पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१२५

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उलकी लेखनी उलॉकोमा पु० [हिं० उलक] डाके का हुकारा। उलिद--सज्ञा पु० [सं० उलिन्द] १ शिव । एक देश को०] । उलाँघना(t-- क्रि० स० [सं० उल्लघन, प्रा० उल्लघण] १ लाँघना । उलिगण –वि० [स० अलग्न दे० 'अलग' । बाहर गया है । डाँकना । फांदना । २ अवज्ञा करना । न मानना। विरुद्ध मुसाफिर । युद्ध पर गया हुआ । उ०--जिण सिरजइ उलिगण आचरण करना । ३ वावुक सवारों की बोली में पहले घोडे । घर नारि, जाइ दिइ उ झुरिताँ !-वी० सो, पृ० १ ।। पर चढ़ना । उलिचना+----क्रि० स० [हिं॰] दे॰ 'उलीचना' । । उला--सच्चा स्त्री० [स० उरण या भ० उरभ्र प्रा० उरम] भेड़ का उलीचना--क्रि० भ० [स० पवनेजन, उल्लु चन, पा० प्रोजेजन] १ बच्चा। मेमना |--हिं० ।। पानी फेंकना । हाथ वा वरतन से पानी उछालकर दूसरी उलाक---वि० [सं० उल्लघन] चपत । रफूचक्कर । उ०—नाक ह्व ओर छालना । जैसे,—नाव से पानी उलीचना । उ०— निकाम जाको देखत उलाक होत नाक सुख खोय गिरे नरक (क) पैड काटि त पालव मीची। मीन जिन हित वारि गटाक दे !-राम० धर्म०, पृ० ८४। उलीचा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) पानी वाढो नाव में उलाटना-क्रि० स० [हिं० उलटना] दे० ‘उलटना' ।। घर में बाढो दाम, दोऊ करन उलीचिए यही सयानो काम । उलाथना-- क्रि० स० [हिं०] उलयना । हटना । दूर जाना । उल गिरिधर (शब्द०)। (ग) ३ यिचकी भजी मीजी तहाँ परे पीछे टना 1 उतरना । उ०---जुएँउ घन दहणउ साहिब कउ मुख गोपाल गुलाल उलीची !-पद्माकर (शब्द०)। दिठ, माथा भार उल थियउ ग्रयाँ अभी पयट्छ ।--ढोला०, उलु वा--सज्ञा स्त्री० [सं० उलुम्वा] हरी पकी वालवाले जो या गेहू का ६० ५३१ । भूना हुआ पौधा । ३वी । ऊमी 1 उलार-वि० [हिं० श्रोलरना = लेटना] जिसका पिछला हिस्सा मारी। उलुप-सज्ञा स्त्री॰ [सं॰] दे॰ 'उलप' [को०] । हो । जो पीछे की ओर झुका हो। जिसके पीछे की ओर वोझ । उलुपी-सच्चा पुं० [सं० उलुपिन्] दे॰ 'उलपी' (को०] । अधिक हो। विशेप-इस शब्द का प्रयोग गाडी ग्रादि के संबंध में होता है। उलुप्य–वि० [सं॰] दे॰ 'उलय' [को०)। जब गाडी में आगे की अपेक्षा पीछे अधिक बोझ हो जाता है। उलू---Hधा पुं० [स० उलूक] दे० 'उलूक' । उ०----(क) हैरै गयो। तब वह पीछे की ओर झुक जाती हैं और नहीं चलती । इसी दुमय जो कोई । उनू मिला जो सरबस खोई ।—हिंदी० " को उलार कहते हैं। प्रेमा०, पृ० २६६ । (ख) कर तोर पुरुप रैनि को राऊ । उलारना-क्रि० स० [हिं० उलरना] उछालना 1 नीचे ऊपर उलू ने जान दिवस कर अऊि ।--जायसी ग्रं० (गुप्त), | फेकना । उ०——दीन्हे शकुनी अक्ष उलारी। किंकर भए धरम पृ० १७७ । सुत हारी ।—सवल (शब्द०) । उलूक'--सज्ञा पुं० [सं०] १. उल्लू । २ इद्र । ३ दुर्योधन का एक उलारना--क्रि० स० [हिं० ग्रोलरना दे० 'ग्रोलारना' । दूत । यह उलूक देश के राजा कितव का पुत्र था और महा उलारा - सच्चा पुं० [हिं उतरना] वह पद जो चौताल के अंत में भारत में कौरवो की ओर था । ४ उत्तर पर्वत का एक प्राचीन देश जिसका वर्णन महाभारत में अयिा है । ५ गाया जाता है। उलाह--सया पुं० [स० उल्लास] उल्लास । उमग । जोश ।। कणाद मुनि का एक नाम । उत्साह । उ०—केसो मिलाप लियो इन मानि मिले मग अनि यौ०--उलूकदर्शन = कणाद मुनि का वैशेषिक दर्शन । अनेक उलाहू !-घनानद०, पृ० ११८ । । उलूक'---सज्ञा पुं० [सं० उल्क ] लूक । लोक । उ०—जोरि जो उलाहना'—संज्ञा पुं० [सं० उपालभ, प्रा० उवालभ, शोलभ] १ किसी | धरी है वैदरद द्वारे होरी तीन मेरी विरहाग की उलूकनि लौ की भूल या अपराध को उसे दु खपूर्वक जताना । किसी से लाय अवि --पद्माकर (शब्द०) । उसकी ऐसी भूल चूक के विषय में ना सुनना जवस छ उलूखेल-सज्ञा पुं० [सं०] १. अखिली । २ ख न । खरल । चट्ट। दुख पहचा हो । शिकायत 1 गिला । जैसे,—जो हम उनके यहाँ न उतरेंगे तो वे जब मिलेंगे तव उलाहना देंगे - ३ गुग्गुल । क्रि० प्र०—देना ।। उलूखलक–सज्ञा पुं॰ [सं०] १ छोटी अोखली । २ गुग्गुल । २ किसी के दोष या अपराध को उससे सवैध रखनेवाले उचूतसज्ञा पु° उलूत-सज्ञा पु० [सं०] अजगर की जाति का एक साँप । किसी और आदमी से कहना। शिकायत । जैसे, --लड़के ने । उलूप-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'उलप' [को०] । कोई नदेखी की है तभी ये लोग उसके बाप के पास उ नाहना उलूपा--संज्ञा पुं० [सं०] १ ऐरावतवशी कौरव्य नाम की कन्या लेकर आए हैं। जिससे अजुन ने अपने १२ वर्ष के वनवास में विवाह किया क्रि० प्र०—वेना ।--लाना ।—लेकर पाना । या । इसी का पुत्र बभ्रुवाहन था ! २ मछली । सूस (को०)। उलाहना --क्रि० स० [हिं० उलाहना] १ उलाहना देना । गिला ३ दे० 'उलपी' (को॰) । करना । २ दीप देना। क्षदा करना। उ0----मोहि लगावत उलेखनाf - f० अ० [सं० उल्लेख) पहनानना । जानना । दोप कहा है । ते निज लोचन क्यों न उलाहै ।-प्रताप उ०-ॐ बहुतै के एक जहे. एक वस्तु को देखि । बहु विधि नारायण (शब्द॰) । फरि इद हैं. उ7 बजेवि :-- ५० १.० १।।