पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१२९

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। उल्हवण ६४३ उपाकल उल्हवण--वि० [सं० उत्+लस] उल्लसित करने वाला। उ० की नाम। गाघार देश या मध्यदेश ! उशीनर देश का चंदन देह कपूर रस सीतल गंग प्रवाह, मनरजन तन उल्हवण निवासी (को०) । कुदे मिलेसी नाह --डोला०, ६० १६१ । | उशीनरी--संज्ञा • [स] उशीनंर देश की रानी [ उशीनरवासियो उल्हास--सज्ञा पुं० [सं० उल्लात] उल्लास । अनद । उ०—। की शासिका [को०)। सद्गुरु वहुत भाँति समझायौ भक्ति सहित यह ज्ञान उल्हास । उशीर--संज्ञा पुं० [सं०] खस । गहिर या कतरे की जड। सुदर ग्रं, भा० १, पृ० १५७ । । यौ॰—उशीर वोज = हिमालय का एक खेड । उवठान -सज्ञा पु० [सं उपम्यान, प्रा० उवट्ठाण] वैठने का कार्य उशीरक-संज्ञा पुं० [सं०] उशीर। खस । या स्थिति । एक स्थान में विशेष रूप से स्थित रहना । उ०- उशीरिक-वि० [सं०] स्वस बेचनेवाला । उशीर का व्यापारी की। इद्रावति मन मो वत्ती, की मन सो उठान ! है तो वह को उशीरी--सज्ञा स्त्री० [सं०] छोटे प्रकार की घास (को॰] । नहीं, जैसो कहेउँ वखान --इंद्रा०, पृ० ६९ ! उशीरी–वि० उशीर रखनेवाला (को॰) । उवना -क्रि० अ० [हि ०] दे॰ 'उग्रना', 'उगना'1'उ०—गढ गाँजर उश्न--वि० [स० उष्ण] गरम । तापमय जलता हुया । उ तै कूच कर, वीवहिं सिवर कराय । दिनकर उवत सो चलिबा, उन शीत नाही तर्हि घामा । सुर्ज जपत्र नहीं ठहि कामा ।| सायागढ़ कहें प्राय !--प॰ रा॰, पृ० १५६ । प्राण०, पृ० २६८। उधना —क्रि० अ० [सं० उदय, प्रा० उग्र ३० भना' । उ०- उश्वास--संज्ञा पुं०स० उच्छ्वास]दे० 'उच्छ्वास' । उ० --श्वास पियहि निरखि व्रजवाल उवीं सब एकहि काला । ज्यों प्रनिन्हि उपवासा सुमिरले दादू नाम कवीर |--कवीर म०, १० ४१३ । के आए उझर्कोहि इंद्रिय जाला ।-नंद ग्र०, पृ० ४५) | उशाक--संज्ञा पुं० [अ० उश्क, अाशिक की वह्व०1 प्रेमी लोग । उवनि -सज्ञा स्त्री० [हिं० उवना] उदय 1 प्रकाज़ । उ०- चद से प्रेम करनेवाले । उ०-फौज उश्शाक देख हर जानि ।। वदन भनुि भई वृषभानु जाई उनि लुनाई की लवनि की सी नाजनी साहेव दिमाग हु}--कविता को०, मा० ४, पृ० ६ । लहरी ।—देव (शब्द॰) । उप---सज्ञा पुं० [सं०] १ पशुज लवण ! खारी मिट्टी से निकाला उवानी--सज्ञा स्त्री० [हिं० अवानी माग्मन । उ०—जवई सरद हुआ नमक । २. गुग्गुल । ३. रात्रिशेप । प्रभात । सबेरा । उवानी जानी । कुवरि सहचरी तन मुसुकानी ।-नद० ग्र०, दिन । ४ कामी पुरुष । ५ खारी मिट्टी ० ।। पृ० ३४। उवारा–सुज्ञा पु० [हिं० उवारना] रक्षा । हिफाजत । देखभाल। | उपण--सज्ञा पुं० [सं०] १ काली मिर्च । मरीच । २ पिप्पलीमूल । पीपर (ये ।। उ०-इन कहि सौंप दीन्ह जिव भारा । सव जीवन को करें उपा --संज्ञा स्त्री० [सं०] १ पीपर । पिप्पलमूल । २. सोठ । उवारा 1---कवीर सा० पृ० ९६६ । । उवारी-सच्चा स्त्री॰ [देश०] कर | महसूल। मालगुजारी। उ०— । शुठ क्वेि] । वारमल में निकट का सारा इलाका 'दासपल्ला' कहलाता । उपती--सुज्ञी वी० [सं०] दे॰ 'उशती' [ये॰] । था जो एक धनिक जमीदार के अधीन था। यह जमींदार उपना-क्रि० प्र०स० उष= गरम होना] तपना । उ०—ते उस्वास मराठो को कोई उवारी नहीं देता था ।—शुवल अभि० ग्र ०, अगिनि की उपी । कुवरि क देवी ज्वालामुखी - नद० ग्र०, पृ० ११६ ।। १० १३४ । उशत्-वि० [सं०] १. सुदर । नेत्ररजन । २. प्रिय ! मनचाहा । ३। उपप-संज्ञा पुं० [सं०] १ सूर्य । २ अग्नि । ३ चित्रक [को॰] । पवित्र । निर्मल 1 निष्पाप । ४. अपवित्र ! अश्लील (को०] । उपवुधसंज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि । २ चीते का पेडे । ३ चीता उशती'-- वि० स्त्री० [सं०] दे॰ 'उशत् ।। (को०) । ४. वच्ची । शिशु (को०) । उशती- सच्चा स्त्री- १ कवी वात् । ऐसी उक्ति जिससे श्रोता के मन उर्व ध-वि० प्रति काल जागनेवाला । उषा वेला म निद्रा त्याग कर को चोट पहुंचे । अशुभ कयन [को०] । उठ जानेवाला (को॰) । उशना-सज्ञा पुं० [सं० उनस] शुक्राचार्य का एक नाम । उपसू-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० उपा'। उशवासी पुं० [अ०] एक पेड़ जिमको जड रक्तशोधक है। हकीम उषसी सज्ञा स्त्री॰ [सं०] दिनात् । संध्या । द्वामा [को०)। लोग इसका व्यवहार करते हैं। उपसुत-सुज्ञा पुं॰ [स] पाशुज लवण । नोनी मिट्टी से निकाला उशाना- सज्ञा स्त्री॰ [वै०स०] १. इन्छा । अभिलाषा । चाहना । । हुआ नमक। २. सोमलता जिम सोमरस निकाला जाता है। ३ रुद्र को उप -सज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्रभात । वह समय जब दो घंटे रात रह एक पत्नी का नाम (को॰) । जाय । ब्राह्म वेला । २. अरुणोदय की लाली । ३ वाणासुर उशिज-संज्ञा पुं० [सं०] कक्षीवान के पिता का नाम [वै] । की कन्या जो अनिरुद्ध को व्याही गई थी। उशौ--सुध स्त्री॰ [सं०] इच्छा । कामना ! ब्वाहिश [को०] । यौ-उषाकाल । उषापनि । उशोनर--सज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन भारत के अतर्गत एक राज्य उपाकल-संज्ञा पुं॰ [सं०] मुर्गा । कुक्कुट किये। २-१५