पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५०

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ऋतुपर्ण ऋतुपति कोसलपुर हिरत सहित समाज ।—तुलसी ग्र०, १० २६५ । ऋतुपण-सज्ञा पुं० [सं०] अयोध्या के एक राजा जो नल के सखा थे और पासा खेलने में वडे निपुडे थे । ऋतुपयय-संज्ञा पुं० [सं०] ऋतु की प्रवृत्ति । ऋतु शो का भावा- गमन (को०] । ऋतुपा---सज्ञा पुं० [सं०] इद्र का एक नाम (को०]। ऋतुप्राप्त–वि० [सं०] फलनेवाला (वृक्ष) । फन देनेवाला (पेड) । ऋतुप्राप्ता-वि० [स०] (स्त्री) जिसे रजोदर्शन हो चुका हो। ऋतुप्राप्ति-सुज्ञा स्त्री॰ [सं०] रजोदर्शन [को०] । ऋतुफल---सज्ञा पुं॰ [स] ऋतुविशेष मे होनेवाले फल [को०] । ऋतुभाग--सज्ञा पुं॰ [सं०] छठा हिस्सा [को०] । ऋतुमती--वि० सी० [सं०] १ रजस्वला । पुष्पवती । मासिक | धर्म-युक्ता । विशेष—धर्मशास्त्र और आयुर्वेद के अनुसार रजोदर्शन के उपरात तीन दिन तक स्त्री को ब्रह्मचर्यपूर्वक रखना चाहिए. पति का मुख न देखना चाहिए चटाई इत्यादि पर सोना चाहिए, हाथ पर अयवा कटोरे या दोने में खाना चाहिए, असे न गिराना चाहिए, नाखून न कटाना चाहिए, तेल उबटन और काजल न लगाना चाहिए, दिन को सोना न चाहिए बहुत भारी शब्द न सुनना चाहिए, हँसना और वहुत बोलना भी न चाहिए । चौथे दिन स्नान करके सुदर वस्त्र और अमुपण धारण करना और पति का मुख देखकर सव व्यवहार करना चाहिए। २ (स्त्री) जिसका ऋतुकाल हो । जिस (स्त्री) के रजोदर्शन के उपरात के १६ दिन न बीते हों और गर्भाधान के योग्य हो । ऋतु मुख-सज्ञा पुं० [सं०] किसी भी ऋतु का पहला दिन (को०) । ऋतुराज-खुज्ञा पुं० [सं०] ऋतु को राजा वसत । उ०—मानहू | चयन मयनपुर आयत प्रिय ऋतुराज !-तुलसी में ०, पृ० ३४८ | ऋतुलिग–सुज्ञा पुं॰ [स० ऋतुलिङ्ग] १ ऋतुबोधक चिह्न । २ रज्ज्रस्राव के लक्षण (को॰] । ऋतुवती--वि० सी० [सं० ऋतुमती] दे॰ 'ऋतुमती' । ऋतुविज्ञान-- सज्ञा पुं० [सं०] १ व विज्ञान जिसमे वायुमंडल में होनेवाले परिवर्तनों के आधार पर अघिी, वर्षा मादि का अनुमान लगाया जाता है । २ आधुनिक मोतिक विज्ञान की एक शाखा ।। ऋतुविपर्यय-सज्ञा पुं० [सं०] ऋतु के अनुसार वायुमंडल का न होना । जैसे, वसत ऋतु में पानी का बरसना । ऋतुवृत्ति-सुज्ञा पु० [सं०] ऋतु का अवागमन [को॰] । ऋतुवेला–सच्चा स्त्री० [सं०] रजोदर्शन या उसके बाद १६ दिनो तक गर्भाधान के लिये उपयुक्त समय [को०] । ऋतुसधि--सुज्ञा स्त्री॰ [सं० ऋतुसन्धि] १ दो ऋतुओं का संधिकाल । २. पक्ष की अतिम तिथि-पूर्णिमा और अमावस्या (को०] । ऋतुसहार--सुज्ञा पुं० [सं०] कालिदास का पड्ऋतु-वर्णन-विषयक प्रसिद्ध खडकाप । ऋतुसाम्य-संज्ञा पुं० [सं०] ऋतु के अनुसार प्रहार (कौ । ऋतुस्तोम–सज्ञा