पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१२८

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उल्लिखित उल्हनी ६४२ उल्लिखित--वि० [सं०] १ खोदा हुआ । उत्कीर्ण । २ छीना हुआ । क्रि० प्र०—करना । होना खादा हुमा । ३ ऊपर लिखा हुआ । ४ खीचा हुआ । ३ एक काव्यालकार जिसमें एक ही वस्तु के अनेक रूपों मे चित्रित । नक्श किया हुअा। लिखित ।। | दिखाई पड़ना वर्णन किया जाय । उल्ली--संज्ञा स्त्री॰ [स०] सघ । गिरोह (को॰] । विशेप-- इसके दो भेद है, प्रथम और द्वितीय । प्रयम-- जहाँ उल्लोढ--वि० [स०] १ रगडकर साफ किया हुआ । खाद पर अनेक जन एक ही वस्तु को अनेक रूपो में देखें वहीं प्रथम चढाया हुआ । २ पालिश किया हुआ को०१ । भेद हैं, जैसे,- वारन तारन वृद्ध तिय, श्रीपति जुवतिन झूमि । उल्लुचन-संज्ञा पुं० [सं० उल्लुञ्चन] १ उखाना 1 काटना । दर्शनीय बाला जनन लखे कृष्ण रंगभूमि (शब्द०)। अथवा ३ बाल नोचना या खीवना [को०] । जानत सौति अनीति है, जानत सखी सुनीति । गुरुजन जानत उल्लु'ठन---सज्ञा पुं० [म० उल्लुण्ठन] १ कुढ़कना । २ भाक्षेप । | करना 1 व्यग्य करना [को०] । लाल है, प्रीतम जानत प्रीति (शब्द०)। पहले उदाहरण में उल्लु ठा--संज्ञा स्त्री० [सं० उल्लुण्ठा] १ लुढकन। २ प्रक्षेप। एक ही कृष्ण को वृद्धा स्त्रियों ने हाथी का उद्धार करनेवाला । कीकूक्ति । व्यग्य [को०] । और युवतियो ने लक्ष्मी के साथ रमण करनेवाला देखा मौर दूसरे उदाहरण में एक ही नायिका को सौत ने अनीति रूप उल्लु ठित--वि० [सं० उल्लुण्ठित] रगडा हुअा । घपित [को०] । में और गुरुजनो ने लज्जा रूप में देखा ! पहला उदाहरण उल्लू-संज्ञा पुं० [सं० उलूके] १. दिन में न देखने वाला एक पक्षो । | कुचकुचवा । कुम्हार का डिगा । सृभट। शुद्ध उल्लेख का है क्योकि उसमे और अल कार का प्रभास विशेष—यह प्राय भूरे रग का होता है । इस का सिर वित्नी को नहीं है, पर दूसरा उदाहरण सकीर्ण उल्लेख का है क्योकि तरह गोल और अखें भी उसी की तरह बडी और चमकीली एक ही नायिका में सुनीति और लज्जा अादि कई अन्य वस्तुको होती हैं । संसार में इस की सैकडो जातियाँ हैं पर प्राय सब का आरोप होने के कारण उसमे रूक अलकार भी मिल की आँखों के कि एरे पर भौंरी के समान चारो शोर ऊपर को जाता है। द्वितीय–जहाँ एक ही वस्तु को एक ही व्यक्ति फिरे होते हैं। किसी किसी जाति के उल्लू के सिर पर चोटी कई रूपों में देखें वही द्वितीय भेद होता है । जैसे,—• कजन होती है और किसी किसी के पैर मे अँगुलियो तक पर होते हैं । अमलता में, खजन चपलता में, छलता में मीन, कलता मे ५ इच से लेकर २ फुट तक ऊँचे उल्लू ससार में होते हैं। उल्लू वहे ऐन के ।