पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१३०

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उषाकाल सेने उपाकाल-सज्ञा पुं० [म०] भोर । प्रभात । तडका । उष्णीसह–सज्ञा पुं० [सं०] जीडा । जाड़े की ऋतु [को०] ! उपापति सज्ञा पु० [सं०] अनिरुद्ध । उष्णिक संज्ञा पुं० [सं० उष्णिह] एक छद जिसके प्रत्येक चरण में उषारमण -सज्ञा पुं० [सं०] अनिरुद्ध [को०] । सात अक्षर होते हैं। यह वैदिक छद है। प्रस्तार से इसके उपित—वि० [स० १ जला हुआ या दग्ध । २ वसा हुआ । १२८ भेद होते हैं । अाबाद। ३ जो ताजा या टटका न हो। बासी। ४. फुर्तीला उष्णिका–संज्ञा स्त्री॰ [स०] १ मांड जो भात के पक जाने पर उससे | तेज [को॰] । गाढ़े पानी के रूप में निकाला जाता है। २ लुप्मी। उ०-~उषित-सज्ञा पुं॰ बस्ती या अावादी [को॰] । मध्यम वर्ग यवागू (४२११३६ लप्सी) भी खाता था। इसी उपीर–सज्ञी पु० [मुं०] दे॰ 'उशीर' (को०] । का दूसरा नाम उणिका (५॥२॥७१) था ।—सपूर्णा० अमि० उपरिक-संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'उशीर' [को०] । ग्र २, पृ॰ २४६। उपीरक–सुज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ उशीर' (को०)। उष्णिमा-सज्ञा स्त्री० [सं० उष्णिमन्] गरमी। उष्णता [ये) उपरिक-वि० [सं०] उशीर विक्रेती । खस बेचनेवाला (को०)। उष्णपिसज्ञा स्त्री० [सं०] १ पगडी । सफा । ३ मुकुट । ताज। उषेश-सज्ञा पुं० [सं०] अनिरुद्ध (को०] । | ३ महल का गुबद । प्रासादशिखर [२] । उष्टर —सज्ञा पुं॰ [सं० उप्] दे॰ 'उष्ट्र' । उ०—सूकर श्वान सियाल । - उष्णोपी'—वि० [सं० उष्णी सिन्] उष्णीप या मुकुट धारण करने | वाला को०] । रासभा जप्टर जानो। हरि वेमुख मति अघ काल 'मख उनही। उष्णीपी-संज्ञा पुं० १ शिव का नाम । २. एक चक्राकार मानो —राम० घर्म०, पृ० २४५) 'भवन [को०] । उष्ट्र-सुज्ञा पुं० [सं०] १ ऊँट । ऋमेलक । २ रय । ३ डिल्ल या उष्म-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ ग 1 ताप । २ घुप । ३ गरमी की ककुद्वाला सांङ । ४ महिए । 'भैसा । ५ वैलगाडी [को०] ! ऋतु । बसत (को०) 1 ५ क्रोध (को॰) । उप्काडी-सज्ञा स्त्री० [सं० उष्ट्रकाण्डी] १ उटाँटी नाम का पौधा-। उष्मके---संज्ञा पुं० [स०] ग्रीष्म ऋतु । गरमी का मौसम [को०] । २ रक्तपुप्पी [को॰] । उष्मज-सज्ञा पुं० [स०]छोटे छोटे कीड़े जो पसीने, मैल और सही उप्ट्रगीच-सुज्ञा पुं० [स०] अर्श नामक रोग । बवासीर का मजं ।। गली चीजों से पैदा हो जाते हैं। जैसे-खटमल, मच्छर उष्टुपादिका-सज्ञा स्त्री० [सं०]मदनमाली नामक पुष्प या लता (को०] । किलनी, जू', चीलर इत्यादि । उप्किा -सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ ऊँटनी। २ शराव रखने का एक उष्मज--वि० गर्मी या पुसीने के कारण उत्पन्न होनेवाले [को॰] । वर्तन किये] । उष्मप-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ मुगु के पुत्र को नाम ! २ पितृदेव । उष्ट्री सज्ञा स्त्री॰ [स०] ऊँटनी । मादा ऊँट [को०)।