पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

६४६ ऊख ॐड़े—वि० [ टि० अ०] गहरे । उ०—कस्तूरी कूडे भरी, मेली ऊँडे । गई है टूक | तन मन धन यौवन ऐसे सव भए मुझंगम फेंक । ठाँय --दरिया० वानी०, पृ० ३६।। हृदय बरत है दावानल ज्यो कठिन विरह की ऊक । जाकी ऊँद-संज्ञा पुं० [सं० उन्दुर] चूहा। मूसा। मणि सिर ते हरि लीनी कहा कहत अति मुक। सूरदास ब्रज ऊँचा' –वि० [हिं०] दे॰ 'वा' । उ०—ऊँचे खोरे काचे भाडे ! वास वसी हम मनो दाहिनो सुक ।—सूर (शब्द॰) । इन महि अम्रित टिके न पाई ।—प्राण० पृ० २६५ । । ऊक.-सज्ञा स्त्री० [हिं० चूक का अनुकरण अथवा स० अव+कृ मुहा०-ॐवा ताला मारना= उलटा तीला वद करना । दिवाले (अवकृत)] भून । चूक । गलती । उ०—जुदर इस ौजूद को द्योतन । उ०-ए वाजे देवालिया, ऊँचा ताला मार -- म इश्क लगाई ऊक । 1शिक व्डा होइ तव आइ मिलें बाँकी० प्र०, मा० २, पृ० ६६ ।। माशूक ।- से दर० ग्र०, भा० १, पृ० २६१ । ऊँवा --ज्ञा पुं० [हिं० या १ टालुवाँ किनारा 1 ढाल । २ ऊक-वि० [अ० उत्कट] उत्कट । तीव्र । उ०—अति ऊक गध र तालाब में चौपायो के पानी पीने का घाट जों ढालुवा होता | रम्स वासि ।--पृ० रा०, ५७ । २५२। है। गऊघाट । ऊकटना—क्रि० अ० [हिं० 'कठना]। उ०—उत्तर अाज स उत्तरउ, ॐनमना–क्रि० अ० [सं० अवनमन ३० ‘उनवना' । उ०—उँनमि ऊकटिया सारेह । बेला बेलाँ परहरइ, एकल्ला मारेहडोला। विग्राई बदनी वर्मण लगे अँगार ।—कवीर ग्र०, पृ० ८० । दू० २६५। । ऊँभरा —सज्ञा पुं॰ [हिं०] दे० 'उमा'। उ०—प्रौर बधाई उमरा ऊकट्ट -संज्ञा स्त्री० [सं० उत्कट] ३० ‘उत्कट' । | करी प्राइ सुर ताने ।--८० रा०, ६२१० । ऊकठना -कं० अ० [सं० उत्त+कर्ष, हि० कढ़ना] बाहर ॐवरा---सज्ञ यु० [अ० उमरा]३० ‘उमराव' । ३०-प्रवर लक्खा निकलना। ३०-उत्तर अाज से वज्जियउ ऊकठिंबई | ऊंवर, कीवः साथ कमव ।–० ९०, पृ॰ ६६ । कंकण कामणि । कमिकमेडि, ज्यॐ दुइ लागउ तीचाण । ऊँ ?--ग्रव्य० [देश॰] कभी नहीं । हगिज नहीं । --होला०, दू० २९७ ।। विशेष—जब लोग किती प्रश्न के उत्तर में अलस्य से वा और ऊकना'५ –क्रि० अ० [हिं०] चूकना ! मूल करना । गलती किसी कारण ले मुह खोन्नना नहीं चाहते तब इस अव्यक्त करना । ३०--अपनी हित मानि सुजान सुन घरि कान शुद से काम लेते हैं। निदान ते ऊकिए ना। निज प्रेम की पोखनिहारि बिसारि ॐ'-सुज्ञा पुं० [सं०] १ महादेव । ३ चंद्रमा । अनीति झरोखनि किए ना ।