---—यामें झूठी है न प्यारे ही मे आह लागिवे की चोच केटिए की तरह टेढ़ी और नुवली होती है । किसी में प्यारी जू के नैन ऐन तीखे बान मैन के (शब्द॰) । किसी जाति के कान के पास के पर ऊपर को उठे होते हैं। उल्लेखन--सज्ञा पु० [सं०] १ लिखना । उल्लेख करना । । सव :ल्लुमो के पर नरम और पजे दृढ होते हैं। ये दिन को चित्रकारी करना । ३ रेखाएँ खीचना । ४ रमञ्चन । छिपे रहते हैं और सूर्यास्त होते ही उडते हैं और छोटे बड़े खरोचना । ५ वमन करना । ६ गाड़ना ७ ख ४ा करना । जानवरों और कीड़े मकोड को पकड़ कर अपना पेट भरते ऊपर उठाना [को०] । हैं । इसकी बोली भयावनी होती है और यह प्राय ऊजद स्थानो उल्लेखनीय–वि० [सं०] लिखने योग्य । उल्लेख योग्य ।। में रहता है। लोग इसकी बोली बुरा समझते हैं और इसका उल्लेखी--वि० [स० उल्लेखिन्] १ विदीर्ण करनेवाला । फाडनेघर मे या गाँव में रहना अच्छा नही मानते । ताकि लोग | वाला । २ वेग से चलनेवाला । इसके मास का प्रयोग उच्चाटन आदि प्रयोग में करते हैं । । उल्लेख्य--वि० [सं०] १ उल्लेख करने योग्य । लिखने योग्य । २ प्राय सभी देश और जातिवाले इसे अभक्ष्य मानते हैं । कहने योग्य । कथनीय । बताने योग्य किो०)। उल्लच--संज्ञा पुं० [सं०] १ वितान । चद्रातप । चॅदोवा । २. मुहा०— उल्लू का गोश्त खिलाना= बेवकूफ बनाना। मूर्ख, | आच्छादन । व्यवधान [को०] । वनाना । उल्लोल'–वि० [सं०] जोरो से हिलती या कांपता हुअा। अतिशय विशेप-लोगो की घारण है कि उल्लू का मास खाने से लोग चचल को०] । मूर्ख हो जाते या गूगे बहरे हो जाते हैं। उल्लोल?--सज्ञा पुं० ऊंची लहर । कल्लोल । हिलोरा । हिल्लोल [को०]। उल्लू बनाना = किसी को बेवकूफ साबित करना । उ०-- उल्व—संज्ञा पुं॰ [सं०] १ झिल्ली जिसमे वच्चा बँधा हुआ पैदा होता हुम तुम मिल जाय तो पौ बारह है। इनको मिल के उल्लू है । अविला । अँवरी । २ गर्भाशय । बनायो ।--फिसाना०, पृ० १६५ । उन्लू बोलना = उजाइ उल्वेण'--वि० [सं०] अद्भुत । विलक्षण । उ०—उल्वण, दारुण, होना । उजड़ जाना। उ०—किसी समय यहाँ उल्लू बोलेंगे घोर अरु उत्कट, उग्र, कराल !नेद० ग्र० पृ०, १११ ।। (शब्द॰) । उल्वण--सज्ञा पुं० [सं०] १ आँवल । वह हल्की झिल्ली, जो बच्चे २. निवु द्धि 1 वेवकूफ । मूखें । को, जब वह मां के गर्भ में रहता है, चारो मोर से घेरे क्रि० प्र०—करना ।—बनना [-बनाना |----होना । रहती है । उल्छ । अॅवरी ३ वशिष्ठ के एक पुत्र का उल्लेख-- सुज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ उल्लेखक, उल्लेखनीय, उल्लेखित, नाम ।। उल्लेख्य] १ लिखना । लेख । २ वर्णन । चर्चा । जिक्र । उल्हना -क्रि० स० [हिं०] दे॰ उलना' । उ० -नंददास यो जैसे,इस बात का उल्लेख ऊपर हो चुका है । स्याम तमालहि, कनकलता उल्हए !--नद० अ ०, पृ० ३४८ । •