, | श्राद्ध ग्रहण करनेवाला । पितृपितामहादि (को०] । उष्ण- वि० [सं०] १ तृप्त । गरम । २ तासीर में गरम । उ०-- उष्मस्वेद-सज्ञा पुं० [सं०] वाष्पस्नान । गरम किए हुए जल में यह औषध उप्ण है। ३ सरगरम । फुर्तीनी । तेज । स्नान को ।। आलस्यरहित । उष्मा--सुज्ञा स्त्री० [स० उष्मन्) १ गर्मी । ग्रीष्म ऋतु। २ धूप । उष्ण- संज्ञा पुं० १ ग्रीष्म ऋतु । २ प्याज । ३ एक नरक का नाम । ३. रिस । क्रोध । ४ उपम वणं श प स, हु अक्षर (को०] । उष्णक--संज्ञा पुं० [सं०] १. ग्रीष्म काल । २ ज्वर । बुखार। उष्मीगम–संज्ञा पुं॰ [सं०] ग्रीष्म ऋतु [को०] । उष्णक-वि० १ गुरमे । तप्त् । २ ज्वर युक्त । ३. तेज | फुरतीला उष्मान्वित-वि० [स०] ऋद्ध । क्रोध मे भरा हुआ (को०] उष्णकटिबुध-सज्ञा पुं० [सं०- उष्ण कटिबन्ध] पृथ्वी का वह भाग उस–सर्व० उभ० [स० अमुष्य> प्रा० अमुस्स, अउँस्स अथवा सं° जो यक और मकर रेखा के बीच में पड़ता है। इसकी | अवस्य] यह शब्द 'वह' शब्द का वह रूप है जो विभक्ति चौडाई ४७ अंश है अयत् भूकम्प रेखा से २३३ अश उत्तर लगने पर बनता है, जैसे, उसने, उसको, उससे, इसमे इत्यादि । और २३३ अश दक्षिण । पृथ्वी के इस भाग में गरमी बहत उसकन--सज्ञा पुं० [सं० उत्कर्षण = खींचना, रगड़ना, मयी देशी पड़ती है। (वै० रू० उकसन)] घास पात या पयाल का वह पोटा उष्णकर-सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य [को॰] । जिसमे बालू अादि लगाकर बरतन मांजते हैं । उसने । उष्णध्नसंज्ञा पुं॰ [सं०] छाता । छतरी । मतपत्र । उसकता —क्रि० अ० [हिं०] दे॰ 'उकसना' । उष्णता--सज्ञा स्त्री० [सं०] गरमी । ताप । उसकाना--क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'उकसाना' । उष्णत्व-संज्ञा पुं० [सं०] गरमी । उसकारना -क्रि० स० [हिं०] दे० 'उकसाना' । ३०--टेढी पाग उष्णनदी-संज्ञा स्त्री० [सं०] वैतरणी नामक नदी कौ] । वधि बार बार ही भुरेर मूछ बाँह उसकारै अति धरत गुमान उष्णवारण-सज्ञा पुं० [सं०] छत्र । छाता । छतरी [को॰] । है !-—सुदर, ग्र ०, भा॰ २, पृ० ४२२ । उष्णा संज्ञा स्त्री॰ [सं०] गरमी (को०] । | उसन —सज्ञा पुं० [सं० उष्ण] उष्ण ! गरम । उ०—सीतर हुत उष्णालु-वि० [स०] १ ताप से पीडित । गरमी खाया हुम । २, सो गा तुम्ह सगा, रहो उमन मम दाहत अगी ।—चित्रा | गरमी सहन न कर सकनेवाला [को॰] । पृ० १६७।