-प्रानदघन (शब्द०)। ऊG-प्रय० [स० अपि (सहिना दशा में उ)=भी भी । ऊना' , ऊकना’-- --क्रि० ० छोड देना । भूल जाना । उ०—दुर दूर उ०—लनीदास ग्वालिन अति नागरि, नटनागर मनि नदलना १ काज द्वे, परे एक सँग ५ 1 ऊकन जोग ने एक है, इनमें ऊ--तुलसी (शब्द॰) । परत लखाय --लक्ष्मणसिह (शब्द०)। ऊकनाt----क्रि० स० [स० उल्का, हि० ॐक] जाना । दाहना । ऊ -तवं० [स० अदस् या अस>*प्रा० अहउ> वह, उह। भस्म करना । तपाना । उ॰—ए व्रजचद्र, चलो किन वा आहे. ऊ, अथवा प्रा० अग्रव> बह, ऊ, उह, श्रोह] वह। व्रज लूके बसत की ऊकन लगी। त्यो पदमाकर पेस्रो पसिन उ०—(क) लगन जिसका जिस जिस घात से है। ऊ नई पावक सी मनी फूकन लागी ।--पदमाकर (शब्द॰) । किसका खुदा की जात नू' है --दक्खिनी॰, पृ० ११५ । (ब) । ऊकपात कप –सझा पु० [स० उल्का+पात] दे॰ 'उल्कापात' ।--- ऊ गति काहू विरलै जाना --कवीर० स०, पृ० ६०६ । । उ०— ऊकपात, दिकदाह दिन फेकर हि स्वान सियार । ऊयाना -क्रि० अ० [सं० उदयन] उगना । उदय होना। तुलसी ग्र०, पृ० ८६ ।। निकलना । उ०—(क) भयाँ रक्षायस मार चुा सूर न करडी-सुज्ञा पुं० [सं० अवकर, अवस्कर, प्रा० अवक्कर, उक्कर अउ चद जहू ऊम्रो [---जायसी (शब्द०)। (ख) नासा उकर+डी (प्रत्य॰)] १ अशुचि राशि । २ घूरा । वह देखि लजान्यो सुग्रा । सुन्न अाय वेसर होय ऊम्रा । स्थान जहाँ मैला इकट्ठा किया जाता है । उ०—कर हउ कूड़ई जायची (शब्द॰) । उग्रवाई–वि० [हिं० प्राव वाव, मुं० वायु= हवा ] अडवर्ड 1 मन थकइ, पग राखीय जाँण । ऊरडी डोका चुगइ अपस मैं सिरपैर का । निरर्थक । व्यर्थ । उ०—जन्म गवायो इँमायउ अाँण --डोला, दू० ३३६ ।। ऊग्रवाई भोजन । 'मजे न चरण कमल यद्दति के रह्यो ऊलता'T सञ्चा, °ि [सं० आकुलता] १ व्यग्रता । २ त्वरा । विलोकत छाई ।—सूर (शब्द०)। जल्दीबाजी। उ०—ऊकलता चूकी मती, है न कोतक ऊक?--संज्ञा पुं० [सं० उल्का] १. उल्का। टूटता तारा । उ० हास वाँकी० ग्र०, मा० १, पृ० ३३ । ऊक पात दिकदाह दिन फेकरहि स्वान नियार। उदित ऊकलना-- क्रि० अ० [हिं०] दे॰ 'उकलना' । उ॰—कनकलिया केतु गत हेतु महि कपति बार हि वार !—तुलसी (शब्द॰) । कृत किरण कलि ऊकलि । वरजित विसिख विवरजित पाउ । ३. लुक लुप्रा । उ०—घरी एक झरि सार बहु ज्यो ---वेलि०, दू० ११६ । अगि मंजुक्ता ऊक । पृ० रा०, १० । ३३ ।। ऊकार--संज्ञा पुं० [सं० ॐ + कौर ऊ' अक्षर या उसकी ध्वनि (को॰] । ३. दहि । जलन । अाच । नाप । तपन । ताव । उ०—कहीं ऊख' संज्ञा पु० [सं० इक्षु) ईख । गन्ना, दे० 'ईव' । । . लौं मान अपनी चक । विनु गुपाल सृद्धि री यह छतियां हैं न ऊख -वि० [सं० उष्म) प्रा० उखम् > हि० अख] तपा: ।