पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१४८

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ऋचीक ६६३ ऋणमोक्ष ना । कडिका । ३ स्तोत्र । स्तुति । उ०—-लगे पढन रच्छी ऋचा ऋज्वो -सज्ञा स्त्री० [सं०] १ सरल स्वभाव की तथा सीधी स्त्री । ऋषिराज विराजे - तुलसी ग्र ०, पृ० २७१ । ग्रहो की गति या चाल (को॰) । ऋचीक--सज्ञा पुं० [सं०] मृगवशीय एक ऋषि जो जमदग्नि के पि ।। ऋण'-सझी पु० [सं०] १ किसी से कुछ ममय के लिये कुछ द्रव्य | थे । विश्वामित्र के पिता गाधि ने अपनी सत्यवती नाम की लेना। व्याज पर मिला हुआ धन । कर्ज । उवार । कन्या इन्हें व्याही थी। क्रि० प्र०—करना ।--कढ़ना ।- चुकाना !--देना ।—लेना । ऋचीप-सी पुं० [स०] १ एक नरक का नाम। २ कडाही (को०] । मुहा०-•ऋण उतरना = कर्ज अदा होना। ऋण चढ़ना =केज ऋच्छG—सुज्ञा पु० स० सुन्] १ भालू । रीछ । उ०—धायल होना । जैसे,--उन के ऊपर बहुत ऋण चढ गया है। ऋण वीर विराजत चहु दिसि, हरपित सकल ऋछ अरु वनचर। चढ़ाना = जिम्मे ६पया निकालना । ऋण पटना= धीरे धीरे -तुलसी अ ०, पृ० ४०० । २ दे० 'ऋक्ष' । कर्ज का रुपया अदा होना । ऋण पटाना = धीरे धीरे उधार यौ- ऋच्छपत = जाववान् । लिया हुअा रुपया चुकता करना । जैसे,--हम चार महीनों में ऋच्छका-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] अभिलाषा । इच्छा [को०)। यह ऋण पटा देंगे। ऋण मढ़ना= ऋण चढाना 1 देनदार ऋच्छरा—संज्ञा स्त्री० [स०] १ वेडी । २ वेश्या (को०] । बनाना । जैसे,—'वह हमारे ऊपर ऋण मढ़वर गया है। ऋजिमा--संज्ञा स्त्री॰ [स० ऋजिमन्] सरलता (को॰] । २ किसी उपकार के बदले में किसी के प्रति आवश्यक या कर्तव्य ऋजीक--वि० [सं०] १ मिश्रित । मिला हुआ । २ पृथक किया रूप से किया जानेवाला कार्य । बह कार्य जिसका दायित्व हुअा। हटाया हुअा। ३ भ्रप्ट (को०] ।। किसी पर हो । ३ किसी का किया हुअा उपकार या ऐहसान । ऋजीक-सज्ञा पुं० [सं०] १ इंद्र का नाम । २ सावन । ३ एक ४ घटाने या वाकी निकालने का चिह्न (-) (गणित) । पर्वत का नाम । ४ धूम्र । धुआ [को॰] । ५ किला | दुर्ग (को०) । ६ भूमि । जमीन (को०) । ७ पानी । ऋजोप- सच्चा पुं० [सं०]१ लोहे का तसला या काही । २ सोमलता जल (को॰) । की । तीठी ३ सीठी । ४ एक नरके का नाम । ५ जल। यौ०-ऋणकत, ऋणग्राही = कर्ज लेनेवाला । ऋणद, ऋणदाता, ऋजु–वि० [स०][० ऋज्वी] १ सीधा । जो टेढा न हो । अवक। ऋणदायी=कज चुकता करनेवाला । ऋणमुक्त । ऋणउ०—ऋजु प्रशस्त पथ वीचे वीच में, कहीं लता के कुज घने । मुक्ति =ऋणशुद्धि । -- कामायनी, पृ० १८२ । २ सरल । सुगम । सहज । जो । ऋण–वि० खाते, गणित आदि में जो ऋण के पक्ष का हो । कठिन न हो। ३ सीधे स्वभाव का । सरले चित्त का । ऋणग्नस्त-वि० [सं०] कर्ज से लदा हुआ। (को॰] । अकुटिल। ४ अनुकूल । प्रसन्न । ऋणग्रस्तता--सी स्त्री० [सं०] कर्ज से लद जाने की स्थिति (को०] । ऋजुकाय'--वि० [सं०] सीधे शरीरवाला (को०] । ऋणच्छेद-संज्ञा पुं० [सं०] कर्ज को चुकाना [को०)। ऋजुकाय?