पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१३९

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ॐदो होम ऊदी सेम--सा स्त्री० [हिं० दौ+सेम] केवच । ऊन-वि० [सं०] १ कर्म । न्युने । यौहा। २. तुच्छ । हीन । ऊध-सज्ञा पु० [स० ऊवस्, ऊघ ] १ गुप्त स्थान जहाँ मित्र ही जा । मुकें । २ म्तन या छाती ०१ ।। ऊन-सज्ञा पु० मन छोटा करना। वेद । दुःख ! ग्लानि । रंज। झवन्य--सज्ञा पु० [सं०] दुग्ध [को०)।। उ०—(क) अस कस कहहु मानि मन ऊना । सुख सुहाग तुम ऊवम–संज्ञा पुं० [सं० उद्धम ब्वनित] उपद्रव । उत्पात । घूम । क्हें दिन दूना !-—तुलसी (शब्द॰) । (ख) जनि जननी मानहु | हुल्लड । हल्ला गुल्ला ! शोर गुन । देगा फसाद । मन ऊना । तुमते प्रेम राम के दूना ।—तुलसी (शब्द०) । क्रि० प्र०---उठाना।—करना ।—जोतना ।—मचाना। क्रि० प्र०—मानना= दुख मानना । रज मानना। ३०-सुनु ऊवमी--वि० [हिं० ऊधम] [ची अवमिन] ऊष्ठम करनेवाला । लपि जिय मानसि जनि ऊना । तं मम प्रिय लछिमन ते दूना। उपद्रवी । शरारती । फसाद ! —तुलसी (शब्द॰) । ऊवव –सुज्ञा पु० [स० उद्धव] दे॰ 'उद्धव'। ऊनक-वि० [सं०] १. न्यून 1 कम । २ हीन । मद । तुच्छ । ऊबस्सुः पु० [सं०] १ स्तन ! छाती । २ मित्रों के मिलने की । गुप्त स्यान ०] । ३ दोषपूर्ण । दोपयुक्त [को०] ! ॐवस्य –सज्ञा पु०[सं० इधस] दूध (दि०)। ऊनत -संज्ञा स्त्री० [सं० ऊनता] ३' 'ऊनता' । ३०-त्रिकुटी चढ़ा ऊधो 7-सज्ञा पु० [सं० ऊद्धव] उद्धव । कृष्ण के सखी एक यादव ।। अनंत सुख पाया, मन की ऊनत भागी ।—दरिया मुहा०—ऊधो का लेना ने माचो का देना=किसी से कुछ सवंध बानी, पृ० ५७ । नहीं। किसी के देने लेने में नहीं । लगाद बझाव से अलग ।। ऊनता सच्चा स्त्री० [सं० ऊन] कमी । न्यूनता । घटी । हीना । ऊघौ-- ज्ञा पुं० [सं० उद्धव] ३• ऊधो' । उ०--ऊधों की ऊपदेस ऊनमना —क्रि० अ० [स० अवनमन] दे॰ 'उनबना' । उ०सुनौ ब्रज नागरी ! प सीन नावन्य सवै गुन अगिरी -- ऊनमिय; उत्तर दिसइ, गाज्यउ गहिर गंभीर 1नद० २, पृ० १७३। ढोला० ८०, १६ । नंत--वि० [सं० उन्नत] दे॰ 'उन्नत' । उ॰—बेटी राजा भोज ऊनयना - क्रि० अ० [स० अवनमन] दे॰ 'उनवना' । उ०की ऊनत पयोहरवाली वेस 1--- वी० रासो०, पृ० ६ ।। गड़वे वइळे एकठा मालवणी नई ढोल ! अबर दीठ ऊनय, ऊन–सा पुं० [स० अणं] भेड़ बकरी आदि का रोया । भेड़ के तिय सुमारय वोल ।-ढोला०, ६० २४३ ।। ऊपर का वह वाल जिससे कंबल और पहनने के गरम कपड़े ऊनरना--क्रि० अ० [हिं०] दे॰ 'उनरना' । उ०—-ए पिया, बनते हैं। कहर ऊनरे श्रीरू काँहर वरस्यौ जाइ |--पोद्दार अभि० विशेप-'भारतवर्ष में उत्तराखड वा हिमालय के तटस्य देशो ग्र०, पृ० ६१४ । । की भेड का ऊन होता है। काश्मीर और तिब्बत इसके लिये ऊनवना--क्रि० अ० [सं० अवनमन] दे० 'उनवना' । उ०—एक प्रसिद्ध हैं। पंजाब, हजार और अफगानिस्तान की कोच वा सबद सौं ऊनवे, वर्षे न लागै अाई । एक सवेद सौं बौखरै, आप अरल नाम की भेड का भी कन अच्छा होता है । गढवाल, आप को जाई -दादू०, पृ० ३६२ 1 नैनीताल, पटना, कोयबटूर और मैसुर मादि की भेड़ों से भी ऊना--वि० [सं० ऊन] [वि० ० ऊनी] १. कम । यौडा । छोटा । वढिया ऊन निकलता है। ३०---सुनौ के परमपद, ऊना के अनत मद, नुनो के नदीस नद, न और वाल में भेद यह है कि ऊन के तागे यो ही वहुत इदिरा झुरै परी।---देव (शब्द॰) । २. तुच्छ । वारीक होते हैं अर्थात् उनको घेरा एक इच के हजारवें भाग से नाचीज । हीन । भी कम होता है। इसके अतिरिक्त उनके ऊपर बहुत सी सूक्ष्म । ऊना--सच्चा पुं० १ एक प्रकार की छोटी तलवार जो स्त्रियों के दिली वा पत (जो एक इवे में ४००० तक आ सकती हैं) व्यवहार के लिये बनती है। उ०—मुरि मुरित कहु ना, उत्तम होती हैं। इसी कारण अच्छे ऊन की जो लोई अदि होती हैं। ऊना, सव तें दूना काट कर 1-पद्माकर ग्र ०, १० २८ । उनके ऊपर थोड़े दिन के बाद महीन महीन गोल रवे से विशेप-इसका लोहा वहुत अच्छा और लचीला होता है। इसे दिखाई पड़ने लगते हैं। प्राय बहुत सी भेड़ो में ऊन और बाल रानियाँ अपने तकिए के नीचे रखती हैं। मिला रहता है । केन की उत्तमती इन बातों से देखी जाती है। -रोएँ को बारीकी, उसकी गुरुचन, उसका दिउलीदार होना, ऊनित--वि० [सं०] घटाया हुआ । कम किया गया [को०] । उसकी लवाई, मजबूती, मुलायमियत और चमक । भेड के ऊनी--वि० जी० [सं० ऊन] १ कम । न्यून । योडी । चमड़े की तह में से एक प्रकार की चिकनाई निकलती है जिससे । निकलती है जिसमे ऊनी'----सुधा स्त्री० उदासी 1 रंज। सैद । ग्लानि । उ०—-सौति सजग ॐने मुलायम रहता है। न जानि परे मन मानती का उर मानी ऊनी । सुदर मंजुल कश्मीर, तिब्बत और नेपाल आदि ठंडे देशो में एक प्रकार मोतिन को पहिरो न भटू किन नाक नयूना ।—प्रताप की वेको होती है जिसके रोएँ के नीचे की तह मे पशम या (शब्द०)। पशमीना होता है । इसी को काश्मीर में 'मसली तूस' कहते ऊनी-[हिं० ऊन-+ई (प्रत्य॰)] ऊन का बना हुआ । हैं जो दुशाले आदि में दिया जाता है। (वस्त्र अादि)।