पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१४५

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  • , ऊर्मी

ऊपक छिनक में करी, भरी, सहारौ, । ऊन नाभि लौं फिरि विस्तारौ। 'ऊलवना--क्रि० स० [सं० अवलम्ब, प्रा० लव या ऊलव —नंद ग्र०, १० २२६ ।। अवलवित करके । सहारा लिए हुए । उ०—ऊनये सिर ", ऊर्मी--संज्ञा स्त्री॰ [स०] १. लहर। तरंग । उ०—ऊfम घृणित हत्यडा, चाहदी रसलुध्ध विरह महोघण ऊमट्यॐ थाह | रे, मृत्यु महान, खोजता कहाँ कहाँ नादान |--गीतिका, निहालइ मुध्ध ।-ढोला०, दू० १५ ।। पृ० २७ ।। ऊलजलूल-वि० [देश॰] १ असवद्ध । वे सिरपैर का । अड वः । यौ०-ॐमिलीली= समुद्र । वेठिकाने का । अनुचित । उ०--जो मैं जानूगा कि तुने मूत्र के २ पीडा । दु ख ।। किसी ऊलजलूल काम में रुपये घुल किए तो फिर उमर भर विशेष—ये छह हैं। जैसे,--एक मत से सर्दी, गर्मी, लोभ, मोह, तेरी बात न मानेगा । शिवप्रसाद (शब्द॰) । २ अनाडो । भूख, प्यास । दूसरे मत से मुख, प्यास, जरा मृत्यु, शोक, अहमक । वसमझ । जैसे,—वह वडा ऊलजलूले आदमी है । मोह । ३ वैग्नदब । अशिष्ट । ३ छह की संख्या । ४. शिकन । कपड़े की सलोट । ५ घारा। ऊलना- क्रि० अ०स० उल्लल् या उत् +Vलल]१ कूदना । उछलना। प्रवाह या वेग (को०)। ६ पक्ति । क्रम (को०)। ७ प्रकाश । नदित होने के कारण उछलना, कूदना । ३ उमगित होना । ज्योति (को०) ।। उ०—साज सज्ज चल्यौ सुफुनि जनु ऊलौ दरियाव -- अमिका--सक्षः सी० [सं०] १ लहर । तरग । २ अंगूठी । मुद्रिका ।। पृ० रा ० ६१।६२० । ४ अकुलाना । ५ अतुर होना । ३. द ख (किसी स्वई व वस्न के लिये)। ५मधमी की ऊला-वि० [हिं० ऊलना] उछाल । वेग । उ०—और भी बढ़ाये पैग भनभनाहट । ५ कपड़े की सलोट कौ०]। दोनो ओर ऊले से - साकेत, पृ० २७३ । कमिमान-वि० [सं० उf६मत्] १ ऊमिले। लहरों से युक्त । ऊलर'--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] कश्मीर देश की एक झील । तर गायित । २. घुघराले (केश) कि०] ।। ऊलर+२–वि० [हिं०] झुका हुआ । घिरा हुआ। उ०-- घमंड कममाला--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ तुरगावली । लहरों का समूह ।। घटा अलर होई अई, दामिनि दमक डरावे । सत० वाणी, २ एक प्रकार का छद (को॰) । भा॰ २, पृ० ७३ ।। ममुखर-वि० [हिं० ऊfम + मुखर] लहरों से ध्वनित । लहरो की ऊलहना--क्रि० अ० [सं० उत् + लस्, प्रा० उल्लग्न, उल्लर) कलकल से गुजित । उ०- क्या वहीं तुम्हारा देश, ऊम- १ विकसित होना । २ दे० 'उलसना' । उ०--दोप वसूत को मुखर इस सागर के उस पार कनक किरण से छाया प्रस्ता दीजे कहा, उलही न करील की डारने पाती ।—पद्माकर चल पश्चिम द्वार |--प्रनामिका, पृ० ५६ ।। ग्र २, पृ० २३८ । ऊमिल-- वि० [सं०] लहरीला 1 तरंगयुक्त । तरंगति । उ०—है ऊला –प्रव्यू० [हिं० ऊरे] इधर 1 इस शोर । उ०-ॐ राठोड ऊमिल जल निश्चलत्प्राण पर शतदल |--तुलसी०, पृ० १ । हुवे ज्याँ अागे भिडत ऊला पेला भाग १-०, ६०, पृ० ६० । कमलासुसी स्त्री० [सं०] लक्ष्मण के पत्नी का नाम । ऊलालना -क्रि० स० [देश॰] उछालना । उहाना। उ०—ाडा ऊमिला--वि० दे० 'ऊर्मिल'। उ०—-वहु चली सलिला अनसित, डुगर वन घणा ताह मिलीजइ केम । उलालीजइ मूठ भरि ऊमिला, जैसे उतारी।–अर्चना, पृ० १०६ मन सीचाणउ जेम –ढो ना०, ८० २१२ । ऊर्मी-वि० [सं० मिन] वर गमय । तृरगित (को०] । ऊली--वि० [हिं० ऊलना= उछलना = अस्थिर] छन । उ०-- ऊयै--वि० [स०] ऊमिल । तरनायित । लहराता हुआ [ो०] । छछछा छाया देपनि भुली । छल वल करे छलैगी ऊली :-- ऊम्र्या--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] रात्रि ! रात [क] । सदर ग्रं॰, भा० १, पृ० २२१ । वं-सा पु० [सं०] १. समुद्र । २ मेघ । बादल । ३. सरोवर । ऊलूक-सम्रा पु० [सं०] १० 'उलूक'। | ताल । ४ कासार । नद । झील । ५. वड़वानल । ६ पशु- ऊवडन----क्रि० अ० [हिं०] दे० 'उमडना' । उ०—ऊजलियाँ घारौं शाला । ७ पितरो का एक वर्ग [को०] । ऊवडियौ परनाले जल रूहिर पई ।-वेलि०, ६० १२० । ऊर्व--वि० विस्तृत 1 बड़ा (को०] । ऊवाबाईqf-अव्य० [देश॰] ऊटपटांग । व्यर्थ । उ०—ऊपर ऊर्वरा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] ३० 'उर्वरा' । तेरे पहिचाने, कवीवाई जगतहिं जाने । सुदर ग्र ०, भा० अर्वरा-वि० ३० ‘उवा' । १, पृ० २१९ ।। ऊर्वशी-सच्चा स्त्री० [१०] दे॰ 'उर्वशी' । ऊप--सूखा पुं० [स०] १. ऊसर भूमि । रेहुबाली भूमि । २ नोनी कर्त्य ग–सद्मा पु० [सं० ॐव्यंङ्ग] छत्रक । कुकुरमुत्ता (को०] । मिट्टी । लौना मिट्टी । ३. अम्ल । क्षार। ४. दरार । छैद । ऊर्पा-सा धौ० [सं०] देवताड नामक घास [को०] । ५. कान का छेद । ६. मलय पर्वत । ७ पी। भोर । ८. अलग–सच्चा स्री० [देश॰] एक प्रकार की चाय । वीर्य [को०] । ऊलग--वि० [सं० उन्नग्न उलग । न गा । ऊपर्क-स पुं० [स०] १ प्रत्यूष । भोर । २ नमक । ३ काली २-१७ मिर्च (वे] ।