--सच्चा पु० कश्यप ऋपि [को॰] । ऋणत्रय—सच्चा पुं० [स०] तीन प्रकार का ऋण -देवऋण, ऋषिऋजुक्रतु'- वि० [स०] सही और उचित ढंग से काम करनेवाला । ऋण और पितृऋण [को०] । सुकर्मी [को॰] । ऋणदान - संज्ञा पुं० [सं०] कर्ज चुकाना [को०] । ऋजुक्रतु-सज्ञा पुं० इद्र का नाम। ऋणदास-सवा पु० [स०] ऐसा दास जो उस व्यक्ति की दासती ऋजुग'--वि० [सं०]अपने आचरण एवं व्यवहार के प्रति ईमानदार। करता हो जिसने उसका कर्ज चुकता करके उसे खरीद लिया | सदाचारी [को०] । हो को । ऋजुग–सच्चा पु० [सं०] १ इषु । तीर वाण । २ सदाचारी ऋणनिमों क्ष–सझा पु० [सं०] पितृऋण से मुक्ति [को०] ।। व्यक्ति (वै] ।। ऋणपत्रसज्ञा पुं० [सं०] लेन देन के व्यवहार का पत्र जिसपर गवाहो के समक्ष ऋण लेने और देने की व्यवस्था लिखो रहती ऋजुता- सज्ञा स्त्री० [सं०] १ सीधापन । टेढ़ेपन का अभाव । २ है । तमस्सुक । रुक्का । दस्तावेज [को॰] । सरलता । सुगमता । ३ सरल स्वभाव । सिधाई । सज्जनता । पर्या--ऋणलेख्य । ऋणलेख्य पत्र। ऋजुनीति--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ सदाचार । २ मार्गदर्शन (को०] । ऋणमत्कुण-सज्ञा पुं० [सं०] १० ‘ऋण मार्गण' (को०] । ऋजुमिताक्षरा--संज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'मिताक्षरा' (को॰) । ऋणमार्गण---सज्ञा पु० [सं०] जिसने कर्जदार से महाजन का रुपया ऋजुरोहित--सा पुं० [सं०] इद्र का सीधा और लाल रग का । | अदा करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया हो । प्रतिभू । जामिन । धनुप (को०]। ऋणमुक्त--वि० [सं०] जो कर्ज अदा कर चुका हो । उऋण । ऋणपप –इद्वायुध । शक्रघनु । रहित । उ०—-तो हमसे धन लेकर अप शीघ्र ही ऋणमुक्त ऋजुलेखा--सुवा ब्री० [सं०] सीधी रेखा (को०] । हूजिए --भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ० २८८ । ऋजुसूत्र- सच्चा पुं० [सं०] जैन दर्शन में वह 'नय' या प्रमाणों द्वारा ऋणमुक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] कर्ज अदायगी [को०] । | निश्चित अर्थ को ग्रहण करने की वृत्ति जो अतीत और ऋणमोक्ष--सज्ञा पुं० [सं०] कर्ज से छुटकारा । ऋण का चुकता हो अनागत को नहीं मानती, केवल वर्तमान ही को मानती है । जाना [को॰] ।