पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१२३

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उर्लेटा पैलटी उलथना सो भ्रम भूल न कीजे मान होतो कर हियहू सो होत हिय उलटी खडीमचा जी० [हिं० उलटी+बड़ी माल बम की एक हानिए। लोक में अलोक अान नीकहू लगावत हैं सीता कसरत जिसमें खड़े होकर दोनो पैरो को आगे से सिर पर जू को दूत गीत कैसे उर ग्रानिए । अखिन जो देखियत उडाते हुए पीठ पर ले जाते हैं और फिर उसी जगह पर लाते सोई साँची केशवराई कानन की सुनी सांची कबहू न है जहाँ से पैर उडाते हैं। मानिए । गोकुल की कुलटा ये यों ही उनटावति हैं आज ल उलटी चीन-सा मी० [हिं० उलटा+चेन = चुनना] नैचा वाँधने तो वैसी ही हैं काल्हि कहा जानिए ।—केशव (शब्द०)। ३, का एक भेद जिनमें कपड़े की मुडी हुई पट्टी नर पर फेरना। दूसरे पक्ष में करना । इ० --(क) अब लखहू करि लपेटते हैं। छल कलह नृप सो भेद वुद्धि उपाइकै। परबत जनन सो हम उलटी वगल-सज्ञा स्त्री० [हिं० उलटो+बगली] मुगदल की एक विगारत राक्षसहि उनटाइ हरिश्चंद्र (शब्द॰) । कसरत जो वल अदाजने के लिये की जाती है। इसमें पीठ पर उलटा पलटा-व० [हिं० उलटा+पलटना]इधर का उधर । अडवड । से छाती पर मुगदल ग्राता है तो भी मुट्ठी ऊपर ही रहती है। वसिर पैर का । विना ठीक ठिकाने । वेतरतीब ।। उलटी रुमाली--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० उलटो+फा० रुमाल] मुगदल भजनै उलटा पलटी-सा स्त्री० [हिं० उलटा+पलटी: पलटने या फेरने का एक भेद ।। का कार्यं] १ फेर फार करना । अदल बदल । इधर का विशेष--यह प्रकार की माली है, भेद केवल यह है कि उघर होना। नीचे ऊपर होना । उ०——वहीत उरोजन के इसमें मुगदलों की झोक अगे की होती है । रुमाली के समान उपरा हियहार करे उलट पलटी (प्रत्य॰) । इममे भी मुगदल को मुठिया उलटी पकडनी चाहिए । उलटा पुलट–वि० [हिं० उलटी +पुलटा] दे॰ उलटा पलटा' । उलटो सरसोझा स्त्री॰ [हिं० उलटी+सरसो] वह समो जिसकी उलटा पुलटो–वि० [हिं० उलटी+पुलटी =पलटने यी फेरने फलियो का मुह नीचे होता है। यह जादू टोना, मंत्र तंत्र के की कार्य] दे॰ 'उलटा पुलटा' । उ०—(क) उलटी पुलटी वर्ज काम आती है । टेरो। सो तार | काहहि मार काहहि उवार ।—कबीर (शब्द०)। उलटी सवाई--माझा बी० [हिं० उलटी + सवाई] वह जंजीर जिससे (ख) सखी तुम बात कही यह साँची । तुमही उलटी कहौ, जहाज की अनी या नोक के नीचे सवरा बँधा रहता है। तुमहि पुलटी कहौ तुमहि रिस करति मैं कछु न जानौं। उलटे--क्रि० वि० [हिं० उलटा] विरुद्ध क्रम में । और क्रम से । -सुर (ब्द॰) । देठिकाने । ठीक ठिकाने के साथ नही। उ०—क विचार उलटोमाँच-सा पुं० [हिं० उलटा+मांच <अ० मार्च] जहाज का पीछे चलू सुपय मग आदि मध्य परिनाम उल जपे जरा मा की ओर हृटना या चलना । सुधे राजा राम |--तुलसी (शब्द०)। २ विपरीत व्यवस्याउलटाव--सी पुं० [हिं० उलट+अवि (प्रत्य॰)] १. पलटावे । फेर । नुसार । विरुद्ध न्याय से। जैसे होना चाहिए उससे और ही २ घुमाव । चक्कर। ढग से । जैसे,' (क) उलटे चोर कोतवाल को डाँटे । (ख) उलटावसी -संज्ञा स्त्री० [हिं० उलटवाँसी] दे॰ 'उलटवाँसी' । उसने उलटे अपने ही पक्ष की हानि की। उ०—उलटावसी जो कही कवीरा । रमज रेखता में मत विशेष-क्रियाविशेषण मे भी ‘उलटा' ही का प्रयोग अधिकतर धीरा --घट०, पृ॰ २४७ । होता है। 'अ' कारात विशेषण के प्रा’ को क्रि० वि० में 'ए' उलटासुलटा--वि० [हिं० उलटा+ सुलटा]उलटा सीधा । क्रमरहित । कर देने के भी नियम का पालन खड़ी बोली में कभी कभी वेतरतीव । उ०—उलट सुलटे वचन के, सिष्य न माने दुक्ख । नहीं होता पर पूर्वीय प्रात की भापा में बराबर होता है। कहै कबीर संसार मे, सो कहिये मुरुमुक्ख |--कपीर सा० जैसे,—'अच्छा' का क्रि० वि० 'अच्छे खडी बोली में नहीं होता सु०, भा० १, पृ० १६ । पर पूर्वीय भापा में बराबर होता है ।। उलटी-सच्चा [हिं० उलटना] १. वमन । कै । २ मालखन की उलट्टना -क्रि० अ० [हिं० उलटना] दे० 'उलटना' । उ०-मारू एक कसरत जिसमें खिलाड़ी की पीठ मालखभ की और और चाली मंदिरां चदउ वादल माहि। जांणे गयंद उलट्टिय सामना देखनेवालो की ओर रहता है । खिलाडी दोनों पैरों को कज्जल वन मेंहि जहि। ढोला० दू०, ५३८ । पीछे फेंककर मालखम में लिपटता है और ऊपर चढता उतरता । उलठ पलठ -सज्ञा स्त्री० [हिं० उलट पलट] दे० 'उलट पनट'। है । कलैया । उलठना--(क्रि० अ० और स० [हिं० उलटना] दे० 'उलटना। उलटी-वि० ० [हिं० उलटा का सी० रूप] १ विपरीत । उलठाना -क्रि० स० [हिं० उलटाना ] द० उलटाना' । विरुद्ध । उलथना -क्रि० अ० [हिं० उलटना] ऊपर नीचे होना । उलटी-hि० वि० [हिं०] दे॰ 'उलटा' । उ०—ने की गाँठ भिगाने उयल पुयल होना । उलटना। उ०--उल यहि सीप मोति से उलटी कड़ी होती है ।-भारतेंदु ग्र०, मा० १, पृ० ३७६। उतराही । चुगहि हुल औ केलि फराही ।—जायसी 7 ०, उलटी काँगसी--सच्चा सौ० [हिं० उलदी+देश० कागती] मालखभ पृ० १२। । की एक कसरत जिसमें पूजा उलटकर उँगलियाँ फँसाई उलथना -क्रि० स० उपर नीचे करना। उलट पुलट करना। जाती हैं। भयना । उलट फेर करना।