पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१२०

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छन्झना ६३४ उलटना क्रि० प्र०—डालना ।—पड़ना । वीर वियोग के ये उलझा निकास जिन रे जिकर हिमा हैं। ३ पेच । चक्कर। समस्या । व्यग्रता । चिता । तर दुद । ---ठाकुर०, पृ० ४।। मुहा०—उलझन में डालना = झझट में फंसाना। बखेड़े में डालना। उलझाना—क्रि० स० [हिं० उलझना] १ फंसाना । अटकाना । जैसे,-तुम क्यों व्यर्थ अपने को उनझन में डालते हो । उलझन २ लगाए रखना । लिप्त रखना जैसे ।--वह लोगों को घंटों में पटना= फेर में पड़ना । चक्कर में पड़ना । मागा पीछा बातो ही में उराझा रखता है। ३ लकडी आदि में वल करना। डालन या टेढा करना । उलझनr-f० अ० [हिं० उलझन] १ फँसना । अटकना । उलझाना(५ - क्रि० अ० [हिं० उलझना] उलझना । फेसना । किसी वस्तु से इस तरह लगना कि उसका कोई अग घुस उ०--जीव जजाल मढ़ि रही उलझनो मन सूत । कोइ एक जाये और छडाने में जल्दी न छूटे । जैसे, काँटे मे उलझना । सुलझे सावध गुरु वहि अवधूत ।—कबीर (शब्द०)। (उलझना का उनटा सुलझना) । उलझाव-सज्ञा पुं० [हिं० उलझ + अव (प्रत्य॰)] १ अटकाव । संयो॰ क्रि०-जाना । फंसाव । २ झगडा । बखेडा । झझट । ३ चक्कर । फेर। २ लपेट में पड़ना । गुथ ज ना। (किसी वस्तु में) पेंच पड़ना। उलझेङ–संज्ञा पुं० [हिं० उलझ +एड (प्रत्य॰)] उलझन । उ०— | बद्दत से घुमाव के कारण फँस जाना । जैसे,—रस्सी उलझ इसको दा लझेडे न सुलझेगा ज्यानी वड़े ।-नट०, पृ० १२७॥ गई है, बुनती नहीं हैं। उलझेडा- सज्ञा पुं० [हिं० उलझेड] १ अटकाव । फंसान । २ सयो० क्रि० - जार। झगडा वखेडा । झझट । ३ खींचातानी । ३ निपटना। उ०—-मोन नव शृगार त्रिटप मो उरझी ग्रानद उझe--वि० [हिं० उलझ +हा (प्रत्य॰)] १ अटकानेवाला। | बेल ।--सूर (शब्द॰) । फँसानेवाला । २ वश में करनेवाला । लुभानेवाला । उ०-होत सयो० क्रि०---जाना । सखि ये उलझह नैन । उझि परत सुरभ्यो नहि नानत सोचत । किसी काम में लगना । लिग्न होना। लीन होना ।। समुजत हैं न ।-हरिश्चंद्र (शब्द०) । जैसे --(क) हम तो अपने काम में उलझ थे इधर उधर बलटकबल --संज्ञा पुं० [देश॰} एक पौधा या झाडौ जो हिदुस्तान तरकते नहीं थे । (ख) इस हिसाव में क्या है जो घटो में के गरम भागों में पनीली भूमि में होती है । उलझे हो । विशेष—इसकी रेशेदार छाल पानी मे सडाकर यो यो ही सयो० क्रि०—जाना । छीलकर निकाली जाती है । छाल सफेद रग की होती हैं। पौधे ५ प्रेम करना। ग्रासक्त होना । जैसे, वह लखनऊ में जाकर से साल में दो तीन बार छह या सात फुट की हालियाँ छाल | एक रडी से उझ गया। के लिये काटी जाती हैं । छाल को कूटकर रस्सी बनाते हैं। सयो० क्रि०-जाना ।। जड़ की छाल प्रदर रोग में दी जाती है। ६ विवाद करना। तकरार करना । लईना-झगडना । छेडना । उलटकटेरी--संज्ञा स्त्री० [हिं० उष्ट्र कट] ऊँटकटारा। ऊँटकटाई । जैसे,—तुम जिमसे देखो उसी से उलझ पडते हो। उलटन–संज्ञा पुं० [हिं० उलटना] लौटने का कार्य या स्थिति। सयौ० क्रि० --जाना ।—पड़ना। उ०—दुरि भरि मगन वचावत छवि स प्रावन उ नटन सोहै। ७ कठिनाई में पढना। अवचन में पड़ना । ६ अटकना । नद० ग्र २, पृ० ३८१ । रुकना । जैसे,- वह जहाँ जाता है वही उलझ रहता है । उलटेना--क्रि० अ० [सं० उलण्ठने या अवलुण्ठन] १ ऊपर नीचे महा०—उलझनी सुलझना = फेसना और खुलना । चालना होना । ऊपर का नीचे और नीचे की ऊपर होना। मधा पलफना= बुरी तरह फंसना और निखारने में योर फंसते होना । पलटना। जैसे, यह दावा कैसे उनट गई। जाना। उ०- यह मसार केटि की गाडी उलझ पलझ सयो० क्रि०—जाना । मर जाता है |--कवीर श॰, भा॰ १, पृ० २१ । उलझना | २ फिरना । पीछे मुड़ना। घूमना । पलटना । जैन–मैंने । पुलझना= ग्रच्छी तरह फैशना । उ०--जाह्मण गुरु हैं जगत उलटकर देखा तो वहाँ कोई न या । उ०-जेहि दिमि उ नटे के करम भरम का वाहि । उनझि पुनझि के मरि गए चारिउ सोई जनु खावा। पाटि सिंह तेहि ठाऊँ न प्रावी -- वेदन माहि ।--रुबीर (शब्द०)। उलझा सुलझा= टेढ़ा जायसी (शब्द॰) । सीधा। भला बुरा । उ०—बेनुरी वै ठेकाने को उलझी सुनझी सयो॰ क्रि० -पड़ना। तान सुनाऊँ । ---इशा प्रल्ला (शब्द॰) । उलझना विशेप-गद्य में पूर्व कातिक रूप में पड़ना' के साथ सयुक्त रूप उलाना = बात बात में दखने देता। उ०—जव तक लाला ही में यह क्रिया अधिक अाती है । जलिहाज़ करते हैं, तब तक ही उनका उलझना उझाना ३ उमड़ना। टूट पडना । उनझ प इन। एकबारगी वहुत बन रहा है ।—परी गुरु (शब्द०)। सख्या में आना या जाना । जैसे ---तमाशा देखने के लिये उला '--संज्ञा पुं० [हिं०] ६० '३१झन'। सारा शहर उलट पड़ा । उ०—नयन बोके सर पूज न कोऊ उलझा:--संज्ञा पुं॰ [वेर०] १ हुन । २ शून। पोड़ा । उ०० मन समुद्र अस उनटहि दोऊ !-—जायसी (शब्द॰) ।