पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कस्तंभ ६५७ ॐवंचरण ऊरुस्तंभ---सुज्ञा पु० [सं० रुस्तम्भ] वात का एक रोग जिसमे पैर उ०—दृश्य मेवाड़ के पवित्र वलिदान को ऊजत आलोक अखि | जकड़ जाते हैं । छोलता था सूर्वकी।--लहर, पृ० ६६ ।। ऊरुस्तंभा–सच्चा स्त्री० [सं० करुस्तम्भा केले का पेड़ [को०] । ऊर्जी--वि० [सं०] जहाँ खाने पीने की वस्तुएँ अत्यधिक हो [को०] ।। ऊ' - संज्ञा पुं० [सं० ३९] ३० ऊ' । उ०—-नवी वंधन दृढ के ऊर्ण-संवा पु० [सं०] १ ऊन । भेड या वकरी के बाल । घर । ऊ जमन वांवि ३३ करे -नद० ग्र २, पृ० १४६।। ऊर्णनाभ-सा पुं० [सृ०] मकड़ी। लूता । ऊरू-सा मो० [देश॰] ऐन नाम की कटीली लता अलई । ऊर्णनाभि--सच्चा पु० [सं०] मकड़ी। ऊरूदभव--सच्चा पु० [सं०] ऊह से उत्पन्न वैश्य (को०] । ऊर्णपट संज्ञा पुं॰ [सं०] मकड़ [वै] । ऊरुद्भव-वि० [स०] जो ऊरू या जाप से उत्पन्न हो [को० ।। ऊम्रद–वि० [सं०] ऊन की तरह मुलायम [को॰] । ऊरे - वि० [हिं० ओर इधर पहले । उ॰--अवे श्री गुसाँई । ऊण-संज्ञा स्त्री० [सं०]१ ऊन ! २ चित्ररय नामक गधर्व की स्त्री। की सेवकिनी एक ब्राह्मना, उज्जैन ते चार कोस ऊरे में एक ३ भौंहो के मध्य की भौरी कौ०] । ग्राम है !-दो नौ बावन०, भा० १, पृ० ३१३ । ऊर्ज-वि० [सं० उजंस, अजं] बलवान । शक्तिमान । वली । । ऊणपिङ–सज्ञा पुं० [स० कर्णापिण्ड] ऊन का गोला [को०] ! . ऊर्ज-सज्ञा पुं० [सं०] [वि॰ ऊर्जस्वल, ऊर्जस्वी] १. वल । शक्ति। ऊर्णायु-संज्ञा पुं० [सं०] १ केवल । ऊनी वस्त्र । २ एक गंधर्व का २ कार्तिक मास । ३ एक काव्यालंकार जिसमें सहायकों के नाम ! ३ मॅड (को०) । ४. मका (को॰) । घटने पर न अहंकार का न छोडना वर्णन किया जाता है। ऊणविल- वि० [सं०] ऊनी (को॰] । ३०–को धपुर जा मिल्यो है विभीषण & कुल दूपण जीवगो ऊर्णावान्–वि० चि० ऊर्णावत्] ऊनी (को०)। को लौं। कम करन्न मरयो मघवा रिपु तौऊ कहा न डरो चर्म ऊणसूत्र--सज्ञा पु० [सं०] ऊन का धागा [को०) । सौं -। श्री रघुनाथ के गाने सुदरि जानहु तू कुशलात न ऊर्ण त--वि० [सं०] ढका हुआT [को०] । तौ ल ! शाल सर्व दिगपालन को कर रावण के करवास है ऊर्द-सज्ञा पुं० [अ०] १ अनाज ना "ने का पात्र । २ वीर। ३ । जौं लौं। (इसमें भाई और पुत्र के न रहने पर भी रावण राक्षस [वै] ।। अहकार नहीं छोडवा) 1-केशव (शब्द०)। ४ अन्न का सार- ऊर्दब्वे-क्रि० वि० [सं०] ऊपर । ऊपर की ओर । भून रस (को०)। ५ पानी (को०) । ६ आहार 1 जन(को०)। ऊद् व्व—वि० १ ॐा । ऊपर का । ऊपर की ग्रोर किए हुए । २ ७ जीवन (को०)। ६ श्वास (को०)। ६ प्रयत्न । उद्योग बडा । ३ विखराए हुए (वाल) [को०) । (को०) । १० उत्साह (को०) । ११ प्रजनन शक्ति (को०)। विशेप---हिदीं में यौगिक शब्दों में ही यह प्राय आता है जैसे; ऊर्जमेध–वि० [सं०] अत्यंत प्रतिभाशाली । अत्यत चतुर [को०)। उर्ध्वगमन, उद्ध्वरेता, । ऊर्द्धश्वास । ऊर्जस्-सुझा पु० [सं०] १. वल । शक्ति । पराक्रम । २. उभग। उत्साह । ३ 'मोज्य वस्तु । अहार। ' ऊद्ध्व --सज्ञा पुं० [सं०] १. दस दिशा में से एक। सिर के ठीक । ऊर्जस्वल--वि० [सं०] १ बलवान् । बली। शक्तिमान् । २ श्रेष्ठ । ऊपर की दिशा । २. उच्चता । ॐवाई (को०)। " उ०-करा हे ऊर्जस्वल दल से नित्य नवल कौशन का मेल । ऊद्ध्व --संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मृदग [को॰] । साध रहे हैं सुभट विकट वहु भय विस्मय साहस के खेल । कद् व्वकठ–वि० [सं० उद्ध्वकण्ठ उठी हुई गरदनवाला (को॰] । - साकेत, पृ० ३७५ । ३. तेजस्वी 1 तेजयुक्त (को॰) । ऊद्ध्व --संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मृदग। ऊर्जस्वान--वि० [स० ऊर्जस्वत्] १ ऊर्जस्वी । २. रसीला । ३ खाद्य- ऊद् वैकर्ण-वि० [सं०] उपर को उठे इए या खडे कानवाला [को युक्त कि०] । ऊद्ध्व काय--संज्ञा पु० [सं०] शरीर का ऊपरी भाग [को०] ।। जस्वित–वि० [३०] शक्तिशाली 1 श्रेष्ठ । कातियुक्त । उ०—-मैं ऊद्ध्के श > वि० [स०] १ खड़े बालोवाला । २ बिखरे तुम्हें पवित्र, उज्वल ग्रौर ऊर्जस्वित पाता हूँ !-- | वालोवाला [को०] । कुकृाल, पृ० १११।। ऊद्वक्रिया--संज्ञा स्त्री० [म०] उच्च पद-प्राप्ति के लिये कार्य या ऊर्जस्वी--वि० [सं० अर्जस्विन्] १ बलवान् । शक्तिमान् । २ । क्रिया । | तेजवान् । ३. प्रतापी । ऊर्दू बग-वि० [सं०] १ ऊपर को जानेवाला । २ उठना हुआ। ऊर्जस्वीसंज्ञा पुं० [सं०] एक काव्यालंकार ! जहाँ रसाभास या भावाभास स्थायी भाव का अथवा भाव का अंग हो ऐमे वर्णन । जो ऊपर को गया हो (को०] 1 में यह अलंकार माना जाता है। ऊद्व्वा गुलि--वि० [स उदवङ्गलि] उँगलियो को ऊपर किए हुएकिौ}} ऊज-संवा जी० [सं० ३र्जस] १, शक्ति । वल 1 ३ हरि। ३. ऊद्ध्व गति'- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ ऊपर की ओर चाल। ३ मुक्ति। उत्पत्ति ! ४ दक्ष की पुत्री का नाम जो वशिष्ठ के साथ व्याही ऊर्दू ध्वगतिवि० ऊपर की और जानेवाला को । । गई थी ]ि । ऊद् बगामी–वि० [सं० उद्ध्वगामिन्] १ ऊपर जानेवाला । . जित-वि० [सं०] १ शक्तिशाली । वन्नवान् । २ महान् । | मुक्त । निर्वाणप्राप्त ।। प्रताप । ३. गौरवशाली । योग्य ! उदात्तचरित्र १४, गमीर- कर्वचरण-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक प्रकार के तपस्वी जो सर के