । दरवारी। रईस |--- महा महा जे, सुमट दैत्यदल बैठे सूब ३ किसी प्रवेश में भरना । जोश में आना । क्षुब्ध होना । उमराव । तिहू' भवन मरि गम है मेरो, मो सम्मुख को जैसे-इतनी बातें सुनकर उसका जी उमड प्रया। आव ?--सूर (शब्द॰) । सयो० क्रि--- । - चलना ।—-जाना —पड़ना । उमरी-सज्ञा स्त्री० [हिं०] एक पौधा जिसे जे नाकर सूज्जीखार बनाते उमड़ाना-- क्रि० अ० [हिं० उमड़ना का ० रूप] १ उमडने का हैं । यह मदर सि, वबई तथा बगाल में खारी मिट्टी के देनदलो कारण होना २ दे० 'उमडना' ।। के पास होता है । मचोल ।। चमत--सज्ञा स्त्री० [अ० उम्मत] ६० उम्मत' । उ०—मेरी उमत उमस--संज्ञा स्त्री० [सं० उम] गरमी । बहू गरमी, जो इवा पला | करै हकतायत ।—मै० दरिया, पृ० २२ । पहने या न चलने पर मालूम होती है। उमत्त---वि० [सं० उन्नत प्रा० उम्म] मत्त । मतवाला । 30-- उमड़ना--ऋ० अ० [सु० उत्थत, प्रा० उन्महण अर्थ स० वढि सामत स सूर करे उच्छव उमत्त पर --पृ० १०, २४३५७ ।। उद्+1/मह उभाडना] १ उमडना । भरकर ऊपर जाना। उमदगी-सज्ञा स्त्री० [अ०] अच्छापन । उत्तमता । खूबी । उमगना। फूट चलनी । उ०—-(क) सोने सो जाको म्वरू? सवै कर पल्लव काति महा उमही हैं। देव (शब्द॰) । उमदना--क्रि० अ० [सं० पा० उन्मत्त प्रा० उम्मत्त] १ व मग में (ख) कान्ह भले जू भले समझायौ मोह समुद्र को जो भरना । मस्त होना । २ उमृगना । उमडना । उ०—वद्दल उद्घौ है । —केशव अपने मानिक सो मेने हाय पाए दे उमद्द जैसे जलद्द ! गोली वर बँदे परि विहद्द ।—सूदन कौने लह्यौ है ।—केशव (शब्३०)। २ छाना घेरना । चारों ओर से टूट पढ़ना। उ०—सघन विमान गगन उमदा--वि० [अ० उमदह] [स्त्री० उमदी] अच्छी । उत्तम । बढ़िया । भर रहे। कौतुक देखन अम्मर उमहे ।—सूर (शब्द॰) । उमदाना- क्रि ० अ० [सं० उमद] १ मतवाला होना । मद में ३ उमग में आना । जोश में आना । उ०—१ धावति भरना। मस्त होना । मस्त होकर किसी अोर झुकना । ही नंदलाल सो ऐठि उमेठन रग भरी सी। चारु उ०---(क) हँसि हँसि हेर ति नवल तिय मद के मद महाकवि की कविता सी लसे रस में दुलही उमही सी । उमेदाति ।—बिहारी० र०, दो० १७९ । (ख) जोवन के मद। -(शब्द॰) । उनमद मदिरा के मद मदन के मद उमदात वरवस पर -- उमहाना –क्रि० स० [हिं०] दे॰ उमाहना' । देव (शब्द॰) । (ग) माई बाप तजि घी उमदानी हरपत उमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ हिमालय की पुत्री ! शिव की स्त्री पार्वती। चलो खसम के पास ।—सुदर ग्र०, भा॰ २, पृ० ५४१। । विशेष---कालिका पुराण में लिखा है कि जब पार्वती शिव के २ उपग में आना। आवेश में ग्राना । जोश मे माना। लिये तप कर रही थी उस समय उनकी माता मेनका ने उन्हें उ०-बहू सुभट वदि के प्रान त्यागे विष्णु पुरते जात भै । तप करने से रोका या इसी से पार्वती का ना में उमा पंडा, सो देखि सगर करने महं सब सुभट अति उमदातृ भै । अर्थात ३ (है), मा (मत)। गोपाल (शब्द०)। २ दुर्गा । ३ हृलदी। ४ अलपी । ५ कोत । ६ काति। उमर" -संज्ञा स्त्री० [अ० उम्र] १ अवस्था । वय । २ जीवनकाल । ७. ब्रह्मविद्या । ब्रह्मज्ञान 15 चद्रकात मणि । ६ रात । आयु 1 रात्रि (को॰) । यौ०-उमरदराज = लवी उमेरवीला । यो –उमाकात । उमागुरु = उमाचतुर्थी । उन्नाजनक । उमानाय। उमर-सज्ञा पुं० [अ०1 वगदाद का ए ६ ख तीफा । हजरत मुहम्मद । उमाधव । उमासहाय = शिव । उमासुत । | के बाद दूसरा खलीफा । उमाकद-सज्ञा पुं० [सं०] तीसी के फूल की धुन या पराग । अलसी उमरतो—सुज्ञा स्त्री॰ [स० अनृतिका] एक प्रकार का वा ना । दे० के फूल का मरद [को०)। ‘अविरती' । उ०—वाज मरती प्रति कहकहे । (पाठांतर) उमाकना--क्रि० स० [बेसज] उखाडना । खोदकर फेंक देना । वाज उँवरती अति गह गहे ।—जायसी (शब्द०)। नष्ट करना ।