पुं० [सं०] एक विशेष यज्ञ [को०] । ऋतुस्नाता--संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] वह जो रजोदर्शन के चौथे दिन स्नान करके शुद्ध हुई हो [को॰] । ऋतुस्नान --संज्ञा पु० [सं०] [स्त्री० ऋतुस्नाता] रजोदर्शन के चौथे दिन का स्त्रियों का स्नान । रजस्वला का चौथे दिन का स्नान । विशेपरजोदर्शन के उपरात तीन दिन तक स्त्री अपवित्र रहती है। चौथे दिन जब वह स्नान करती है तव कुटुव के लोगों तथा घर की सुब खाने पीने की वस्तुग्रो को छूने पाती है। स्नान के पीछे स्त्री को पति या उसके अभाव में सूर्य का दशन करना चाहिए। ऋत्व—सज्ञा पुं० [सं०] १ परिपुष्ट वीर्य । २ गर्भाधान का उपयुक्त अवसर [ो । ऋत्विक संज्ञा पु०[स० ऋत्विक्] दे० 'ऋत्विज्' । ३०-दैव विवाह यज्ञ में ऋत्विक को दान । प्रेमघन०, मा० २, ५० ५७ ।। ऋत्विज्—संज्ञा पुं० [अ०] [ौ० आत्विज] यज्ञ करनेवाला। वह जिसका यज्ञ मे वरण किया जाय । विशेष—-ऋत्विजो की सब्या १६ होती है जिसमें चार मुख्य हैं—(क) होता (ऋग्वेद के अनुसार कर्म करानेवाला) । (ख) अवयु (यजुर्वेद के अनुसार कर्म करानेवाला) । (ग) उद्गाता (सामवेद के अनुसार कर्म करानेवाला) । (१) ब्रह्मा (चार वेदो का जाननेवाला और पूरे कर्म का निरीक्षण करनेवाला। इनके अतिरिक्त बारह और ऋत्विजों के नाम ये हैं-मैत्रावरुण, प्रतिप्रस्याता, ब्राह्मणच्छसी, प्रस्तोता, अच्छावाक्, नेष्टा, अग्निीघ्र, प्रतिहत्त, ग्रावस्तुत्, उन्नेता, पोता और सुब्रह्मण्य । ऋत्विज -सज्ञा पुं० [सं० ऋत्विज्] दे॰ 'ऋत्विज्’। उ०—अब चल वेदी पर बिछाने के लिये ये दाभ मुझे ऋत्विज ब्राह्मणो को देने हैं।-शकुंतला, पृ० ४३ । ऋद्ध'---वि० [सं०] १ सपन्न् । वृद्धि प्राप्त । समृद्ध । २ संग्रह किया। हुमा । जमा किया हुमा (अन्न) । ऋद्ध-सज्ञा पुं० १ पेड से मलकर या दायंकर अलग किया हुआ। धान । सपन्न धान्य । २ विष्णु (को०) । ३ उत्कर्ष । वृद्धि (को०)। ४ विशिष्ट अथवा प्रत्यक्ष फन (को॰) । ऋद्धि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ एक ओपधि या लता जिसका फर्द देवी के काम में आता है। विशेप---यह कद कपास की गाँठ के समान और बॉईं मोर को कुछ धूमा रहता है तया इसके ऊपर सफेद रोई होती है। यह वलकारक, त्रिदोपनाशक, शुक्रजनक, मधुर, भारी तया मूर्छा को दूर करनेवाला है। पर्या–प्राणप्रिया । वृष्या। प्रणवा। सपदाह्वय 1 सिद्धा। योग्या । चेतनीया। रयागो । मगल्या । लोककाता । जीवश्रष्ठा। यशस्या। । समृद्धि । बढती। ३. अयि छद का एक भेद जिसमे २६ गुरु और ५ लघु होते हैं । '४. गणेश की एक दासी जो समृद्धि की देवी मानी जाती है (को०)। ५ पार्वती (को०) । ६ लक्ष्मी (को॰) । ५. पत्नी (को०)। ६. सफलता । सिद्धि (को०)।